‘बड़े भागों वाली’ हां सब यही तो कहते हैैं, सुहासिनी भाभी को। बड़ी हवेली के जमींदार महाशय के इकलौते बेटे लखनपाल की पत्नी सुहासिनी एक बराबर के समृद्ध परिवार की बेटी हैं। दस साल पहले विवाह उपरांत राजनगर आईं थीं। कुम्भलनगर के जमींदार की बेटी सुहासिनी बड़े लाड़-प्यार और नाजों से पली हैं।
मैं, इमली , बचपन से अम्मा के साथ हवेली में रही हूॅ॑। हवेली का कोना कोना मेरा देखा भाला है। मेरी अम्मा बड़ी मालकिन के साथ शादी में आई थी और उनकी सेवा करती थी। मेरे बाबा खेत पर सभी मजदूरों के ऊपर निगरानी रखने का काम करते थे और मालिक का सारा हिसाब किताब देखते थे। हम हवेली में पिछवाड़े अहाते में बने हुए क्वार्टर्स में रहते हैं।अम्मा के जाने के बाद मालकिन ने मुझे सुहासिनी भाभी की सेवा करने के लिए रख लिया।
भैयाजी की शादी में भाभी के पिता जी का वैभव देखा था। भैया जी की शादी में बारात में मैं भी गई थी और वहां पर शादी में बहुत मजा किया। मैं शायद आठ साल की रही होंगी तब। बारात का उन्होंने बहुत ही भव्य स्वागत किया था और बहुत ही शानो-शौकत से सुहासिनी भाभी लखनपाल भैया जी के साथ अपनी नई नवेली गृहस्थी में रम गईं।
मैंने देखा कि सुहासिनी भाभी नाजो से पढ़ी हुई बहुत ही खूबसूरत और संस्कारी बेटी होने के साथ-साथ अच्छी बहू भी बनीं।
दोनों को एक साथ देख कर ऐसा लगता है मानो राम और सीता चले आ रहे हैं। एक अनुपम अतुलनीय जोड़ी, जो मन को छू जाए। उतने ही सीधे दोनों जन और सच्चे मन के कि किसी भी गरीब का भला करने में कभी ना चूकें।
शादी को चार साल बीतने के बाद भी जब भाभी माॅ॑ नहीं बन पाईं। तब मालकिन ने शहर जाकर डॉक्टर से उनकी जांच करवाई । उसमें यह आया कि वह कभी मां नहीं बन पाएगी। भैयाजी और सुहासिनी भाभी बहुत ज्यादा दुखी हुई। भाभी ने भैयाजी से कहा कि वह दूसरी शादी कर लें परंतु उन्होंने मना कर दिया। भैया जी ने कहा कि वह भाभी का साथ नहीं छोड़ेंगे। बरसों बरस इसी उम्मीद में बड़ी मालकिन रहीं कि वह भैया जी की दूसरी शादी करा दें। कुल का वंश चलाने के लिए कुलदीपक की खातिर ही भैयाजी शादी कर लें लेकिन भैया जी नहीं मानें। भैया जी ने बड़ी मालकिन को बहुत समझाया कि वह अनाथालय से बच्चा गोद ले लेंगे लेकिन वह नहीं मानी और इस तरह से सुहासिनी भाभी की गोद सूनी रही।
छह महीने पहले मालकिन स्वर्गवासी हो गईं। मालिक बुजुर्ग हो गए हैं। भैया जी ही सब कुछ सम्हालते हैं। मालिक से भैयाजी ने अब बच्चा गोद लेने की अनुमति ले ली है। अब कुछ ही समय में घर में बच्चा आ जाएगा। भाभी बहुत खुश हैं। बार बार भैयाजी का आभार व्यक्त करते नहीं थकती। उनके लिए भैयाजी ने दूसरी शादी नहीं की और अब बच्चा गोद ले रहें हैं, यह बहुत बड़ी बात है। जमींदारों के यहां तो बात-बात में औरत को अपमान झेलना पड़ जाता है , बांझ होने पर शादी तोड़ कर दूसरी करना कोई अचंभे की बात नहीं है।
“सच में सुहासिनी भाभी बहुत भागों वाली हैं।”
घर में वो दिन भी आया जब अनाथालय से एक सुंदर सा बेटा भाभी की गोद में आ गया। उस नवजात को कोई अनाथालय की सीढ़ियों पर छोड़ गया था। दो-चार दिन के बच्चे को सीने से लगा लिया भाभी ने। न दिन देखा न रात, हर पल शिवा बाबा को पालने में भाभी अपनी ममता लुटाती रहीं और तो और उनके दूध भी उतर आया।
इस बीच में मेरी भी शादी हो गई। मेरे बाबा बुजुर्ग हो गए हैं। मेरे पति सुमित अकाउंट देखते हैं।
कल जय बाबा का पांचवां जन्मदिन है।
एक दिन पहले सुहासिनी भाभी, भैयाजी और मैं जय बाबा के कपड़े और खिलौने खरीदने के लिए शहर गए। अधिकतर भैया जी भी साथ जाते हैं। हमें दुकान पर छोड़कर भैया जी किसी वकील से मिलने चले गए। सुहासिनी भाभी ने बच्चे के लिए वहां से बहुत सारे कपड़े व खिलौने लिए। सुनार की दुकान से सोने की चेन और कड़ा खरीदे। इसके बाद सुहासिनी भाभी और मैं साड़ी वगैरह खरीदने एक शोरूम में गए। भाभी ने साड़ियां लीं और मुझे भी पसंद की दिलवाई।
भाभी बिल का भुगतान कर दुकान से निकलने वाली थीं कि पीछे से किसी ने आवाज दी,” आप सुहासिनी जी हैं, मिस्टर लखनपाल की पत्नी?”
भाभी ने पीछे मुड़कर देखा,” जी हां। आप कौन?”
अपरिचित प्रौढ़ महिला ने हाथ जोड़कर कहा,” मैं डाॅक्टर गरिमा।”
फिर जय बाबा को देखकर बोली,” आपका बेटा है। बहुत प्यारा है। आपने दूसरी शादी कर ली।”
सुहासिनी भाभी ने बताया “जय बाबा मेरी गोद ली हुई संतान हैं। कमी तो मुझमें थी तो मेरे शादी करने से क्या होता? मेरे पति ने इस कमी के बावजूद मेरा साथ नही छोड़ा। हम दोनों ने बच्चा गोद लिया है।”
असल में डॉ गरिमा वही डाॅक्टर हैं जिनके यहां बच्चा न होने पर जांच करवाई थी।
डॉ गरिमा ने बड़े आश्चर्य से कहा ,”अच्छा! पर जहां तक मुझे याद है कमी आपमें नहीं आपके पति में है। आप पूर्णतः स्वस्थ हैं। यह बात मैंने स्वयं बताई थी।”
थोड़ा ठहरकर बोली,” मेरे ख्याल से आपके पति को ही बताया था क्योंकि वह अकेले आए थे रिपोर्ट लेने। आपकी सास को नहीं बताया था और आप भी नहीं आईं थीं।”
सुहासिनी भाभी यह जानकर अवाक् रह गईं।
सामने से भैयाजी भी आ गए थे और उन्होंने सब सुन लिया जो कुछ भी डाॅ गरिमा ने कहा था।
सुहासिनी भाभी पूरे रास्ते कुछ नहीं बोलीं। अगले दिन जय बाबा के जन्मदिन की पार्टी ज़ोर शोर से हुई।
मैं अभी भी यही सोच रही हूॅ॑ भैयाजी दुनिया के लिए त्याग की मूर्ति बनकर सामने आए और उन्होंने यह दिखाया कि कमी के बाद भी उन्होंने सुहासिनी भाभी को नहीं छोड़ कर बहुत उपकार किया। दुनिया के नज़रिए से देखें तो भैयाजी देवता से कम नहीं हैं। कल तक सुहासिनी भाभी भी यही सोचती थीं और बेहद खुश थीं भैया जी को पति के रूप में पाकर अपने को सौभाग्यशाली मानती थीं।
आज सुहासिनी भाभी क्या सोच रहीं हैं यह कह पाना मुश्किल है। उनका विश्वास टूटा है। निश्चित है उनका नज़रिया भैयाजी के लिए पूरी तरह बदल चुका है।
मेरे नज़रिए से भैयाजी एक नम्बर के झूठे आदमी हैं जिन्होंने अपनी कमी छुपाने के लिए सुहासिनी भाभी पर ही सारा आरोप मढ़ दिया। इतने सालों से उन्हें इस एहसास तले रखा कि बांझ होने के बावजूद भाभी की खातिर वह शादी नहीं कर रहें हैं। बच्चा भी अपने स्वार्थवश गोद लिया और एक और एहसास तले भाभी को दबा दिया।
“सुहासिनी भाभी बड़े भागों वाली हैं या अपने पति द्वारा छली गई अभागी?” यह प्रश्न मन को उद्वेलित कर रहा है, आप ही बताइए। सुहासिनी भाभी जो कल तक खुशी से चहक रही थीं आज मेहमानों के सामने मुस्कुराने की असफल कोशिश करने में भी असमर्थ हैं, सूनी ऑ॑खें उनके गमों को दर्शा रही हैं….
दोस्तों, यह कहानी मैंने दिल से लिखी है। यदि आपके दिलों के तार को झंकृत कर दिया है तो कृपया लाइक और शेयर करें। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
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धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
#कभी_खुशी_कभी_गम
1 thought on “‘भागोंवाली अभागी!’ – प्रियंका सक्सेना”