नेग – मधु मिश्रा

-“सुनिये, पहले आप ये सब देख लीजिये.. बड़ी दीदी और छोटी दीदी के लिए ये सिल्क वाली साड़ी है, दोनों जवाई जी के लिये रेमण्ड के सूट पीस और ये रहे दोनों दीदी के बच्चों के मनपसंद कपड़े.. और.. और ये चेन बड़ी दीदी और बड़े जवाई जी के लिये और उनके बच्चों के लिए इक्कीस सौ रुपये वाले लिफ़ाफ़े..! ” केतकी अपने बेटे की शादी के बाद नन्दों की विदाई के सामान अपने पति को दिखाते हुए बोली

-” और रंजना (छोटी बहन) उन लोगों की चेन..! वो कहाँ है…? उनके लिए भी तो ख़रीदी गई थी..! ” सुरेन्द्र जी ने विस्मित होकर पत्नी से पूछा..

-” रंजना दी को… चेन…! देंगे क्या…? उन्होंने तो वंश और बहु को मात्र पाँच हज़ार रुपये ही दिये हैं lऔर बड़ी दी.. बड़ी दीदी तो वंश और बहु के लिए हीरे की अंगूठी लायी थीं..! “केतकी ने फ़क्र से सीना फुलाते हुए कहा –


-” कमाल करती हो तुम भी.. दोनों बहनों को नेग तो समान रूप से ही दिया जायेगा.. अभी छोटी बहन के हालात ठीक नहीं हैं, तो क्या मैं उसका अपमान करूँगा… बिल्कुल नहीं.. मेरे लिए तो दोनों ही एक समान हैं..! रंजना के भी दिन अवश्य फिरेंगे… जानती हो केतकी, मायके से जब लड़की को मान मिलता है न.. तो वो उसे आजीवन नहीं भूलती और जाते जाते देती जाती है अपने मायके को फलने फूलने का आशीर्वाद ..तो वो आशीर्वाद क्या तुम लेना नहीं चाहती… बुरा नहीं मानना.. ऐसा ही भेदभाव कभी यदि तुम्हारे साथ हो तो… !”

-“भूल हो गई जी मुझसे  …. कहकर केतकी चेन लाने के लिए ज्यों ही मुड़ी तो उसने देखा – छोटी नन्द दरवाज़े पर आ चुकी थी और आँसू से उनके गाल भी भीग रहे थे.. ये देख केतकी ने उन्हें गले से लगाते हुए कहा – “दीदी, मुझसे भूल हो गई.. आप माफ़ कर दोगी न..आपसे तो ताज़िन्दगी आशीर्वाद लेते रहना है हमें….?”

-“हाँ.. रे..तुम लोगों को मेरा दिल से आशीर्वाद है.. जानती है सोना चांदी से बहुत… ऊपर होता है दिल का नाता..  मेरे मायके की देहरी सदा हरी भरी रहे.. मेरा दिल तो हमेशा यही चाहता है .. कहते हुए छोटी नंद ने केतकी को गले से लगा लिया..

-मधु मिश्रा, ओडिशा.

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