मिष्ठी’ – प्रियंका सक्सेना

दादी आज फिर परेशान हो गई।‌ मिष्ठी उनकी हालत देखकर दुखी हो गई। आइए मिष्ठी और उसके परिवार से आपका परिचय कराती हूॅ॑।

मिष्ठी ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक मेधावी छात्रा है। विज्ञान उसका पसंदीदा विषय है। घर में मिष्ठी, दादी, मम्मी आशा और पापा अजीत ही रहते हैं। दादी में मिष्ठी की जान बसती है।

मिष्ठी के घर में हमेशा बड़े बुजुर्गो का सम्मान होते उसने अपने माता-पिता के द्वारा देखा है। बदले में दादी बाबा से हमेशा छोटों को प्यार ही मिला है। बड़ों के सानिध्य में बच्चे हर पल कुछ ना कुछ सीखते हैं, मिष्ठी भी बाबा दादी से पुरानी बातें पूछा करती, कहानी किस्सों को सुनाते बाबा दादी भावुक हो उठते। अपनी बहू से भी उनका लगाव किसी से छिपा नहीं था। कभी कभी तो अजीत डांट खा जाते पर मजाल है जो बहू के खिलाफ कोई बोले! ऐसे प्यारे संस्कार से परिपूर्ण परिवार में लालन-पालन हुआ अपनी मिष्ठी का तो तमीज और तहज़ीब तो आनी ही थी और हों भी क्यों नहीं बड़ों के पदचिन्हों पर ही तो बच्चे चला करते हैं। वैसी ही मिष्ठी है सभी से प्यार करने वाली, भावनाओं से ओतप्रोत समझदार बुद्धिमान बच्ची।

दो वर्ष पहले बाबा का स्वर्गवास हो गया। तकलीफ़ पूरे परिवार को बेहद हुई, समय लगा संभलने में। अब दादी का ख्याल मिष्ठी और मम्मी पापा ज्यादा रखने लगे।

उम्र के साथ अब दादी बुजुर्ग हो गईं हैं, चलने फिरने में तकलीफ़ होती है तो मिष्ठी के पापा अजीत ने अपनी माॅ॑ के लिए एक बेंत ला दी। बेंत पर हाथ फिसलने से दादी फर्श पर गिर गईं।

इसके बाद पापा फिर वॉकर ले आए।‌ वॉकर ठीक रहा पर बड़ा होने के कारण दादी को आइडिया नहीं रहता और वो कोने में अड़ जाता या दादी किसी मेज कुर्सी या सामान से टकरा जाती।




आज दादी का वॉकर पलट गया और दादी को बहुत चोट लग गई।

मिष्ठी अपनी दादी से बेहद प्यार करती है उन्हें तकलीफ़ में देख उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा उसने दोपहर को खाना भी नहीं खाया।

मिष्ठी को विज्ञान की किताबें पढ़ना बहुत अच्छा लगता है, हाल में उसने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कम्प्यूटर ग्राफिक्स से संबंधित कुछ किताबें पढ़ी थीं। उनमें से एक किताब मिलेन मिशेल द्वारा  लिखित “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: ए गाइड फॉर थिंकिंग हृयूमन”   (Artificial intelligence: a guide for thinking human by Melanie Mitchell) पढ़ कर उसे इतना तो पता चल गया था कि वॉकर को दादी के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है अगर वो उनके हिसाब से प्रोग्राम किया जाए।

शाम को अमेरिका में रहने वाले ममेरे भाई नील, जो मेकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहे हैं, का फोन आया।

मिष्ठी ने दादी की समस्या उनको बताई, उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कम्प्यूटर ग्राफिक्स  की मदद से वॉकर को प्रोग्राम किया जा सकता है।

मिष्ठी दादी के बारे में सोचती हुई बिस्तर पर औंधी सो गई।

वॉकर मिष्ठी के पास आकर बोला, “मिष्ठी, मैं दादी को चोट नहीं पहुंचाना चाहता था पर मैं क्या करूं दादी को चोट लग गई, मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ।”

मिष्ठी ने वॉकर से कहा, “मुझे कोई उपाय बताओ जिससे दादी तुम्हें पकड़कर चल लें और उन्हें चोट न लगे, वो टक्कर न खाएं, न ही गिरें।”

वॉकर ने मिष्ठी से कहा, “साइंटिस्ट अर्नव भट्टाचार्य के पास ले चलो मुझे। वह मुझे मोडिफाइड यानि मुझमें परिवर्तन करके दादी के लायक बना देंगे।”

 

मिष्ठी की आंख खुल गई, वह दौड़ कर मम्मी-पापा के पास गई।

मिष्ठी ने अपना सपना मम्मी और पापा को बताया, नील भैया से हुई बातचीत भी बताईं। मम्मी ने अगले ही दिन अर्नव भट्टाचार्य जी से मिलने का सुझाव दिया।




अगले दिन ही वॉकर को लेकर अजीत और मिष्ठी साइंटिस्ट अर्नव भट्टाचार्य के पास गए।

साइंटिस्ट अर्नव ने उनकी बातों को ध्यान से सुना। वॉकर को उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कम्प्यूटर ग्राफिक्स की मदद से एक वॉकर रोबोट में बदल‌ दिया जिसको इस तरह से प्रोगाम्ड किया गया ताकि यदि रास्ते में कोई बाधा या वस्तु आए तो वह बीप के साथ हिंदी में चेतावनी देती कि आगे बाधा है। साथ ही उपाय भी बताता कि क्या करें। जैसे कि दाएं चले या‌ बाएं चले या रास्ता बदल लें या पीछे लौट जाएं आदि आदि।

वॉकर में साइंटिस्ट अर्नव ने यह सब सिस्टम फिट कर दिये।

मिष्ठी ने दादी को मोडिफाइड  वॉकर दिया। अब दादी टकरा  कर गिरती नहीं हैं, उन्हें वॉकर गाइड भी कर देता है कि आगे कुछ बाधा तो नहीं है और यदि है तो किधर जाना है।

मिष्ठी दादी को खुश देखकर खुद भी खुश रहने लगी। मिष्ठी को घर में फिर से मज़ा आने लगा।

विज्ञान में बहुत सी आशा की किरणें छिपी हैं, बस समझने भर  की देर है। मिष्ठी ने तो किताबें पढ़कर अपनी दादी की राह आसान कर दी। सही कहा गया है कि बच्चे जीवन में आई परेशानियों से घबराकर बैठते नहीं अपितु बुद्धिमत्ता से हल करने का प्रयास करते हैं। मिष्ठी को घर से मिले संस्कार ही हैं जो वह पढ़ाई में अग्रणी, दिमाग से तेज और अपने से बड़ों का सम्मान करती है। बुजुर्गो के दुख तकलीफ़ का मजाक नहीं बनाती बल्कि अपनी अक्ल का इस्तेमाल कर मिष्ठी ने उनकी ज़िंदगी की परेशानियों को दूर किया।

दोस्तों, बच्चे कच्ची माटी के समान होते हैं यह हम बड़ों का कर्तव्य होता है कि उसे जिस सांचे में चाहें ढाल दें। अंत: बच्चों को संस्कार और संस्कृति का भान कराना आवश्यक है।

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धन्यवाद।

-प्रियंका सक्सेना

(मौलिक व‌ स्वरचित‌)

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