सहारा – डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

प्रतिदिन की एक जैसी दिनचर्या थी सोनाली की ।सुबह-सुबह उठना,जितना जल्दी हो सके घर के सभी कामों को निपटाना, अपने और अपने पति के लिए नाश्ता पैक करना ,सात साल की तान्या को स्कूल के लिए तैयार करना और उसे लेकर ओटो स्टैंड की ओर भागना।

पति उसे वहीं ड्रॉप कर अपने ऑफिस के लिए निकल जाते थे। दोनों के रास्ते अलग अलग थे इसीलिए सोनाली को वहां से ऑटो लेना पड़ता था।

लगभग एक किलोमीटर आगे  बढ़ने के बाद बीच सड़क पर ड्राइवर ऑटो रोक देता था। वहीं पर रोड किनारे पहले से फुल मेकअप में सजी -धजी एक महिला खड़ी हुई रहती थी जो ऑटो रुकते ही आकर पीछे की सीट पर बैठ जाती थी। पता नहीं कहां जाती थी। किसके पास इतना समय है जो किसी के चक्कर में रहे।

वहां से और एक किलोमीटर आगे तान्या का स्कूल था ।सोनाली ऑटो रुकवाती तान्या को जल्दी से स्कूल के अंदर जाने के लिए बोलती और फिर ऑटो में आकर बैठ जाती।  स्कूल से लौटते समय उसे अक्सर देर हो जाती थी इसलिये तान्या को उसके पापा ही घर ले जाते थे। नित्य का यही रूटीन था।

सोनाली इतनी जल्दी में रहती थी कि उसे बाकी दिन दुनियां का ख्याल ही नहीं रहता था। एक दिन उसके साथ उसके ही स्कूल की दो शिक्षिकाएं ऑटो में बैठ गई। सोनाली बहुत खुश हो गई। सफर आसान और खुशनुमा हो गया। तीनों हँसते बोलते आपस में मशगूल थी। नियमानुसार ऑटो बीच सड़क पर रुक गया। वही औरत फिर से आकर बैठ गई।

अभी ऑटो चालक ने ऑटो स्टार्ट ही किया था कि एक शिक्षिका ऑटो ड्राइवर  के तरफ देखकर जोर से चिल्ला कर बोली “-ऐ… तुमने इस छक्के को क्यूं बैठाया हमलोगों के साथ? “

ड्राइवर एकदम से झेप गया। वह अकचका कर पीछे मुड़कर बोला…”तो क्या हुआ मैडम गाड़ी पर तो कोई भी बैठ सकता है।वह भी तो इंसान ही है ना। “


“बकवास बंद करो और उसको उतारो ऑटो से ।

‘ओ. ..गॉड ! कोई हमें इसके के साथ बैठे देखेगा तो क्या कहेगा ।”

एक  मैडम सोनाली की तरफ देख कर बोली-” मैडम कमाल है! आप कैसे डेली इस ऑटो में सफर करती हैं एक छक्के के साथ ।”

सोनाली को उस दिन पता चला कि रोज जो औरत बीच सड़क पर ऑटो रुकवाकर बैठती है वह एक  किन्नर है। उसके पास समय ही कहां रहता था कि वह देखते चले कि कौन क्या है।

दोनों शिक्षिकाएं जिद पर अडिग थीं कि या तो ड्राइवर उसे ऑटो से उतारे या वे लोग उतर जाएंगी।

सोनाली ने भी समझाने की कोशिश की – “मैडम” रहने दीजिये क्या फर्क पड़ता है,कौन सा हमें ऑटो में ही घर बनाना है। ऑटो वाला भेद नहीं कर रहा है फिर हम क्यूं करें ।”

“मैडम आपको इसके साथ बैठकर जाना है तो जाइए पर हम तो नहीं।”

पिछे की सीट से एक भारी भरकम आवाज़ आई “- “ऑटो रोक दो भैया मैं ही उतर जाती हूँ। “

ऑटो रुकते ही वह उतरने लगा सोनाली को अच्छा नहीं लगा वह झट से पिछे मुड़कर  माफ़ी मांगने की मुद्रा में अपने दोनों हाथ जोड़ दिये । किन्नर  बिना कुछ बोले सड़क के दूसरे किनारे की ओर चला गया।

उस पूरे दिन स्कूल में किन्नर को लेकर हंसी मजाक उड़ाया गया। सोनाली को बहुत बुरा लग रहा था वह सोच रही थी उपर वाले की गलती की सजा बेचारे को भोगनी पड़ी है। कौन सी गलती की सजा देते हो इन्हें भगवान!


दूसरे दिन से ऑटो का बीच सड़क पर रुकना बंद  हो गया था ।  य़ह  घटना धीर-धीरे सोनाली के दिमाग से य़ह सब विस्मृत हो चुका था ।

समय अपने हिसाब से गुजर रहा था। उस  दिन  सोनाली के पति किसी काम के सिलसिले में दूसरे शहर गए थे। सोनाली सारे काम निबटा कर सोने की तैयारी कर रही थी तभी फोन की घंटी बजी। उसने बिना देखे ही  फोन कान में सटा लिया उसे लगा पति ही होंगे। उधर से किसी और की आवाज थी…..

हेलो- हेलो की आवाज आ रही थी पर सोनाली पागलों की तरह हो चुकी थी । ऐसी अनहोनी जिसकी कल्पना भी उसने कभी नहीं किया था। देखते देखते सारे पड़ोसी इकठ्ठे हो गए।

सुबह  होते -होते सारे रिश्ते नाते के लोग भी पहुंच गए थे ।सोनाली बेसुध थी। तान्या को चुप कराते हुए सब यही बोल रहे थे कि भगवान ने बच्ची के साथ बड़ा अन्याय किया सिर से बाप का साया छीन लिया ।बेचारी माँ कैसे पालेगी उसे।

सारे क्रिया कर्म हो गए। धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार ढाढस बंधाते हुए अपने अपने घर वापस लौट गये।

कोई रहे ना रहे जिंदगी अपनी रफ्तार कहां भूलती है। जिम्मेदारी दोगुनी हो चली थी सोनाली की ।तान्या को माँ- बाप दोनों का प्यार देना था उसे । सब कुछ वैसे ही था पर जो लुट गया था वह सोनाली  का सुख चैन था।  वह बिल्कुल मशीन बन चुकी थी।

एक दिन स्कूल से फोन आया  कि छुट्टी हो चुकी है आकर तान्या को ले जाइए ।सोनाली को अपने स्कूल से छुट्टी नहीं मिली क्योंकि फाइनल एग्जाम चल रहा था। जब वह तान्या के स्कूल पहुँची तो स्कूल के बाहर तान्या खड़ी रो रही थी ।वह बदहवास सी बेटी से लिपट गई।  उसे चुप कराते कराते  खुद भी रोने लगी ।कितने क्रूर हैं ये स्कूल वाले बच्ची को स्कूल के गेट पर छोड़ दिया कुछ हो जाता तो…..।

“कैसे कुछ होता दीदी ,मैं लगातार इसके साथ ही खड़ी थी ।”

सोनाली ने पिछे मुड़कर देखा वही किन्नर था जो ऑटो में अक्सर साथ आया करता था ।सोनाली के  हाथ फिर से एक बार उसके सामने जुड़ गए।


वह बोला  ” दीदी आप हमें शर्मिंदा मत करो।  मैंने तो आपके अपनेपन का कर्ज चुकाया है जो उस दिन आपकी आंखों में  मेरे लिये था ।दुनियां वाले तो हमसे घृणा करते हैं, पर जो  लोग हमें इंसान समझते हैं उन्हें हम कभी नहीं भूलते। “

उसकी भरी आँखों को देख सोनाली का अपना दर्द कम होने लगा।

किन्नर ने हाथ जोड़कर कहा-” दीदी,आप को बुरा नहीं लगे तो मैं गुड़िया को रोज आपके स्कूल तक छोड़ दूँ फिर आप दोनों इकठ्ठे घर चली जाया करना !”

सोनाली के पास कोई शब्द नहीं थे बस आंखो से आभार के आंसू गिर रहे थे उसने हाँ में सिर हिलाया और उपर आसमान के तरफ देखकर बोली-” मैं कैसे कहूँ कि तुमने मुझे बेसहारा छोड़ दिया। “

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार

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