Moral stories in hindi : मीता की शादी की तारीख सोहन से तय होते ही घर में खुशी की लहर दौड़ गई। मीता और सोहन की अरेंज मैरिज है जिसे सोहन के पापा के मित्र जो मीता के फूफाजी हैं उन्होंने तय करवाई है।
सोहन इंजीनियर है और बैंगलोर में एक मल्टीनेशनल में कार्यरत है। सोहन के पापा आनंद जी और मम्मी सरला जी कुछ साल पहले जब सोहन के पापा रिटायर हुए तब यहीं शिफ्ट हो गए थे। सोहन का एक छोटा भाई साहिल है जो दिल्ली में वकालत पढ़ रहा है।
मीता के माता-पिता, माला जी और मोहन जी पैतृक नगर में रहते हैं जहाँ उसके पिता की सरकारी नौकरी है। एक छोटा भाई मानस है जो दूसरे शहर से इंजीनियरिंग कर रहा है। मीता चार्टेड एकाउंटेंट है इसी वर्ष उसका सीए फाइनल कम्पलीट हुआ है।
विवाह के बाद कुछ दिन बाहर घूमकर मीता सोहन के साथ बैंगलोर आ गयी। बैंगलोर आकर मीता ने कुछ समय बाद दो-तीन कम्पनी में इंटरव्यू दिए और एक प्रतिष्ठित फर्म में फाइनेंस डिपार्टमेंट में ज्वाइन कर लिया।
सोहन के माता-पिता काफी भले लोग हैं जो दोनों को पर्सनल स्पेस और टाइम देने का यत्न करते रहते हैं। कभी साथ में घूमने तो बाहर खाने या मूवी देखने भेज देते हैं।दोनों एक दूसरे को जानते हुए आगे बढ़ रहे हैं अपनी गृहस्थी को सवांर रहे हैं।
घर पर भी मीता की सासु मां सरला जी ने बर्तन और साफ़ सफाई के लिए बाईजी लगाई हैं, धोबिन भी आती है, प्रेस वाला भी। बस खाना अपने हाथ का बना अच्छा लगता है तो वो सरला जी स्वयं ही बनाया करती हैं। मीता भी यथासंभव मदद करती। उसे ज्यादा कुछ खाना बनाना नहीं आता लेकिन सरला जी प्यार से कहती हैं कोई बात नहीं बेटा, धीरे धीरे सब सीख लोगी।
मीता मांजी से सीखती रहती है। उसे देखकर अच्छा लगता है कि सोहन और साहिल के साथ साथ पापाजी भी रसोई में काम करने से नहीं कतराते हैं। सरला जी बताती हैं कि उन्होंने पति और दोनों बेटों को भी बेसिक किचन वर्क सिखाया है तो जब भी कभी उनकी तबीयत खराब हुई तो उन लोगों ने मिलकर संभाल लिया मीता ईश्वर को धन्यवाद देती ना थकती है कि इतनी अच्छी सोच का ससुराल है उसका!
कुछ समय बाद साहिल की वकालत पूरी हो गई और उसने दिल्ली में ही सीनियर वकील के अंडर में प्रेक्टिस शुरु कर दी। थोड़े समय बाद साहिल का विवाह काम्या से हो गया जो उसके साथ काम करती थी। अब तो आनंद जी और सरला जी कभी दिल्ली रहते तो कभी बैंगलोर। उनका स्वाभाव इतना बढ़िया है कि बेटों से ज्यादा बहुओं को उनके आने का इंतज़ार रहता।
इस प्रकार जीवन सुचारु रूप से चल रहा है।
ऐसे में एकबार जब आनंद जी और सरला जी साहिल के पास दिल्ली गए कि वहां आनंद जी की तबीयत खराब हो गई। साहिल और मीता फौरन वहां पहुंचे, आनंद जी को लाना दो महीने तक संभव नहीं था तो एक हफ्ते रुककर दोनों वापस बैंगलोर आ गए।
इसी बीच में नन्ही जान के आने की आहट हुई। मीता और सोहन ने आनंद जी-सरला जी और मोहन जी-माला जी को फोन कर बताया। सभी लोगों की खुशी का ठिकाना ना रहा। मानस, साहिल-काम्या भी काफी खुश हुए कि आखिरकार घर में कोई आने वाला है जो सबसे छोटा और सभी के दिल के करीब होगा। सबकी पदवी या कह लीजिए ओहदा एक एक स्टेप बढ़नेवाला है…
मीता और सोहन को हिदायत भी मिलीं दोनों मांओं से कि मीता का ख्याल रखना है , ऐसे खाना है पौष्टिक आहार लेना है, फल खाने हैं, आदि-आदि
ऐसे ही एक दिन मार्निंग सिकनेस की वजह से मीता सुबह से उठ नहीं पा रही थी। सोहन ने उसकी हालत देखी तो तुरंत चाय-नाश्ता बना लाया।
सोहन आंखें मूंदी लेटी मीता से बोला ,” आज मैं छुट्टी ले रहा हूं, तुम मेरे हाथ का कमाल देखो। पहले यह पोहा खाकर देखो इसमें मैंने हल्का सा नींबू का रस डाला है तुम्हें अच्छा लगेगा।”
मीता ने पोहा खाया, बेहद टेस्टी बना था।
दोनों के नाश्ता करने के बाद सोहन ने कहा,” अब तुम आराम करो, दोपहर में क्या खाओगी, बस यह बता दो ।”
मीता ने कहा, ” रहने दो सोहन कुछ देर में आराम आ जायेगा। फिर खिचड़ी, पुलाव जैसा हल्का फुल्का बना दूंगी खाने को।”
“डोंट वरी मैं हूं ना! अभी तो ये गोली खाकर सो जाओ फिर उठकर बना देना।” कहकर सोहन बेडरूम से बाहर आ गया।
करीब तीन घंटे बाद मीता की आँख खुली। हड़बड़ा कर उठी कि जल्दी से खिचड़ी ही बना दे।
किचन में जाने तक तो खाने की जोरदार खुशबू आने लगी।देखा तो पाया कि सोहन दाल, रोटी और पनीर की भुर्जी थाली में लगा रहा है।
मीता ने आश्चर्य से पूछा, ” सोहन, आपने खाना बाहर से मंगवा लिया। मैं उठने ही वाली थी।”
उसकी हड़बड़ाहट देख सोहन हँसते हुए बोला , “अरे अरे! बस-बस मीता ।अब चखकर बताओ कैसा बनाया है मैंने?”
“क्या आप जानते हैं रोटी बनाना भी? आटा भी गुंधा नहीं था फिर कैसे?” सवालिया नज़रों से मीता ने पूछा।
“कितने सवाल पूछ लिए तुमने? मैं बाहर रहकर पढ़ा हूँ, नौकरी भी बाहर की है। कुछ साल तक जब तक मम्मी पापा यहां नहीं आएं थे तो मम्मी ने कब से मुझे खाना बनाना सिखा दिया, सब्जी-दाल बनाना, आटा गूंधना, रोटी बनाना सब कुछ। शायद मम्मी जानती है ये सब काम आता है। इसलिए उन्होंने साहिल को भी सभी किचन का काम सिखाया है।
अब क्योंकि तुम्हारी तबियत कभी नरम कभी गरम रहा करेगी तो मैं सभी काम में हाथ बंटाया करूंगा और देखो ना शुरुआत आज से हो गयी है। आखिरकार आने वाला बच्चा दोनों का है तो उसके आने के बाद क्यों, अभी से ही क्यों नहीं? तुम्हें आराम की जरूरत है, मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ा हूँ। ” ऐसा कहकर सोहन ने मीता को निरुत्तर कर दिया
मीता की आंखों में सोहन के लिए बेइंतहा प्यार उमड़ आया।
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धन्यवाद।
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
4 thoughts on “डोंट वरी मैं हूॅ॑ ना! – प्रियंका सक्सेना : Moral stories in hindi”