तिरस्कार कब तक – सीमा सिंघी : Moral Stories in Hindi

रजत और मनीष दोनों ने साथ साथ ही स्कूल से कॉलेज तक की पढ़ाई पूरी की । रजत के घर में ज्यादा सुविधा न होने की वजह से उसने आगे की पढ़ाई औरंगाबाद रहकर ही जारी रखी मगर मनीष का घर हर तरह से संपन्न होने की वजह से वह आगे की पढ़ाई के लिए मुंबई चला गया। शुरुआत में तो दोनों मित्र का मिलन प्रातः हो जाता था। जब भी मनीष मुंबई से आता। वह रजत से मिलने जरूर आता मगर बाद में धीरे-धीरे उसमें अभिमान आ गया और उसने रजत से मिलना छोड़ दिया।

मनीष जब भी औरंगाबाद आता। वह उस से मिले बगैर ही चला जाता था। हालांकि रजत कई बार कोशिश करता। उससे मिलने के लिए मगर वह कोई ना कोई बहाना बना देता। आखिर रजत भी तिरस्कार कब तक सहता संभवत उसने भी मिलना छोड़ दिया। दोनों अपनी अपनी राहों पर आगे बढ़ते रहे मगर रजत के मन में उसके लिए प्यार कम नहीं हुआ । उसे रह रहकर मनीष की बहुत याद आती थी मगर उसे मित्रों से पता चलता रहता था

कि किस कदर अपने ज्ञान और पैसे का अहंकार  मनीष के सर चढ़कर बोलने लगा था । फिर कुछ दिन बाद पता चला मनीष अमेरिका जा चुका है।अब रजत भी एक सफल डॉक्टर बन चुका था। वह मुंबई के एक बहुत बड़े अस्पताल में नशे के मरीजों का इलाज किया करता था। जिधर देखो डॉ रजत का ही नाम था क्योंकि बड़े से बड़े मुश्किल हालत में भी हर माता-पिता की उम्मीद को वह टूटने नहीं देता था और बड़ी मेहनत और शिद्दत से सरलता के साथ युवा पीढ़ी के साथ दोस्ती का व्यवहार कर उनका इलाज करता और उन्हें समझाया भी करता की जिंदगी कितनी अनमोल होती है।

डॉ रजत  सबकी आंखों का नूर बन चुका था  क्योंकि उसके मृदुल स्वभाव ने पूरी अस्पताल में सबका मन जीत लिया था। आज अचानक डॉक्टर की जगह सिर्फ रजत नाम से किसी ने पुकारा तो वह हैरान होकर तुरंत ठहर गया क्योंकि उसे वह आवाज बहुत चिर परिचित लगी। उसने पीछे मुड़कर देखा। उसका वही पुराना मित्र मनीष खड़ा था । जो काफी बीमार और बदहाली में लग रहा था । रजत ने तुरंत अपने मित्र को गले लगा लिया और कहने लगा।

 मनमीत   –  मधु शुक्ला

अरे मनीष तुम यहां कैसे जबकि मैंने तो सुना था । तुम अमेरिका चले गए हो  फिर अचानक कहते-कहते उसने मनीष के बदन पर नजर डाली तो वह तुरंत सब कुछ जान गया क्योंकि एक डॉक्टर से मरीज की हालत छुपी नहीं होती वह फिर कहने लगा। अच्छा चलो पहले मेरे केबिन में चलो । हम वहीं बैठकर आराम से चाय पियेंगे ।

मनीष ने जैसे ही रजत के केबिन में कदम रखा। वह उसके केबिन को देखकर दंग रह गया क्यों कि उसके केबिन का कोना-कोना अपने ऐश्वर्य का परिचय दे रहा था। केबिन में पहुंचकर रजत ने सबसे पहले दो कप चाय का ऑर्डर दिया और फिर मनीष को अपने केबिन में लगे सोफा पर बड़े प्यार से बैठाते हुए कहा । मेरे दोस्त तुम कहां चले गए थे । तुम्हें पता है मैंने तुम्हें बहुत याद किया और आज तुम्हारी यह हालत इस तरह क्यों और कैसे ?? क्योंकि तुम जानते हो एक मित्र से कुछ नहीं छुपाया जाना चाहिए। मुझे एक बार याद तो किया होता।

अपने मित्र की इतनी प्यार भरी बात सुनकर मनीष की आंखें भर आई । वह कहने लगा मित्र मुझे माफ कर दो। मैने अभिमान में आकर तुम्हारा तिरस्कार भी किया था मगर तुम तो जरा भी नहीं बदले हो । तुम तो आज भी वही रजत हो। 

रजत ने मनीष की ओर देखते हुए कहा अब छोड़ो भी इस बात को क्योंकि दोस्ती में इन सब बातों के लिए कोई जगह नहीं होती है । तुम्हें पता है मैं अस्पताल में अक्सर अपने साथी डॉक्टर को तुम्हारे बारे में बताया करता हूं कि मेरा दोस्त अमेरिका में आज बहुत ऊंचे पद पर है। 

तब मनीष ने अपनी नज़रें नीची कर ली और कहने लगा कैसा ऊंचा पद बल्कि मैं तो जिंदगी और मौत के बीच लड़ रहा हूं सुनकर रजत परेशान होकर पूछने लगा। ऐसी क्या बात हो गई ? तुम मुझे पूरी बात बताओ तब मनीष कहने लगा !

मैं मुंबई तक तो ठीक था जैसे ही मैं अमरीका पहुंचा ! वहां मेरे अभिमान ने मुझे गलत रास्ते पर धकेल दिया और मैं नशे का आदी हो गया । प्रोफेसर की डिग्री हासिल करने  गया था मगर आया खाली हाथ और इधर औरंगाबाद में  पिताजी भी शायद मेरे कारण बीमार रहने लगे और फिर एक दिन इस संसार से चले गए इसीलिए जो भी पैसे थे मां ने अमेरिका में मेरी पढ़ाई के लिए और फिर बाद में मेरे इलाज के लिए खर्च कर दिए। आज हमारा हाल यह है कि बड़ी मुश्किल से गुजारा हो रहा हैं।

 शिद्दत वाला प्यार – आरती झा आद्या 

अब औरंगाबाद वाला घर भी हमारा नहीं रहा। मां की हालत मुझसे देखी नहीं जाती इसीलिए मैं पूरी तरह ठीक हो जाना चाहता हूं मां को मैं  वह सारी खुशियां देना चाहता हूं । जो अब तक दे नहीं पाया मगर जब से मैं  इलाज के लिए मुंबई आया हूं । हर अस्पताल की फीस ज्यादा होने के कारण अपना इलाज नहीं करवा पा रहा हूं और मां को अकेला कहां छोड़ू इसलिए मां भी मेरे साथ दरबदर घूमने को मजबूर हो गई है फिर पता चला कि यहां कोई डॉक्टर रजत है जो किसी भी मरीज की माली हालत अच्छी ना हो तो बिना पैसे के भी इलाज करते हैं बस यही सुनकर आज मैं यहां चला आया मगर सामने तुम्हें देखकर अब मैं रोऊं या हंसू कुछ समझ ही नहीं पा रहा हूं । 

मनीष की बातें सुनकर रजत हैरान रह गया। उसने तुरंत कहा अभी चाचीजी कहां है ? इसी अस्पताल के बाहर बेंच पर बैठी है ।  मनीष की बात पूरी भी नहीं हुई कि रजत मनीष का हाथ थाम कर अस्पताल के बाहर की ओर चल पड़ा। मनीष की मां को  देखकर रजत की आंखें भर आई वह बहुत सम्मान के साथ मनीष की मां के कदमों में झुक गया। 

मनीष की मां ने धीमे से उसे आशीर्वाद देते हुए कहा। माफ करना बेटे मैंने तुम्हें पहचाना नहीं। अरे चाची जी मैं आपका वही रजत हूं । जो स्कूल के दिनों में कितनी बार आपके हाथों का बना खाना खाया करता था और हां आपके हाथों का वह आम का अचार तो मैं आज भी नहीं भूल पाया हूं। 

अब चलिए अस्पताल में मेरे केबिन में चलिए और फिर हम सब घर चलेंगे । जहां घर पर मेरी मां और आपकी बहू और आपके दो पोते रहते है फिर सब रजत के केबिन में आ गए और एक साथ चाय पी। चाय पीते पीते ही रजत ने मनीष की मां से कहा । चाची जी आप फिक्र ना करें। मेरे दोस्त का मैं ऐसा इलाज करूंगा कि थोड़े से दिनों में ही वह पहले की तरह होकर दौड़ने लगेगा और अब आपको कहीं और रहने की जरूरत नहीं है । अब हम सब हमारे घर पर एक परिवार की तरह रहेंगे । आप और हम अलग थोड़ी है चाची जी। मनीष की मां ने कुछ नहीं कहा। शायद उनके पास कहने को कुछ भी नहीं बचा था ।

 मगर आज मनीष से रहा नहीं गया वह बोल पड़ा । मेरे दोस्त मुझे क्षमा कर दे। मैंने तो अभिमान में आकर तेरा कितना तिरस्कार किया। मैं बदल गया पर तुम कभी नहीं बदले और ना ही तुम्हारा व्यवहार बदला। तुम आज भी वही रजत हो। जो बरसों पुराने मेरे मित्र हुआ करते  थे।किसी ने सच ही कहा है वह दोस्ती ही क्या जिसमें धन दौलत एक ऊंची दीवार बनकर खड़ी हो जाए और दोस्ती को ही बदल कर रख दे।

अभिमान में आकर कभी न करना किसी का तिरस्कार।

कौन जाने लौट कर जाना पड़ जाए एक दिन उसी के द्वार।।

 

स्वरचित

सीमा सिंघी 

गोलाघाट असम

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