क्या पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती – शिव कुमारी शुक्ला

आज दशहरा था और सुखविंदर अपने ट्रक का माल उतरवा रहा था एक अंजान शहर में।वह अंतराज्यीय परमिट से चलने वाले लम्बी दूरी के ट्रक का ड्राइवर था। खाना खा वह तन्हा लेटा था तो अपने घर पत्नी, बच्चों की याद आ गई। आज त्योहार के दिन वह अकेला इस अनजान शहर में पड़ा है … Read more

बेटीयों को कितनी आज़ादी  दें – शिव कुमारी शुक्ला 

महिमा जी का परिवार पूर्णतया आधुनिक रंग में रंगा हुआ था। आलीशान कोठी सभी आधुनिक सुख-सुविधाओं से सुसज्जित, नौकर -चाकर, गाड़ियों की फौज।सब कुछ तो था उनके पास। उनके बच्चे दो बेटियां एवं एक बेटा जब आधुनिक परिधान पहन कर चमचमाती गाड़ियों में बैठकर जाते तो आस-पास के लोगों में उन्हें देखकर एक आह निकलती … Read more

इंसानियत मर गई – शिव कुमारी शुक्ला 

आज निलेश के घर के सामने भीड़ इकट्ठी थी।घर के अंदर कोहराम मचा हुआ था।उसका दो वर्षीय पुत्र मामूली खांसी में ही चल बसा था। उसकी मां का क्रंदन लोगों के कलेजे को चीर रहा था। बाहर लोगों में कानाफूसी का माहौल गर्म था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि खांसी की दवा देने … Read more

और वह नहीं गई – शिव कुमारी शुक्ला 

रोज की भांति झुमकू भी अपना उदास चेहरा लिए घड़ा उठा पनघट की ओर चल दी। ठंड के दिन थे। सूर्य अपनी प्रखर किरणों के साथ आसमान में कुछ ऊपर चढ़ आया था किन्तु सर्दी के कारण उसकी निस्तेज किरणें आंगन में बिखर गईं थीं। हवा की ठंडी लहरें कलेजे को चीर रहीं थीं। ग्रामीण … Read more

आप बहू को चढ़ाए गहने कैसे उतरवा सकती हैं ?? – स्वाती जैंन

केतकी , तुम तो इन गहनों को मांजी से भी ज्यादा संभाल कर रख रही हो , थोड़े दिनों में मांजी यह गहने तुमसे वापस लेने वाली हैं जेठानी सुमन अपनी देवरानी केतकी से बोली !! केतकी हैरानी से बोली – यह क्या कह रही हो भाभी ?? मुझे शादी में चढ़ाए हुए गहने भला … Read more

दूसरी पारी – शिव कुमारी शुक्ला

समीर जी के रिटायरमेंट का समय जैसे -जैसे पास आता जा रहा था उनका उत्साह,जोश भी उतना ही बढ़ता जा रहा था।वे अब अपने लिए जीना चाहते थे।जीवन के एक -एक पल का भरपूर आनंद उठाना चाहते थे।जिन खुशियों की चाहत में पूरा जीवन तरसे उन्हें अब उन्हें दोनों हाथों से समेट लेना चाहते थे। … Read more

छुटकू – बीना शुक्ला अवस्थी

आज चॉदनी का जागती ऑखों से देखा सपना पूर्ण हो गया है। इस कालोनी में फ्लैट लेना उसका बहुत बड़ा सपना था।  आज  सुबह ही उसके फ्लैट की रजिस्ट्री हुई है और वह सीधे यहीं आ गई। उसने हल्के हाथों से उस नन्हें पौधे का सहलाया जो धीरे-धीरे विशालकाय वृक्ष बनने की राह पर अग्रसर … Read more

स्त्री से अपेक्षा – शिव कुमारी शुक्ला

दीपा मात्र छब्बीस की उम्र में छः माह के बेटे को गोद में लिए, वैधव्य की चादर ओढ़,सूनी आंखें लिए पिता की चौखट पर पुनः खड़ी थी। शादी को अभी दो बर्ष भी नहीं हुए थे कि यश मात्र एक माह के बच्चे को उसकी झोली में डाल स्वयं काल का ग्रास बन गया। ऑफिस … Read more

झूठा अहम् – शिव कुमारी शुक्ला

आज सुबह सुबह ही परेश और निशा में फिर खट-पट हो गई।यह खट-पट उनके जीवन का आवश्यक अंग बन गई थी और परेश का पूर्ण प्यार पाने के वावजूद भी समय असमय आने वाले तूफानों ने निशा को तोड़कर रख दिया था। निशा आज तक परेश को अपनी मानसिक स्थिति नहीं समझा सकी थी। उनकी … Read more

दरवाजा ध्यान से बंद करना – श्वेता अग्रवाल

“मम्मा खजला(चावल के पापड़) दो ना।” अंशुल अपनी मम्मा रीमा से कह रहा था। “खजले नहीं है,अंशुल। खत्म हो गए हैं।” “मुझे नहीं पता। मुझे तो खजला खाना है। दादी ने इतने सारे खजले तो दिए थे।” अंशुल जिद करते हुए बोला। “हाँ,दिए तो थे पर दिन में तीन- तीन बार ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब … Read more

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