बदलते रिश्ते (भाग-10) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

अंधेरा होने को था सर ने मुझे हॉस्टल के बाहर छोड़ा कल फिर मिलनें के वायदे के साथ।

 उसके बाद तोह छुट्टी में घर जाना ही था तोह हम साथ में थोड़ा समय बिताना चाह रहे थे । 

सर ने अगले दिन की छुट्टी ले ली थी।

हॉस्टल पहुँच कर मेरी दोस्तों ने मुझे छेड़ना शुरू कर दिया

“सर ने क्या कहा?क्या बात हुई?

और ना जाने क्या क्या।

लेकिन मैं और सर दोनो ही अभी कहीं बाहर इस बात को खोलना नहीं चाहते थे।

 इसीलिए मैं बस उन लोग को मुस्करा र जवाब देती रही।

ऐसा कुछ नही है जैसा तुम लोग सोच रहे हो”।

रात निकाले नही निकल रही थी बस सुबह का इंतजार था, और बस 10 बजते ही मैं अस्पताल से निकल कर सर का इंतजार करने लगी

इससे पहले की वह अपने सीट से उतर कर मेरे लिए कार का दरवाजा खोलते मैं जल्दी से कार का दरवाजा खोल के बैठ गई।

वह हल्का सा मुस्कुरा दिये,

वह बोले,

 “ कहां चलने का इरादा है?”

मैंने कहा, “मुझे तोह यहां के बारे में ज्यादा पता नहीं आप को जहाँ सही लगे चलते हैं”।

उन्होंने कहा,” जैसा आप चाहें “

रास्ते में हम दोनों की कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई, जगजीत सिंह कि गजलें चल रहीं  थी हम वही सुनने का आनंद ले रहे थे।

कार बहुत ही सुन्दर पार्क के पास रुकी,

 जिसमें बीच बीच में कुछ रेस्टोरेंट भी बने हुए थे। 

लेकिन जब हम कार से उत्तर कर पैदल वहां चलने लगे तोह जहाँ तहा लड़के, लड़कियां दिखने लगे उनमे से कुछ बहुत ही फूहड़ हरकतें कर रहे थे।

मुझे वहां जाने में घबराहट सी होने लगी,

 तोह सर बोले ,

इन सब पर ध्यान क्यों दे रहीं हो? नको इग्नोर करो हम ऐसा कुछ करने यहां नहीं आये

मैं बस तुमसे शांति से बैठकर बातें करना चाहता हूँ इसीलिए हम यहां आये हैं

और अगर तुम्हे यहां ठीक महसूस नही हो रहा तोह कोई बात नही हम  कहीं और चलतें हैं”।

 

मैंने कहा, “नहीं नहीं ऐसी कोई बात नही”।

फिर हम लोग पार्क में ही जहाँ,थोड़ी भीड़ कम थी वहाँ बैठ गए।

हम दोनों ने बातचीत करना शुरू किया

 उनसे बातचीत करके जल्द ही समझ आ गया था वोह अपनी उमर से कहीं ज्यादा परिपक्व थे गए। 

हम दोनों ने तोह एक दूसरे के साथ  जिंदगी बिताने का निर्णय ले लिया था

लेकिन क्या हमारे परिवारों को भी यह रिश्ता मंजूर होगा, मुझे यह बात रह रह कर परेशान कर रही थी।

इतने में ही सर बोले,

तुम तोह मेरे घर वालो के इम्तिहान में पास हो गई हो मेरा इम्तिहान अभी बाकी है” 

मेरे परिवार में मैं और मम्मी ही हैं और मम्मी को तोह तुम पहले ही पसंद आ चुकी हो”।

तोह मैंने उनको कहा कि,

 “मैं आपके घर आपके स्टूडेंट की हैसियत से गई थी वैसे पसंद करना और बहु के रूप में पसंद करने में फरक होता है “।

वोह हल्का मुस्कुराये फिर बोले,

मम्मी को मेरे दिल में क्या चल रहा था, उसकी सब खोज खबर थी उस दिन तुम मेरे घर स्टूडेंट की हैसियत से आई जरूर थी लेकिन वोह तुम्हारा सच था,

 मम्मी तोह तुम्हे मिल रही थी अपने चिंटू की पसंद के रूप में

और उनको अपने चिंटू की पसन्द बहुत पसंद आई”।

मम्मी तोह तेयार बैठी हैं, तुम और तुम्हारे घर वाले जब भी हाँ बोलेंगे हम बारात लेकर पहुँच जाएंगे”।

मैंने उनको झूठ मुठ के गुस्से के साथ देखा,

 असल में तोह मन ही मन मैं बहुत खुश थी, 

जब पता लगा कि यह भी मेरी तरह मुझे कब से  प्यार करते थे और आंटी जी की तरफ से हरी झंडी मिलने की ख़ुशी तोह और भी ज्यादा थी।

फिर इन्होंने मुझसे मेरे परिवार के बारे में पूछना शुरू किया

कौन कौन हैं घर में? सब क्या करते हैं?

सबकी क्या उम्मीदें हैं, अपने होने वाले दामाद से”

और मैं भी बस जैसे सब बता देना चाहती थी । 

हम दोनों ने जिन्दगी के जोह इतने साल अलग जगह, अलग माहौल में बिताये थे, उनसे उनको एक दिन में ही रूबरू करवा देना चाह रही थी।

 मैं अपने में इतनी खोई हुई थी कि मैं बोले जा रही थी बस बिना यह परवाह किये कि सामने वाला सुन भी रहा है कि नहीं।

वोह मुझे देख कर जोर जोर से हंसने  लगे।ओर मेरे गाल खींच कर बोले बस करो मेरी एक्सप्रेस ट्रेन

हमनें अपने भावि भविष्य में क्या क्या सपने हैं, अपने व्यवसाय को लेकर हमारा क्या नजरिया है  ओर बहुत सी बातें की। 

वोह मेरी हर परेशानी हर आशंका को बड़ी ही तन्मयता से सुनते और उनके पास उन सबका बहुत परिपक्व जवाब होता।

मुझे अपनी पसंद पर नाज हो रहा था

साथ ही साथ दिल में ख्याल आता इनमे कुछ ऐसा है ही नहीं की पापा मम्मी भईया रिश्ते के लिए मना कर सकें।

फिर  भी बात तोह करनी ही पड़ेगी।

 “कुछ खाना भी हैं या बस यूहीं बातों से पेट भरना है ?“वह बोले,

ओह मैं बस ऐसे ही कुछ सोच रही थी”,मैं बोली,

 वोह खड़े हो गए और फिर मेरी तरफ हाथ बड़ाया  खड़े होने में सहायता लिए,

हम रेस्टोरेंट में खाने के लिए बैठे वहाँ भी हम दोनों एक दूसरे से एक दूसरे की पसंद पूछते रहे और एक दूसरे को और जानते रहे।

वोह मेरे कानों के पास आकर बोले,

सब तोह सोच लिया कुछ यह भी तोह सोच लें,

शादी के बाद हनीमून के लिए कहा जाएंगे? वहाँ क्या पहनेंगे?

कैसे हनीमून मनाएँगे?

मेरा चेहरा एक दम लाल हो गया तोह वोह मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोले,

क्यों जाएंगे नहीं क्या?

मैं कुछ भी नहीं बोली बस सर झुकाये रखा,

 तोह वोह बोले

 “ तापसी बिना मतलब का परेशान मत हो मैं तोह बस तुम्हारी टांग खिचाई कर रहा था”।

और ऐसे दिन कहां निकल गया पता ही नही लगा।

शाम में सर नें मुझे हॉस्टल छोड़ा, अगले दिन मेरी सुबह  की ही ट्रेन थी।

सर ने बहुत कहा कि वोह छोड़ देंगे, लेकिन मैं नहीं मानी।

हमने भरे मन से विदा ली इस वादे के साथ की मैं घर जाकर घर वालों को जल्द ही हमारे बारे में बताउंगी।

सुबह सुबह ही अपने दोस्तों से मिल कर मैं हॉस्टल से निकल गई।

सभी दोस्त, बस कुछ आगे पीछे निकलने ही वाले थे।

ट्रेन अपने समय से थी, ट्रेन में बैठते ही नींद आ गई।

 नींद खुली तोह स्टेशन आने वाला था, मैंने समान समेटा,

 स्टेशन पर अनिरुद्ध भईया लेने आये हुए थे।

 मैं उनके गले मिली फिर बस हमने जल्दी से समान कार में रखा और चल दिए घर।

 

 रास्तें  में हम बहुत सारी इधरउधर की बातें करते रहे

मैंने उर्मि का भी पूछा

भईया ने बताया,

आज कल काफी व्यस्त चल रही है, नौकरी के लिए अलग अलग विद्यालयों में आवेदन दे रही है।

तपु यह छोड़ तुझे उर्मि ने बताया होगा शायद, आज कल उसके घर में उसकी शादी की बात चल रही है वह बहुत परेशान है।

मेरी अकेले की हिम्मत नहीं की पापा मम्मी से बात करुँ, तुझे मेरा साथ देना होगा।

तु ही है जोह अब हम दोनों की नइया किनारे लगा सकती  है। “

मैंने कहा, 

हाँ भईया मुझे भी तोह जल्दी है उर्मि को अपनी भाभी बनाने की । 

आप चिंता ना करें मम्मी पापा को भी क्या ही एतराज होगा। 

उर्मि पड़ी लिखी सुलझी हुई लड़की है। अंकल आंटी भी तोह कितने अच्छे हैं मम्मी पापा की उनसे अच्छी बनती भी है।

 बस मम्मी पापा को बताना ही तोह है आपकी पसंद का

कि आपने उनकी बहु पसन्द कर ली है

और हम दोनों हंसने लगे।

मैं भईया को क्या समझाती मेरी तोह खुद ही भईया को सर के बारे में बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी ।

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लेखिका : अंबिका सहगल

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