वो अनजान लड़का – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

38 साल पहले की बात है जब लतिका की नई नई शादी हुई थी……

मैं सोचती थी….. मेरी भाभी गोरी सी , सुंदर सी होंगी पर आप बिल्कुल अच्छी नहीं दिखती है भाभी…..!

ये वाक्य थे लतिका की ननद चंचला के….

लतिका आश्चर्य से चंचला की ओर देखती रह गई…..कोई ऐसे कैसे बोल सकता है  ,एकदम से मुंह पर कि …..आप सुंदर नहीं हो , अच्छी नहीं दिखती हो …..!

      लतिका को गुस्सा तो इतना आया कि कह दे ….तीन तीन कोयले वाली सिगड़ी के बीच बैठकर दो-दो डोंगे भर रोटी बनाना पड़े तब समझ में आए सुंदरता क्या होती है…. पसीने से तरबतर जान निकलती रहती है….. ननद रानी आपको तो बस बैठ कर पैर हिलाते हुए मुआयना  ही करना है…..!

     तीन भाइयों की इकलौती बहन चंचला….. शोख  ,चंचल , नटखट सी इतराती , इठलाती पूरे घर में धमा चौकड़ी मचाती रहती….. उनके इसी चंचल स्वभाव के कारण उनका नाम चंचला पड़ा….. जब लतिका को पता चला की चंचल स्वभाव के कारण इनका नाम चंचला पड़ा …. तब लतिका सोचती …. ये चंचल वंचल नहीं … मुंहफट है मुंहफट……

प्यार में बिगड़ी हुई मुंहफट बच्ची 

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पर संयुक्त परिवार में लतिका को कुछ कहने की अनुमति भी नहीं थी नई-नई बहू कुछ मर्यादाएं तो रखनी ही पड़ती है….!

   घर में भी सभी लोग कहते … जाओ चंचला भाभी के साथ रहो ….और कोई कहे ना कहे…. ननद रानी चंचला तो हर वक्त भाभी के साथ ही रहना चाहती थी…।

    खाना बनाने के बाद आराम करने के समय में भी भाभी के साथ ही रहना पसंद करती थी ….कभी-कभी लतिका सोचती भी मुझे कुछ समय अकेले रहने भी नहीं देती चंचला….।

    लेकिन एक बात तो थी…. चंचला बेबाक थी ….पर लतिका के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहती थी…..!

     भाभी आपकी साड़ी दिखाइए ना… आपने कौन सी नेल पॉलिश लगाई है ….मैं भी लगा लूं क्या….? एक नन्ही बच्ची जिसे अपनी नई-नई भाभी से जो अपेक्षाएं थीं …वो चंचला में साफ दिखाई देता था…!

लतिका के होठों पर एक मुस्कान आ ही जाती थी….हां चंचला ….लगा लीजिए ना  नेल पॉलिश…..कई बार लतिका को चंचला की बातें खराब तो लगती पर जब वो ठंडे दिमाग से सोचती तो लगता…… एक नासमझ बच्ची …बिना फिल्टर किए … बिना सोचे समझे… दिल में आए हर बात…हर जज्बात को सामने रख देती हैं…! 

और उस उम्र में हर बच्चे की ख्वाहिश होती है ….घर में सुंदर सी , प्यारी सी भाभी आए… उस दौरान सोच भी वैसी ही होती है … हकीकत से दूर….उतनी समझ कहां होती है …तब लतिका को लगता  चंचला गलत तो नहीं है….!

      फिर ज्यादा से ज्यादा समय मेरे साथ ही बिताना पसंद करती हैं …जब तक मैं रसोई में खाना बनाती हूं वो भी गर्मी , ठंडी में मेरे साथ ही होती हैं….

 अपने स्कूल की बातें , घर की बातें और न जाने कितनी सारी बातें ….मुझसे करती हैं घर की बहुत सारी बातें तो मुझे चंचला से ही पता चलती है…!

कभी-कभी लतिका से कोई गलती भी हो जाती तो चंचला पूरी तरह पक्ष लेकर लतिका की तरफदारी करती थी… यदि किसी काम से पतिदेव रोहन बाहर गए हो तो फिर चंचला को लतिका के पास ही सोना होता था…. समय के साथ-साथ चंचला की उम्र बढ़ती गई ……हाई स्कूल में प्रवेश करते ही कई ऐसी मन की बातें ,दिल की बातें … वो लतिका से सांझा करने लगी थी…!

देखते ही देखते चंचला और लतिका ननद भाभी से कहीं ज्यादा एक अच्छी और गहरी दोस्त बन चुकी थी… लतिका अपने मन की खीझ, अपने ही घर के लोगों के बारे में खुलकर अपनी ननद चंचला से बातें कर लेती थी… या कहें मन में चल रहे अपने विचार स्पष्ट रूप से रख पाती थी….जिसे चंचला भी निष्पक्ष रूप से सुनती और समझती भी थी…!

  एक दिन चंचला ने बताया…..जानती है भाभी…. हम सहेलियां स्कूल जा रहे थे…. हमारी आपस की बातें…..

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यार…. तुम लोग कुछ नोटिस किए हो….? 

 क्या …?

नहीं तो…. बता…ना…. समूह में स्कूल जा रही सहेलियों की एक साथ आवाज आई ……ध्यान से देखना ना ….. वो आगे वाला जो घर है ना ….उस गेट पर एक लड़का खड़ा रहता है…. और वो  हमारी तरफ ही निहारता रहता है चंचला ने कहा….!

तभी निशा ने हां मैं हां मिलाते हुए कहा… हां हां मैं भी कुछ दिनों से देख रही हूं…… और चंचला ,निशा , कविता और अनुराधा चारो सहेलियां हंस पड़ी…!

आज जैसे ही वो वाला घर आया… रोज की भांति एक सुंदर ,स्मार्ट ,गोरा चिट्टा नवयुवक अपने गेट पर खड़ा था… सभी सहेलिया उस युवक को देखते ही मुंह पर हाथ रख ..खी खी कर हंसने लगी….एक चंचला ही थी जो एक नजर उस युवक की ओर देखी फिर धीरे से नजरे झुका ली…!

    थोड़ी दूर निकलने के बाद चंचला ने अपनी सहेलियों से नाराजगी प्रकट करते हुए कहा…. तुम लोगों को किसी के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए… उसे देखकर हंसना क्यों था…? वो क्या सोचता होगा….?

अरे चंचला तुझे क्या हो गया… बड़ी तरफदारी कर रही है तू उसकी…? कहीं तुझे उससे प्यार व्यार तो नहीं हो गया ना….?

दूसरी सहेलियां उसे छेड़ने लगी …

  नहीं रे , ऐसा नहीं है ….पर… अच्छा छोड़ …जाने दे ….बातों ही बातों में कब स्कूल आ गया पता ही नहीं चला…।

तो क्या ननद रानी आपको वह लड़का कहीं पसंद तो नहीं आ गया ना…लतिका ,चंचला को छेड़ना चाही…!

अरे नहीं भाभी मैं तो सिर्फ आज की आपबीती बात बता रही हूं …कह कर चंचला  ने भी बात टाल दी…!

चंचला बैडमिंटन की अच्छी खिलाड़ी थी… खेल के पीरियड में वो बैडमिंटन खेला करती थी…. कभी-कभी पीरियड की अवधि समाप्त भी हो जाती… पर गेम अधूरा रहता तो वो गेम पूरा करके ही घर के लिए निकलती…. चंचला के साथ उसके शिक्षक प्राचार्य भी बैडमिंटन खेला करते थे….!

 चूंकि जिला स्तरीय , राज्य स्तरीय  खेला करती थी… इसीलिए स्कूल के सभी स्टाफ इसका भरपूर सहयोग करते थे…. इस दौरान इसकी सहेलियां भी उसकी प्रतीक्षा करती थी.. वो सब चंचला का खेल देखा करती थी  और प्रोत्साहित भी करती थी…. खेल समाप्त होने पर सभी सहेलियां साथ में ही घर वापस आती थी…!

चंचला के चलते सभी सहेलियों के घर जाने में भी देर हो जाती जिससे उनके अभिभावक नाराज होते हैं…!

एक दिन स्कूल से लौटने पर चंचला के चेहरे पर घबराहट देख लतिका ने पूछा… अरे क्या बात है चंचला परेशान लग रही है…?

इशारों ही इशारों में चंचला ने बात बाद में बताने का वादा कर चुप हो गई…. क्योंकि उस समय घर में मम्मी पापा भैया सभी लोग थे… और चंचला कुछ बातें सिर्फ अपनी भाभी से ही सांझा कर सलाह लेना चाहती थी…।

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मौका और अवसर देखकर लतिका ने पूछ ही लिया … चंचला आप परेशान लग रही है… क्या बात है बताइए….

भाभी…. वो ….यदि घरवालों को पता चलेगा तो मेरा बैडमिंटन खेलना बंद हो जाएगा…. चंचला के आंखों में घबराहट साफ दिखाई दे रही थी…. लतिका भी चिंतित हो बोली जल्दी बताइए हुआ क्या ….?

दरअसल आप तो जानती हैं… मेरी सहेलियों के देर से घर पहुंचने पर उनके अभिभावक नाराज होते हैं …इसलिए आज  वो मेरा इंतजार नहीं की…. छुट्टी होते ही वो अपने-अपने घर चली गई…!

कल सिलेक्शन मैच है तो आज प्रैक्टिस में देरी हो गई थी…. मैं अकेली स्कूल से घर आ रही थी…

 कुछ दूरी पर दो लड़के आपस में मेरे सामने दो साइकिल ऐसे अडा  दिए थे जिससे मैं आगे बढ़ ही ना सकूं….भाभी में डर गई थी …सच  में भाभी बहुत डर गई थी…!

कोई देख तो नहीं रहा है ….यदि कोई देख लेगा और पापा को पता चल जाएगा तो शामत ही आ जाएगी…!

फिर…. फिर क्या हुआ चंचला…?

फिर वो ही लड़का सामने दिखा… वो ही भाभी …जो रोज गेट के पास खड़ा मिलता था….उसको देखते ही वो दोनों लड़के भाग गए…..मैं बुरी तरह घबरा गई थी… उसने मुझसे कुछ नहीं बोला ….धीरे से मुस्कुरा कर आगे निकल गया…!

 ओह …तो ये बात है… आप घबराई क्यों…? आपने गलती क्या की थी जो डर रही है…..गलती तो उन लड़कों की थी जिन्होंने आपके आगे साइकिल खड़ी कर दी थी…. कहीं वो लड़का कुछ नहीं बोला ….इसका दुख तो नहीं ना आपको….. इस बार लतिका ननद रानी को छेड़ कर थोड़ा माहौल हल्का करना चाहती थी…!

  बात आई गई और खत्म हो गई… इस बीच चंचला का सिलेक्शन भी हो गया और वो स्टेट खेलने बाहर चली गई…. लौटने पर सहेलियों ने बताया… एक दिन वही लड़का हिम्मत कर सामने आया था और पूछा आपकी सहेली आजकल नहीं दिख रही …फिर सहेलियों ने बताया वो बैडमिंटन खेलने बाहर गई है …. अच्छा …बोलने के बाद खुश होता हुआ बोला … बैडमिंटन खेलती है… बस इतना ही तो कहा था वो अनजान युवक…!

फिर इसके बाद कभी वो दिखा नहीं… लगता है इन्हीं 10 दिनों में उसके पापा का तबादला हो गया और , वो यहां से चले गए हों…।

पर न जाने क्यों… जब भी उस रास्ते से चंचला गुजरती …उस अनजान युवक की याद आ ही जाती थी ….दिन बीतते गए…… स्कूल से कॉलेज में प्रवेश ले लिया था चंचला ने……अब तो घर में शादी की बात भी चलने लगी थी….. चंचला को भी उस युवक की यादें धुंधली सी होने लगी थी…!

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हां …एक बात जरूर थी… यादें भले ही धुंधली जरूर हो रही थी….पर चंचला उन यादों को भूलना नहीं चाहती थी…. एक खूबसूरत प्यारी सी यादें… जिन्हें याद कर ही चंचला के होठों पर एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती थी…।

  चंचला की शादी धूमधाम से संपन्न हुई… पहली बार पति तन्मय के साथ चंचला मायके आई…  अड़ोसी , पड़ोसी ने अपने घर खाने पर बुलाया…।

  पड़ोस में रहने वाले दिनेश से चंचला की खूब जमती थी…. दोनों हमउम्र थे आपस में लड़ाइयां , नोंकझोक भी होती थी…. दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे पर समय-समय पर दिनेश भाई  भी बन जाता था…!

  चंचला और तन्मय दिनेश के घर खाने पर गए….आंटी अंकल और दिनेश ने बहुत आवभगत की …..तन्मय से मिलकर दिनेश ने कहा …..तू बहुत किस्मत वाली है चंचला ….जो तुझे तन्मय  जैसे सुशील , सुंदर और समझदार पति मिले हैं….. वरना….

पहले तो मेरे पति की तारीफ करने के लिए धन्यवाद दिनेश….  पर ये वरना क्या ….?

  अरे वो कुछ भी नहीं…. मैंने तो ऐसे ही बोल दिया ..दिनेश ने बात को विराम देने की सोची…!

  अब बता भी ना दिनेश…. आधा बोलकर बात रोका नहीं करते…. चंचला ने भी बात जानने की ठान ही ली थी…….!

    हां हां भाई बताता हूं ….जब तक तू जान नहीं लगी तेरे पेट में दर्द होता रहेगा…।

 अपने मोहल्ले के आखिरी वाला मकान है ना….हां हां उस मकान की बातें जानने के लिए चंचला भी काफी उत्सुक थी ….उसी मकान में तो वो अनजान युवक जो रहता था…!

क्या हुआ उस मकान में..?

उसमें कुछ दिनों पहले एक मराठी परिवार रहा करता था….उनका एक ही बेटा था …क्षितिज …बहुत सुंदर स्मार्ट… तूने स्कूल आते जाते देखा होगा चंचला …….हां दिनेश देखा है… अच्छा तो उसका नाम क्षितिज था..!

चंचला ने उत्सुकता दिखाते हुए पूछा..।

वो मेरा दोस्त था…. वो तेरा कब से दोस्त हो गया दिनेश…?.तूने तो कभी बताया नहीं…

तन्मय ये उसी लड़के के बारे में बात हो रही है ….जिसके बारे में मैंने तुम्हें बताया था… चंचला तन्मय से पूरी आप बीती बात पहले ही बता चुकी थी…!

हां …मतलब दोस्त ही था… हम लोग ट्यूशन साथ-साथ जाते थे..बस… इतनी ही दोस्ती थी…!

थोड़ा अजीब था…. पढ़ाई में सामान्य था… उसके घर वाले उसका बहुत ज्यादा ध्यान रखते थे …..मुझे हैरानी भी होती थी…. थोड़ी भी देर होने पर उसके पापा ट्यूशन से उसे लेने आ जाते थे…!

  वैसे मुझे कुछ ज्यादा मालूम नहीं है उसके बारे में….बस एक दिन वो मुझसे तेरे बारे में पूछ रहा था चंचला ….पहले तो मुझे गुस्सा आया ….पर उसके पूछने में इतनी मासूमियत थी कि मैंने बता दिया था ….यहीं बगल में रहती है तू…

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जानती है चंचला …. वो सनकी तेरा आशिक था….. बेचारे का अब किसी मनोचिकित्सालय में इलाज चल रहा है…!

दिनेश मजाक मजाक में मनोरोगी , सनकी जैसे शब्दों का प्रयोग कर क्षितिज का परिचय तो करा दिया था…. ये सब बहुत हल्के में , मजाक के मूड में बातें हो रही थी….!

पर ये सब बातें सुनकर चंचला थोड़ी शांत सी हो गई थी….अब तुझे क्या हो गया चंचला ..?

देखिए देखिए तन्मय जी…. उस सनकी क्षितिज का नाम सुनते ही चंचला शांत हो गई …..कहीं तुझे भी उससे प्यार व्यार नहीं था ना …..?

दिनेश ने एक बार फिर चंचला को छेड़ना चाहा !

दिनेश …तुम्हें नहीं मालूम सनकी या मानसिक रूप से अस्थिर क्षितिज था या ……

…….वो….

इस बार चंचला के स्वर थोड़े रुखे व सख्त थे….

वो कौन चंचला…?

दिनेश ने भी आश्चर्य से पूछा…

वही सरफिरे …..यदि उस दिन क्षितिज नहीं होता तो न जाने क्या हो जाता …!

इलाज की जरूरत तो ऐसे सरफिरो को है …..जिनके चलते आम लड़कियों को राह चलते मुश्किलों का सामना करना पड़ता है….. फिर धीरे-धीरे चंचला ने वो घटना सबको बताई…..तन्मय को पहले ही बता चुकी थी…!

ये सच है की लड़कियों को आत्मरक्षा का हुनर सीखना जरूरी है… पर उससे भी ज्यादा जरूरी ऐसे मनचले, सरफिरे युवको के विकृत मानसिकता का इलाज जरूरी है… ताकि समाज में लड़कियां भी बेखौफ रह सके…!

ये बातें चंचला बड़े आत्मविश्वास के साथ बोल रही थी जो उसे उसकी भाभी लतिका ने सिखाया था…!

ऐसा प्यारा रिश्ता ननद भाभी…लतिका और चंचला का था…!

जब से चंचला समझदार हुई थी… बचपन में उसके द्वारा कही हुई लतिका के लिए बातें… भाभी आप सुंदर नहीं दिखती हो… उससे वो बहुत शर्मिंदा होती थी और बार-बार भाभी से माफी मांगती रहती थी पर लतिका भी बहुत सहज हो हमेशा तारीफ करते हुए कहती …. वो आप नहीं आपकी सच्चाई बोल रही होती थी ननद रानी…

देखना… क्षितिज ठीक हो जाएगा भगवान उसकी रक्षा जरूर करेंगे.. क्योंकि उसकी मंशा नेक है…!

एक ठंडी सांस लेते हुए चंचला ने विदा ली…!

(स्वरचित ,सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय : # ननद 

संध्या त्रिपाठी

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