राजा सूरज भान और रानी रूपमती का प्रेम सब जानते थे,रानी अपने नाम के अनुरूप सुंदरता की खान थीं और राजा की प्रेयसी,मित्र,हमदर्द और सबसे बड़ी सलाहकार।
राजा उनपर बहुत विश्वास करते,हर वक्त उन्हें अपने साथ रखते,उनके खिलाफ,जाहिर है,कभी कुछ न सुनते।
रानी को भी धीरे धीरे अहंकार होने लगा और उनका दुर्व्यवहार जनता से बढ़ने लगा,लेकिन चापलूसों की बढ़ती संख्या के कारण राजा के कानों तक कुछ न पहुंच पाता।
एक बार रानी अपनी कुछ खास सखियों और दास दासियों संग वन विहार को गयीं।खूब आखेट किया,देरतक नौका विहार ,स्नान आदि करने के बाद ठंडी हवाओं से जब शरीर कांपने लगा,पास की गरीब लोगों की घास फूस से बनी झोपड़ियां जलवा के आग से गर्मी प्राप्त कर खुशी खुशी महल आ गईं।
राजा सूरजभान अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध थे।उस दिन बहुत समय बाद उनके न्याय का घण्टा किसीने बजाया,ये किसी विशिष्ट अवसर पर ही बजता था।
कुछ गरीब आदमी औरत बदहाल स्तिथि में खड़े कांप रहे थे।
राजा तक संदेश पहुंचाया गया कि किसी निर्दयी ने इनकी झोपड़िया जल दीं।
राजा गुस्से में लाल पड़ गए:किसकी मज़ाल जो ये दुस्साहस कर सके।
दूसरी तरफ चुप्पी छा गयी।
राजा ने अभयदान दिया:निश्चिन्त हो बताओ
ये क्या,इशारा खुद रानी रूपमती की तरफ किया गया
चारों ओर तलवारें खिच गयीं,राजा खुद हतप्रभ रह गए।
इसका न्याय कल होगा,कह सभा विसर्जित हो गयी।
अगले दिन,सबको डर और उत्सुकता थी कि आज न्याय मिलेगा उन गरीबों को या नहीं।
राजा ने गम्भीरता से बोलना शुरू किया:न्याय की तराजू में कोई छोटा बड़ा नही है,तमाम जानकारियों के बाद पता चला है कि सारे आरोप सही हैं,रानी रूपमती ने अपने क्षणिक सुख के लिए किसी का घर छीनने की कोशिश की जो अक्षम्य और अमानवीय है।उन्हें ये दण्ड दिया जाता है
कि वो वहां जाकर तब तक रहें जब तक पुनः वो वहां वो झोपड़ियां बनवा नही देतीं,और ध्यान रखा जाए इस काम में कोई राजकीय व्यक्ति उनकी कोई सहायता करता पकड़ा गया तो वो दंडित किया जाएगा।ये काम उन्हें बिल्कुल अकेले करना है।
हर किसी का सिर राजा के न्याय पर गर्व से ऊंचा हो गया।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद