दोपहर के डेढ़ बज रहे थे। नीलांजना अपनी बहू सुहाना के कॉलेज से लौटने का इंतजार कर रही थी। सुहाना शहर के डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर थी,वो रोज दो बजे तक कॉलेज से घर लौट आती। फिर,दोनों साथ में लंच करती।
सुहाना ने नीलांजना से कितनी बार कहा भी था की “माॅंजी आप मेरा इंतजार मत किया करो। समय पर खा लिया करो।” वह दोपहर तक का सारा खाना बनाकर कॉलेज जाती ताकि नीलांजना को कोई परेशानी ना हो। लेकिन, सुहाना के लाख मनुहार करने पर भी नीलांजना उसके बिना खाना नहीं खाती थी। जब सुहाना गुस्साती तो उसे यह बोलते हुए चुप करा देती “तू ,मुझे और कोई काम तो करने नहीं देती। कम से कम खाने पर तेरा इंतजार तो कर सकती हूॅं। यह सुन सुहाना मुस्कुरा कर रह जाती।
आज सुहाना का बर्थडे था। इसी खुशी में नीलांजना ने उसका फेवरेट गाजर हलवा बनाया था| “सबकी पसंद का ध्यान रखती है।बस अपनी ही पसंद का ख्याल नहीं है। पहले तो गाजर हलवा देखते ही गुस्सायेगी ‘आपने क्यों इतनी मेहनत की? मुझसे कहा होता, मैं बना देती।’ लेकिन,जैसे ही इसका स्वाद उसके मुॅंह में जाएगा, अपनी सारी नाराजगी भूल मेरे गले में बाहें डालकर बोलेगी ‘माॅंजी,आपके हाथों में तो जादू है। यू आर द बेस्ट।आपसे बढ़िया गाजर का हलवा इस वर्ल्ड में कोई नहीं बना सकता।’इतनी बड़ी हो गई है लेकिन बचपना अभी तक नहीं गया।” नीलांजना ये सब सोच मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी और बार-बार घड़ी देखे जा रही थी।
“दो बजने ही वाले हैं, मैं खाना गर्म कर देती हूँ। नहीं, तो आते ही किचन में भागेगी।” ये सोचते ही नीलांजना जी किचन में खाना गर्म करने चली गई।
उन्होंने खाना गर्म करके टेबल पर लगा दिया। ढाई बजने वाले थे, पर सुहाना का कोई अता-पता ही नहीं था।मोबाइल भी नहीं लग रहा था। ट्रैफिक में फॅंस गई होगी। सोचते हुए उसने समय बिताने के लिए टी.वी. ऑन कर लिया।न्यूज़ में कोलकाता की लेडी डॉक्टर के रेप और मर्डर की खबर दिखाई जा रही थी। पहले से ही सुहाना के घर ना लौटने से परेशान नीलांजना ये खबर देखकर बुरी तरह घबरा गई।सुहाना का मोबाइल भी लगातार बंद आ रहा था।डर से नीलांजना की हालत खराब हो रही थी।उसने एक-एक करके उसकी सभी फ़्रेंड्स को भी कॉल किया।सभी ने एक ही बात कही कि सुहाना कॉलेज से टाइम पर ही घर के लिए निकल गई थी|
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नीलांजना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? उनका बेटा प्रकाश भी ऑफिस टूर पर शहर से बाहर गया हुआ था। कहीं सुहाना के साथ कुछ गलत तो नहीं हो गया।अकेली आती-जाती है। वो ये सब सोच ही रही थी कि डोरबेल बजी, दौड़कर दरवाजा खोला तो सामने उसकी पड़ोसन रंजना खड़ी थी।
उन्हें यूॅं परेशान और बदहवास देखकर उसने पूछा “क्या हुआ नीलांजना, इतनी परेशान क्यों हो?सब ठीक है ना!”
“कुछ ठीक नहीं है। साढ़े चार बज रहे हैं। पर, सुहाना का कोई अता-पता नहीं है। रोज तो दो बजे तक आ जाती है। मैंने उसकी सारी फ़्रेंड्स से पता कर लिया है किसी को कुछ पता नहीं है। मेरा जी बहुत घबरा रहा है। कहीं कुछ उल्टा-सीधा न हो गया हो बच्ची के साथ।” नीलांजना ने रोते हुए कहा।
“अरे! तो उसके मोबाइल पर कॉल कर ना।” रंजना ने कहा।
“कब से ट्राई कर रही हूॅंं लेकिन, उसका मोबाइल बंद आ रहा है।”
“क्या मोबाइल बंद आ रहा है।तब तो पक्का कोई गड़बड़ है। मैंने पहले भी कहा था कि बहू को इतनी आजादी मत दो। ये नई पीढ़ी की लड़कियाॅं ‘घर की इज्जत’ का ख्याल नहीं रखतीं। न जाने कहाॅं-कहाॅं घूम रही होगी।”
यह सुनते ही नीलांजना भड़क उठी, “रंजना, मैं अपनी बहू को अच्छे से जानती हूॅंं। वह ऐसा कुछ नहीं करेगी। मुझे उस पर पूरा भरोसा है। अब मेहरबानी करके तुम यहाॅं से जाओ। मैं ऐसे ही परेशान हूॅं। मुझे और परेशान मत करो।” ये सुनते ही रंजना वहाॅं से मुॅंह बनाकर निकल गई।
नीलांजना ने जैसे ही दरवाजा बंद किया, घबराहट और चिंता के मारे फिर से उसके आँसू बहने लगे। मन में हजारों बुरे ख्याल आ रहे थे। बार-बार भगवान से प्रार्थना कर रही थीं कि सुहाना सही-सलामत घर लौट आए। घड़ी से उसकी नजर ही नहीं हट रही थी।छः बजने को थे। अब पुलिस की मदद लेने के अलावा उसे दूसरा कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। वह सुहाना की फ़ोटो लेकर पुलिस स्टेशन के लिए निकल ही रही थी कि उसे ऑटो से सुहाना उतरती हुई दिखाई दी। उसके माथे और हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी। कपड़ों पर खून के धब्बे लगे हुए थे। रंजना की बेटी काव्या उसे सहारा देकर ऑटो से उतार रही थी। उसे इस हाल में देखकर नीलांजना की तो मानो जान ही निकल गई वो उसकी ओर दौड़ी और उससे लिपटकर जोर-जोर से रोने लगी “अरे! ये क्या हुआ? ये चोट कैसे लगी ? कहाॅं थी तू? मुझे खबर क्यों नहीं की?”
उसे यूॅं रोता हुआ देखकर सुहाना ने उसे शांत करते हुए कहा “माॅंजी, मुझे कुछ नहीं हुआ। मैं एकदम ठीक हूॅंं।”
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“इतनी चोट लगी है और बोल रही है, ठीक हूॅंं। सच-सच बताओ मुझे क्या हुआ?”
तब काव्या ने हड़बड़ाते हुए बताया,”आंटी, भाभी की यह हालत मेरी वजह से हुई है। मैं मम्मी को सरप्राइज देने के लिए अपनी ससुराल से यहाँ आ रही थी। रास्ते में कुछ गुंडों ने मुझे अकेला देख कर परेशान करना शुरू कर दिया। मैं डर गई और समझ नहीं आया कि क्या करूँ। तभी सुहाना भाभी वहाँ से गुजर रही थीं। उन्होंने तुरंत ऑटो रुकवाया और मुझे बचाने के लिए उन गुंडों से भिड़ गईं। भाभी ने मुझे तो बचा लिया लेकिन धक्का-मुक्की में चाकू से उन्हें सिर और हाथ में चोट लग गई। काफी खून बह रहा था इसलिए मैं भाभी को अस्पताल ले गई।”
यह सुनते ही नीलांजना की आँखों से आँसू छलक पड़े। वे सुहाना को सहारा देकर घर के अंदर ले गई। “मुझे तुझ पर गर्व है बेटा, लेकिन तुझे अकेले उन गुंडो से नहीं भिड़ना चाहिए था। किसी की मदद ले लेती। भगवान का शुक्र है, तू सही-सलामत घर पहुँच गई।”
सुहाना ने दर्द के बीच मुस्कुराते हुए कहा, “माँजी, इतना समय नहीं था और किसकी मदद लेती? ऑटो वाला तो गुंडो को देखते ही भाग खड़ा हुआ था। अगर मैं देर करती तो शायद काव्या को बचा नहीं पाती और यदि ऐसा होता तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाती। आप ही तो हमेशा सिखाती हैं कि जरूरत के वक्त अपनों के साथ खड़े होना चाहिए। लेकिन, माॅंजी, मुझे माफ कर दीजिए। इस अफरा-तफरी में मुझे आपको फोन करने का ध्यान ही नहीं रहा और आप बेवजह इतनी परेशान हुई।”
ये सुनते ही नीलांजना जी ने सुहाना को प्यार से गले लगा लिया।
तब तक शोरगुल सुनकर मजे लेने के इरादे से रंजना भी वहाँ पहुँच गई लेकिन काव्या को वहाॅं देखकर वो चौंक गई “यह सब क्या हुआ? और तू यहाॅं कैसे? उसने काव्या की ओर देखते हुए पूछा।
काव्या ने आँखों में आँसू भरकर पूरी घटना बताई। “माँ, अगर सुहाना भाभी वहाँ नहीं होतीं, तो आज मैं… मैं किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं बचती। उन्होंने मेरी इज्जत को बचाने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डाल दी।”
ये सुनते ही रंजना का चेहरा शर्म से झुक गया। उसने नीलांजना से हाथ जोड़कर कहा, “मैंने तेरी बहू को हमेशा गलत समझा, लेकिन आज इसने सिर्फ काव्या को नहीं, बल्कि मेरे ‘घर की इज्जत’ को बचाया है। इसका यह एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती। आज से ये सिर्फ तेरी बहू नहीं, मेरी भी बेटी है।”
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यह सुनते ही नीलांजना की ऑंखें गर्व से चमक उठी। उन्होंने रंजना को गले लगाते हुए कहा, “छोड़ इन सब बातों को। सबसे खुशी की बात तो ये है कि हमारी दोनों बेटियाॅं सुरक्षित और सही सलामत है। वह कहते हैं ना ‘अंत भला तो सब भला’। अब चल, सुहाना का जन्मदिन मनाते हैं। इसके जन्मदिन की खुशी में मैंने गाजर का हलवा बनाया है।” ये सुनते ही सुहाना गुस्से में बोली, “माँजी, आपने क्यों मेहनत की? मुझसे कह दिया होता।” लेकिन जैसे ही उसने हलवे का स्वाद लिया, मुस्कुराते हुए बोली, “माँजी, यू आर द बेस्ट। आपसे बढ़िया गाजर का हलवा इस वर्ल्ड में कोई नहीं बना सकता।’ यह सुनते ही सभी खिलखिला कर हॅंस पड़े।
धन्यवाद।
साप्ताहिक विषय प्रतियोगिता-#घर की इज्जत
लेखिका- श्वेता अग्रवाल, धनबाद झारखंड।
शीर्षक- अंत भला तो सब भला