*घर की इज्जत का मापदंड* – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

घर की इज्जत बचाए रखना परिवार के हर सदस्य का दायित्व है। पर यह घर की इज्जत है क्या? किसी के लिए घर की इज्जत का अर्थ सिर्फ बहू, बेटियों को घर की मर्यादा में रखने तक है।

तो  किसी के लिए सिर्फ बहुओं की मर्यादा तक सीमित है। किसी परिवार में घर का हर व्यक्ति अनुशासन और मर्यादा की डोर में बंधा हो,वही घर की इज्जत है। यह कहानी है सेठ ब्रजमोहन के परिवार की जहाँ एक बहू ने अपने कर्म से बरसों से चले आ रहे घर की इज्जत के मापदंड को बदल कर रख दिया। 

           सेठ ब्रजमोहन का कपड़ो का व्यवसाय था यह उनका पुश्तैनी धन्धा था जिसे वे अपनी मेहनत और लगन से ऊॅंचाइयों पर ले आए थे। गॉंव में उनकी  बहुत इज्जत थी। वे मितव्ययी, मृदुभाषी और दयालु प्रकृति के व्यक्ति थे। बहू बेटियों के लिए उनकी धारणा यही थी, कि वे घर गृहस्थी सम्हाले और अपनी मर्यादा में रहैं,

अच्छा पहने-ओढ़े ,खाए- पीए, तीज त्यौहार प्रसन्न मन से मनाए। बाहरी दुनियाँदारी से उन्हें मतलब नहीं रखना है। उनके तीन बेटे थे मनीष, रजनीश और धनीश और इन तीनों से बड़ी बेटी माधुरी जिसका विवाह हो गया था। और वह अपने परिवार में खुश थी। बड़ा बेटा मनीष अपने पिता के साथ ही काम करता था, मगर उनके जैसा मेहनती नहीं था।

दूसरा बेटे रजनीश को इस काम में रूचि नहीं थी, वह एक छोटी कम्पनी में लिपिक का काम करता था। सबसे छोटा धनीश कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था। मनीष का विवाह शोभा के साथ हो गया था। शोभा ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी। घर के माहौल के अनुसार ढल गई थी, और खुश थी।

         रजनीश की पत्नी आयुषी पढ़ी-लिखी लड़की थी, नौकरी करना चाहती थी। उसने अपनी इच्छा अपने पति को बताई तो वह बोला-‘मुझसे कहा वह तो ठीक है पर पापा से कभी मत कहना वे नाराज होंगे बहू-बेटियों का घर से बाहर निकलना उन्हें पसन्द नहीं है। अगर तुम नौकरी करने का कहोगी तो वे समझेंगे तुम घर की इज्जत मिट्टी में मिला दोगी,

ये उनकी धारणा है, इसे मैं नहीं बदल सकता।’  ‘मैं नहीं कह सकती आप तो कह सकते हैं, एक बार कोशिश करके देखिए।’ ‘अच्छा ठीक है तुम कह रही हो तो पापा से बात करता हूँ।’ रजनीश ने जब इस बारे में पापा से बात की तो घर में कुहराम  मच गया उन्होंने साफ शब्दों में मना कर दिया।

उसके बाद इस बारे में आयुषी ने कोई बात नहीं की। वह संस्कारी लड़की थी, घर के तौर तरीको के हिसाब से रहने लगी। मगर ब्रजमोहन जी के मन में हमेशा यह डर बना रहता था कि आयुषी कहीं नौकरी की जिद ना पकड़ ले। धनीश का चालचलन ठीक नहीं था, उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था।घूमना, फिरना पिक्चर देखना।

यार दोस्तों के साथ पार्टियॉं करना उसे बहुत अच्छा लगता था। इसके लिए पैसे कहाँ से आए। ब्रजमोहन जी तो सिर्फ पढ़ाई  के लिए पैसे देते थे और कुछ जेब खर्च जो इन शोक को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।इन शोक को पूरा करने के लिए उसने उधार लेना शुरू कर दिया।

कई बार आयुषी ने धनीश को फोन पर किसी से बाते करते सुना। उसे समझ में आ गया था कि भैया किसी से उधार पैसे ले रहे हैं।उसने अपनी सासूजी से इस बारे में बात की तो उन्होंने आयुषी को ही झिड़क दिया, अपने बेटे की बुराई बहू के मुंह से सुनना उन्हें रास नहीं आ रहा था। 

                उधार न चुकाने पर लोगों ने उधार देना बंद कर दिया। कुछ लोगों के बहकावे में आकर जुंआ खेलने लगा। जब जुएं की रकम में पैसा हार गया तो चोरी करने लगा। ब्रजमोहन जी को अपने बेटो पर  अंधा विश्वास था वे सोचते थे कि उनके बेटे गलत रास्ते पर जा ही नहीं सकते।

जब बार- बार मांगने पर भी धनीश ने पैसे नहीं लौटाए, तो उसे धमकिया मिलने लगी। परेशानी चेहरे पर नजर आ रही थी। माँ ने पूछा भी तो कहने लगा माँ तबियत ठीक नहीं है। कुछ लोग घर पर पैसे मांगने आए तो ब्रजमोहन जी को असलियत मालूम हुई। उन्हें तो उन्होंने आश्वासन देकर रवाना कर दिया मगर उन्हें चिन्ता सताने लगी थी

कि इतनी मोटी रकम कहाँ से अदा करेंगे। उनका स्वास्थ भी ठीक नहीं था, उनके इलाज में भी खर्च हो रहा था। मनीष भी काम पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था। सबकी कमाई मिलकर घर खर्च ही सुचारू रूप से चल रहा था। अब इस कर्ज को कैसे चुकाए सोच-सोच कर परेशान हो रहे थे, बेटे पर बहुत नाराज भी हुए, मगर नाराज होने से समस्या का हल तो नहीं मिलता ।

एक तरफ आर्थिकमजबूरी थी और दूसरी तरफ घर की इज्जत। अगर धनीश को पुलिस पकड़ कर ले गई तो घर की इज्जत का क्या होगा, सोच-सोच कर उन्हें हार्ट अटैक आ गया, उन्हें अस्पताल में भर्ती किया। आयुषी ने रजनीश से कहा कि वह उसकी रकम गिरवी रख दे या जरूरी हो तो बेच दे

और धनीश भैया का लिया हुआ कर्ज चुका दे, पापा यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें कुछ हो न जाए। मेरे गहने उनके स्वास्थ और घर की इज्जत से बढ़कर नहीं है। अभी इस बारे में उन्हें कुछ मत बताना। रजनीश ने मना किया तो बोली ‘अभी सोचने का समय नहीं है आप ऐसा ही करिये मुझे खुशी होगी।

‘ रजनीश ने गहने गिरवी रखकर उस कर्ज को चुका दिया और पापा से कहा पापा सारे कर्ज की व्यवस्था हो गई है,आप चिन्ता न करें, धनीश को पुलिस नहीं ले जाएगी। उनके चेहरे पर चमक आ गई थी,उन्होंने इशारे से पूछा -‘कैसे ?’ तो उसने कहा पापा आप जल्दी अच्छे होकर घर चलिए फिर सब बताता हूँ। उनकी तबियत में जल्दी सुधार आ गया।

घर आते ही उन्होंने पहला प्रश्न यही किया-‘इतने पैसे कहॉं से आए?’ रजनीश ने डरते-डरते सब बात बताई। ब्रजमोहन जी ने परिवार के सब लोगों को बुलाया। सबके सामने वे आयुषी से बोले -‘बेटा मैं तेरी ऋणी हो गया हूँ, तूने मेरे परिवार की इज्जत बचा ली, मै तेरे गहने वापस छुड़वा कर लाऊँगा।’ फिर वे धनीश से बोले

-‘बेटा इस ठोकर से शिक्षा लो और अब कोई गलत काम नहीं करोगे कसम खा लो, इस बार तुम्हारी भाभी ने तुम्हें बचा लिया।’ धनीश ने कहा-‘पापा मैं अपने किए पर शर्मिंदा हूँ,मैं आपसे, अपने परिवार से और विशेष रूप से भाभी से क्षमा मांगता हूँ। मेरे कारण उन्हें अपने गहने गिरवी रखने पड़े।’उसकी ऑंखें नम हो गई थी। 

आयुषी ने पहली बार अपने ससुर के सामने चुप्पी तोड़ी, उसने कहा पापा जी! आप और भैया गहनो की चिंता मत कीजिये , मैंने जो किया मेरा फर्ज था,बस मैं चाहती हूँ……..।’ ‘बोल बेटा आज तू जो कहेगी तेरी इच्छा जरूर पूरी करूँगा।’ पापा मैं चाहती हूँ कि घर की लड़कियों को भी पूरी पढा़ई करने का अवसर मिले और….।

‘ उसे लग रहा था कि उसके ससुर जी गुस्सा होंगे, इसलिए वो चुप हो गई। ब्रजमोहन जी ने हॅंसते हुए कहा और….. और तू नौकरी करना चाहती है, यही ना बेटा! मैं प्रसन्न मन से तुझे इजाजत देता हूँ, तू नौकरी कर बस घर की मर्यादा का ध्यान रखना। बेटा! मुझे समझ में आ गया है,

कि  घर की इज्जत का मापदंड बहू बेटियों को घर की चहारदीवारी में रखना नहीं बल्कि बहू-बेटियों के साथ बेटों को भी मर्यादा की सीमा में रखना है। बहू और बेटियॉं भी घर के बाहर के कार्य मर्यादा में रख कर कर सकती है।मैं तेरे गहने हम वापस‌ लेकर

आऊँगा।’उनकी आवाज नम हो गई थी। उन्होंने उठकर आयुषी के सिर पर हाथ रखा उसने झुककर उनके पैर छुए। आज उसने अपने कर्म से “घर की इज्जत” के मापदंड को बदल दिया। 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

विषय# घर की इज्जत

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