संयोगिता का विवाह एक बड़े घराने में तय हो हुआ था। घर में रौनक ही रौनक थी। लड़के वालों को जैसी लड़की चाहिए थी संयोगिता बिल्कुल वैसी ही थी। संयोगिता के दूर के फूफा जी ये रिश्ता करवा रहे थे। बार-बार पूछने के बाद भी अभी तक फूफा जी ने राजेश जी को दहेज का पैसा नही बताया था। उन्होंने कहा था ” राजेश बाबू वो बड़े लोग हैं, हैसियत के हिसाब से आपने जो सोचा है वो दे देना। दहेज माँग कर पैसों और रिश्तों का अपमान मत कीजिये।
राजेश जी को लड़के का खानदान, उनका व्यापार, लड़का सब पसन्द था। इसलिए उन्होंने अपनी लाडली बेटी के लिए 10 लाख रुपये उपहार के तौर पर देने के लिए सोच रखा था। साथ में अपनी बेटी दामाद को एक गाड़ी भी। बाकी विवाह में पार्टी प्लॉट व अन्य स्वागत में जो खर्चा हो जाये।
संयोगिता बहुत खुश थी, उसने विवाह पूर्व अपने होने वाले पति अभिनव से बात करना भी शुरू कर दिया था। अभिनव बहुत कम बोलता था, बहुत संयमी लड़का था। ज्यादातर तो संयोगिता ही बोलती थी।
राजेश जी ने एक बड़ा मैरेज पैलेस बुक किया था और तय समय पर बारात जब आई तो खूब धूमधाम से बारातियों का स्वागत किया गया। खूब नाच गाना, गीत संगीत हुआ, पटाखे भी खूब छोड़े गए। दूल्हे अभिनव की आरती उतारी गई और नवयुवक लड़के दूल्हे राजा को घोड़े से उतारकर मंडप तक अपने कंधों पर ले गए।
शादी की शुरुआती रश्मों को निभाया जाने लगा। अब ये वही फलदान वाला समय था जब लड़के के हाथ में फल, नारियल, मिठाई, उपहार इत्यादि दिया जाता है। फूफा जी ने राजेश जी को इशारा किया कि अब वो दहेज के पैसे दे दें।
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शादी का कार्यक्रम चलने लगा और राजेश जी पैसे देने के लिए मौका देखने लगे। विदाई के समय राजेश जी ने अभिनव के पिताजी को बुलवाया। जब वो फूफाजी के साथ कमरे में आये तो साथ में अभिनव भी था। राजेश जी चेहरे पर खुशी दिखाते हुए पैसे से भरा शुटकेश अपने समधी को थमाते हुए बोले…” समधी जी सिर्फ दस लाख है और साथ में दामाद जी के लिए एक गाड़ी।
पैसे और गाड़ी का नाम सुनकर अभिनव के पिता जी थोड़े नाराज हुए और राजेश जी को सोफे पर बिठाते हुए बोले…” समधी जी..! आप ये क्या कर रहे हैं..? हमें आपकी बिटिया बड़ी अच्छी लगी। ” हमारे खानदान में लेने- देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो, इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।,,
अपने पिता की बात को आगे बढ़ाते हुए अभिनव बोला..” अंकल हमें आप अपनी इतनी बड़ी अनमोल संम्पति संयोगिता दे रहे हैं ये क्या कम है, आप तो बस आशीर्वाद देकर विदा कीजिये,,।
दामाद और समधी की बातें सुनकर राजेश जी की आँखो में आँसू आ गए। उधर संयोगिता खिड़की से सब सुन रही थी। उसे अपने भाग्य पर इतराना आया पर ये भाग्य शायद पिता के कर्मो का भी हो। संयोगिता की विदाई हुई और राजेश जी ऐसे परिवार को देखते रह गए।
शैलेश सिंह “शैल,,
गोरखपुर उ.प.