‘अहा,कितने खूबसूरत पल थे वो मेरी ज़िन्दगी के! आइए आपको भी ले चलती हूॅ॑ मेरे साथ, उन पलों को जी लेती हूॅ॑ एक बार फिर….
मैं कलकत्ता के इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ से डिप्लोमा इन डायटीशियन कर रही थी।मैं बात कर रही हूँ सन् १९९२ की, कोलकाता उस समय कलकत्ता के नाम से जाना जाता था।
अगस्त का महीना था, इंस्टिट्यूट में नवनिर्मित बिल्डिंग का उद्घाटन था जिसके लिए कैबिनेट मिनिस्टर को केंद्र से बुलाया गया था। मुख्य अतिथि हिंदी भाषी थे, देश के उत्तर भाग से ताल्लुक रखते थे। मुख्य अतिथि के स्वागत की तैयारियां जोरो-शोरों से चल रही थीं।
इतने में एक समस्या आन पड़ी और वो ये थी कि इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर्स चाहते थे कि मुख्य अतिथि का स्वागत हिंदी भाषा से किया जाए। ऐसे में जब एक दिन शेष था, ढूंढ मची और किसी ने बताया कि फलां स्टूडेंट उत्तर प्रदेश से है। तत्काल डीन ऑफिस से मेरा बुलावा आया। मैं डाइट की प्रैक्टिकल क्लास में सेमिफ़्लूयड डाइट बना रही थी। खैर मैं डीन ऑफिस पहुँची तो डीन सर ने मुझे कहा कि कल होने वाले कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के लिए मुझे स्वागत भाषण लिखना है और प्रस्तुत करना है। साथ ही मुख्य अतिथि को फूलों का गुलदस्ता भेंट करना है। मुझे भाषण की रुपरेखा यानि प्रमुख बिंदु अंग्रेजी में दे दिए ।
फिर क्या था मैं लग गयी काम पर और दो घंटे की कड़ी मेहनत के बाद मेरा भाषण तैयार हो गया। उस वक्त कोई गूगल ट्रांसलेट आदि उपलब्ध नहीं था तो अपने-आप बिना किसी की सहायता से मैंने भाषण तैयार किया।
मैंने अगले दिन मुख्य अतिथि का स्वागत हिंदी भाषा में करते हुए इंस्टिट्यूट के बारे में जानकारी देते हुए उन्हें गुलदस्ता भेंट किया। मुख्य अतिथि अति प्रसन्न हुए, उन्होंने अपने भाषण में मेरा उल्लेख किया कि हिंदी भाषा से उनका गहरा लगाव है और यहां हिंदी में उनका स्वागत किया गया इस बात से वह अविभूत हैं।
मेरे सहपाठियों और सभी प्रोफेसरों ने भी मेरी बहुत प्रशंसा की।
वो पल मानो मेरे लिए वही ठहर सा गया था! मैं बता नहीं सकती हूँ कि स्वभाषा हिंदी में बोलकर जो आनंद और गर्व का अनुभव उस पल मैंने किया वो अतुलनीय था।
दोस्तों, मेरी ज़िन्दगी के बेहद प्यारे पलों को आपके साथ साझा किया हैं। मुझे यकीन है आप सभी हिंदी प्रेमियों को पढ़कर गर्व का अनुभव हुआ होगा। पसंद आए हों मेरे दिल के करीबी ये पल तो कृपया लाइक और शेयर करें। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
#हिन्दीदिवस
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धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक, स्वरचित संस्मरण)
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