हाऊस वाइफ – रचना कंडवाल 

अरे भई रीमा नाश्ता तैयार हो गया क्या? मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है।अमर ने बेडरूम से आवाज दी।रीमा बाबू जी को दलिया उनके रुम में दे कर बाहर आई। तो अमर ने उसे गुस्से से घूरा जल्दी से हाथ नहीं चला सकती हो। रीमा ने उसी शांत भाव से कहा अभी लाती हूं।आप डायनिंग टेबल पर बैठिए। बाबू जी को शुगर की दवाई लेनी होती है। उनकी ‌तबीयत ठीक नहीं है। ये सब मुझे क्यों सुना रही हो? नाश्ता दो। पहले ही बहुत देर हो गई है। ये क्या बनाया है? 

बिल्कुल भी स्वाद नहीं है। आलू गोभी की सब्जी और परांठे। तुमसे तो अच्छे की उम्मीद करना ही बेकार है।पापा सब्जी अच्छी तो बनी है। दस साल के अंशुल ने मम्मी की तरफ देखते हुए कहा। रीमा एक टक अमर को देख रही थी। बाबू जी की तबीयत ठीक नहीं है। उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना होगा। चेक‌अप के लिए। आप उन्हें दिखा दीजिए। क्या औरत हो तुम? वैसे ही मुझे टाइम नहीं है। जाकर खुद ही दिखा लाओ।सुनो मेरे दोस्तों को डिनर पर बुलाने की सोच रहा था।

पर तुम तो। कैसी हालत बना रखी है तुमने अपनी। वो सब हंसेंगे मुझ पर। अब रीमा को गुस्सा आ गया क्या कमी है मुझ में सारा दिन तुम्हारे घर का, परिवार का ख्याल रखती हूं। सब-कुछ अच्छे से चला‌ रही हूं। और शादी के ग्यारह साल बाद अब तुम्हें मुझ में कमी नजर आने लगी है। ये सब अपने आप से पूछो।अमर ने डायनिंग टेबल से उठते हुए कहा।

आज मैं टिफिन नहीं ले जाऊंगा आफिस में लंच है।  कामवाली बाई नहीं आ रही थी। इसलिए रीमा ने ने घर के काम जल्दी जल्दी निबटाये। फिर बाबू जी को डाक्टर के पास ले ग‌ई। चेक‌अप करवाया शुगर काफी बढ़ गया था। घर आयी।  बाबू जी व अंशुल को खाना खिलाया खुद खाने बैठी तो अमर की सुबह वाली बातें याद आ गई। आंखों में आंसू भर आए। प्लेट वापस खिसका कर बेडरूम में आ गई। 

सोचने लगी कि कामवाली की तो छुट्टी भी होती है।वो तो चौबीस घंटे जब भी कोई बुलाए तभी हाजिर हो जाती है। खाना बनाना, अंशुल का स्कूल, उसे बैडमिंटन ले जाना, उसकी पैरेंट्स मीटिंग, बाबू जी की देखभाल,उनको डाक्टर के पास ले जाना और भी सारे काम करती है।अमर जानते भी हैं…. कि घर में क्या क्या काम होते हैं उन्हें तो लगता है कि सारे काम खुद हो जाते हैं।



हर समय कहते हैं कि तुम ‌करती क्या हो? शीशे के सामने खड़ी हो कर खुद को देखने लगी। ठीक तो कहते हैं अमर कितनी खूबसूरत थी मैं ये क्या हाल कर लिया है मैंने। ये रूखा सा बेरौनक चेहरा, सिर पर ये कसा हुआ जूडा़ न कोई साज श्रृंगार पहले कितनी नफासत से तैयार होती थी। घर का ख्याल रखते रखते खुद का ख्याल रखना भूल गयी।अमर अब भी वैसे ही हैं चुस्त दुरुस्त। वही अपना ख्याल नहीं रख पाती।

 पर उन्हें उसे ऐसा बोलने का कोई हक नहीं है। आजकल उस से कटे‌ कटे से रहते हैं। अब और नहीं वो खुद को बदलेगी किसी और के लिए नहीं खुद के लिए। अगले दिन सुबह उसने नयी शुरुआत की। सुबह उठकर अपना रुटीन चेंज कर दिया। मार्निंग वॉक पर गयी। 

घर आकर अंशुल को तैयार कर स्कूल भेजा, बाबू जी को नाश्ता दवाई देकर,अमर को नाश्ता दिया। अमर ने फिर नुक्स निकाले। वो चुपचाप सुनती रही। बिना कोई तर्क किये। अमर ने लंच बॉक्स के लिए मना किया तो उसने जिद नहीं की। शाम को उसने जिम ज्वाइन कर लिया। वो चुपचाप अपने रूटीन के काम करती। अमर से बहस करना आंसू बहाना लगभग छोड़ दिया था। बेडरूम में भी चुपचाप मैगजीन पढ़ती रहती। जो कुछ अमर पूछते जवाब देती। बदलाव तो उन्हें भी महसूस हो रहा था।

 पर कुछ कह नहीं पा रहे थे। अब उसने अपने बालों को अच्छे से कट करवाया, फेशियल, अपनी स्किन पर ध्यान देना शुरू किया। थोड़ा कपड़ों में भी बदलाव किया। अब अमर से रहा नहीं गया अमर ने उस से कहा आजकल तुम काफी बदल गयी हो। उसने धीरे से कहा कहा एक हाउस वाइफ कभी बदल सकती है क्या? सुनो सोच रहा हूं कि कल अपने दोस्तों को ‌डिनर पर बुला लूं। आप उन्हें बाहर ही डिनर करा दीजिए। घर पर आपको मेरी वजह से कहीं…अमर को शर्म आ गई। वो ‌तुम्हारे हाथ का खाना खाना चाहते हैं। पर मैं अच्छा खाना कंहा बनाती हूं। 



आपको तो पसंद नहीं है आपके दोस्तों को क्या पसंद आयेगा। मैं उन्हें कल शाम को बुला रहा हूं। अगले दिन शाम को उसने खाने में दम आलू,मलाई कोफ्ता, मिक्स वेज,मीठे में गाजर का हलवा रोटी,सलाद,  फ्रूट रायता बनाया। सिल्क की साड़ी पहनी, सादगी से तैयार हुई, बहुत ही खूबसूरत लग रही थी अपने को आईने में देख कर शरमा गई।अमर अपने दोस्तों को लेकर आ गये। 

आज तो रीमा को देख कर उनके होश उड़ गए। हल्के फुल्के माहौल में बातचीत शुरू हुई। विशाल तो रीमा से फ्लर्ट करने लगा। भाभी अमर से तो मुझे जलन हो रही है। काश! आप मुझे पहले मिली होती। खाना खा कर सबने बहुत तारीफ की। उनके जाने के बाद रीमा ‌जब सब कुछ समेट रही थी। तो अचानक से अमर ने उसका हाथ बंटाना शुरू कर दिया। “खाना बहुत अच्छा बना था”। 

“हां सबने बहुत तारीफ की”। विशाल तुमसे ज्यादा ही क्लोज हो रहा था। रीमा मुस्करायी। तो क्या हुआ? कम से कम उसने तो टोंट नहीं मारा। जब वह बेडरूम में आयी तो अमर उसका वेट कर रहे थे। वह बेडरूम में नाइट बल्ब जलाकर कर लेट गई। कुछ समय से उनके रिश्ते सामान्य नहीं रहे थे। मुश्किल से वो एक दूसरे के करीब आते थे।अमर उसका दिल दुखाते थे।  

तो वह उनसे से बचने लगी थी।अमर ने उसके करीब लेटते हुए कहा थक गई हो। “हां” उसने पीठ फेर ली।अमर ने धीरे से उसकी पीठ पर हाथ रखा सुनो मुझे माफ कर दो। किस लिए न चाहते हुए भी रीमा की आवाज भर्रा गई। मेरे बर्ताव के लिए। मेरे बुरे व्यवहार से तुम्हें कितना दुःख पहुंचा है।  जानता हूं। एक औरत चाहे वर्किंग हो,या हाऊस वाइफ हो।वह घर बाहर दोनों बहुत अच्छे से सम्हालती है। 

मैंने तुम्हारे शरीर को लेकर भी बहुत कुछ कहा था। मैं चाहता था कि तुम खुद पर ध्यान दो।पर मेरा तरीका गलत था।  ये भूल गया था कि मेरी और मेरे परिवार की जरूरतें तुम पूरी करती हो।सारा दिन काम, अंशुल को देखना बाबू जी की देखभाल, फिर मैं भी तुम्हें कितना परेशान करता हूं। तब भी तुम कुछ नहीं कहती। रीमा खामोश हो कर सुन रही थी।

 रीमा कुछ तो बोलो। रीमा बोली जब एक औरत हाऊस वाइफ होती है। तो उसका कोई मान सम्मान कहां होता है। वह तो केवल एक मशीन ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌हो ती है। अमर ने रीमा को अपनी बाहों में समेट लिया रीमा गलती तुम्हारी नहीं मेरी है। मैं अपने घमंड में ये भूल गया कि तुम तो इस घर की नींव हो, जान हो। ये घर तो तुमसे  है। 

वास्तव में एक “हाउस वाइफ” होना आसान नहीं है। मुझे ‌माफ कर दो।औरत चाहे वर्किंग हो या हाउस वाइफ उसकी लाइफ कभी भी आसान नहीं होती। वो घर को सजाती संवारती है।उस घर को  जिसमें न उसका नाम होता है। न उसे क्रेडिट मिलता है।

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