घर में जगह – रश्मि प्रकाश  : Moral Stories in Hindi

“ आपको जो भी बोलना है सबके सामने बोलो…. सबको जानना ज़रूरी है आख़िर हम भी इस घर का हिस्सा है…. सबकी तरह हमारे भी हक है।” राशि आज चुप रहने के मूड में ज़रा भी नहीं लग रही थी निकुंज मिन्नतें कर कर के थक गया था पर उसकी आवाज़ तेज हुई जा रही थी 

तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई …

सामने निकुंज की माँ खड़ी थी …

“ क्या बात है बेटा…. रात को तुम दोनों किस बात पर बहस कर रहे हो… और बहू क्यों इतनी ज़ोर से बोल रही है…. थोड़ा धीरे बोलो बहू… तुम्हारे ससुर, जेठ जेठानी और दोनों बच्चे भी कहीं तुम्हारी आवाज़ सुन कर इधर ना आ जाए।”सासु माँ सुमन जी ने कहा 

“सुनते हैं तो सुन  ले…. बहुत हो गया…. दो साल हो गए शादी को हर तीज त्योहार में हमें बुला लिया जाता …. उपर से मेरे पति को जब भी दो तीन दिन की छुट्टी मिलती है बस इनके कदम घर की ओर बढ़ जाते…. यहाँ आ कर इनके तो मज़े रहते सब मुसीबत मेरे सिर माथे….।” राशि का दिल किया ये सब सासु माँ के पास उगट दे पर मर्यादा देख चुप रही … सासु माँ के जाते ही चादर तान कर सो गई ।

राशि ऐसी बिलकुल नहीं थी पर वो दो साल से देख रही है कि पूरे घर में एक कमरा भी उसके नसीब में नहीं…. तीन कमरे कहने को एक माता-पिता का एक जेठ जेठानी का और तीजा निकुंज राशि का…. एक बड़ा ड्राइंगरूम है जिसमें एक बिस्तर लगा है कोई आया तो उधर नहीं तो किसी और के साथ व्यवस्था कर दिया जाता….

निकुंज अपनी नौकरी वाली जगह पर रहता है जहाँ से जब भी मन करे वो घर आ सकता हैं क्योंकि दो ही घंटे का ही सफर जो करना होता हैं…शुरू शुरू में राशि ने कभी कोई शिकायत नहीं की पर अब बार बार आने की वजह से उसने सोचा अपने कुछ कपड़े यहीं छोड़ जाऊँ पर पूरे घर में एक अलमारी सासु माँ की और बाक़ी पूरे घर की अलमारियों में जेठानी जी ने कपड़े, कागज भर भर कर रखे हुए थे….

राशि ये सब देख मन ही मन कुढ़तीं और हर दिन उसे अपने कपड़े सूटकेस में भरने पड़ते थे… पर इस बार उसके ग़ुस्से की वजह उसकी प्रेगनेंसी थी अभी दो महीना ही हुआ था पर निकुंज की आदत घर आते रहने की थी तो बस  वो उसे ले कर आ गया ।

राशि ने कहा ,“ निकुंज अब मुझसे हर दिन सूटकेस खोल कर कपड़े निकाले और रखे नहीं जाते… तुम जेठानी जी से बात कर के एक अलमारी खाली करवा दो नहीं तो कहीं जगह देख एक अलमारी लें आओ ये हर दिन की मुसीबत से मुझे छुट्टी मिलेगी और तुम्हारे बार बार यहाँ आने की आदत में मैं हमारे कुछ कपड़े उसमें ही रख जाया करूँगी

ताकि बार बार पैकिंग ना करनी पड़े… तुम्हारी भाभी तो बड़े दिल वाली है ना हमेशा तुम्हारा भला करती तुम उनकी हर बात सुनते वो तुम्हारी सुनती …..कभी भी तुम्हारे लिए भैया के कान नहीं भरे … दसवीं बाद जब पिताजी गुजर गए तब भैया ने तुम्हारी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी बख़ूबी सँभाली उसके बाद भाभी जब ब्याह कर घर आई तो हमेशा तुम्हारे ही भले की सोचती रही…

और तो और तुम जो कहते रहते हो…. मेरी भाभी और औरतों की तरह नहीं है जो भैया के कान भरे वो पहले परिवार देखती है सबकी ज़रूरतों को समझती है तो जरा अब उन्हें मेरी जरूरत भी बता दो अब इतना बड़ा दिल है तो पहले से देवरानी के लिए सोच कर रखना चाहिए था ना ।”

इतना सुनना था कि निकुंज ने कहा,” कमाल करती हो तुम भी ….हम दो चार दिन के लिए ही तो आते हैं यहाँ….अब मैं भाभी से कह कर अलमारी ख़ाली करवाऊँ…. और नई अलमारी ला कर रखने की बात तो कभी करना ही मत…. एक तो जगह नहीं है … और जो ले आया सब कहने लगेंगे इस घर में अभी से अपना अपना करने लगा है…. देखो तुम किसी तरह एडजस्ट कर लो…. तुमसे रखा नहीं जाता तो मैं रख दिया करूँगा….।”

राशि ने ग़ुस्से में ही सही कह दिया ,”ठीक है  रख देना पर याद रखना पूरे दिन बिस्तर पर नहीं पडे़ रहे…. जेठानी जी के बच्चे दिन भर इस कमरे में ही कूदते रहते हैं वो भी खाली पैर रहते जो मुझे जरा भी पसंद नहीं आता ….।” 

पर आज पहला ही दिन था…. राशि अपने सूखे कपड़े तह कर बिस्तर पर रखी ही थी कि जेठानी जी के बच्चे आकर उछल कूद करने लगे…. कपड़े का हाल बुरा हुआ सो अलग …. किनारे पर लेटी राशि के पेट पर भी बच्चों की लात लग गई… राशि कराह उठी पर चोट ज़्यादा नहीं लगी थी इसलिए वो उठ कर बाहर हॉल में जाकर निकुंज का इंतज़ार करने लगी जो घर से निकल कर जाने कहाँ दोस्तों में व्यस्त था…

लौट कर आया भी तो रात को …. राशि तब रसोई में व्यस्त थी निकुंज से कुछ कह नहीं पाई इसलिए रात को निकुंज से कह रही थी और निकुंज उसकी बात को नज़रअंदाज़ कर रहा था ।

तब राशि को ग़ुस्सा आ गया और वो निकुंज पर बिफर पड़ी ,“ तुम्हें सब लोग बहुत प्यारे हैं निकुंज समझ आ रहा है मुझे तभी यहाँ पर मेरे लिए कुछ बोलना तुम्हें गँवारा नहीं हो रहा….. ठीक है कल मैं खुद ही बात कर लूँगी…. मेरी हालत समझ नहीं सकते तो आगे से यहाँ मुझे लेकर भी  मत आना जब तक मेरा ( इस शब्द पर जोर देते हुए कहा) बच्चा इस दुनिया में ना आ जाए मेरा दिल इतना बड़ा नहीं है जो मैं तकलीफ़ सह कर मुस्कुरा कर रह जाऊँ आपकी भाभी की तरह।”

“ ठीक है अब तुम यहाँ मत आना पर मैं किसी से कुछ नहीं कहने वाला….तुम क्यों नहीं आ रही हो कोई पूछेगा तो कह दूँगा उसको यहाँ तकलीफ़ हो रही है…. ठीक है ना।” निकुंज भी तीखे तेवर दिखाते हुए बोल पड़ा 

तभी राशि उससे बोल रही थी जो भी  बोलना हो सबके सामने बोलों….

किसी तरह सोचते सोचते राशि सो गई…

दूसरे दिन उसका मूड पूरा ऑफ था कल सुबह निकलना था पर दिल कर रहा था अभी ही यहाँ से चली जाए…जिस घर में उसके लिए कोई सही जगह ही नहीं है वहाँ रहने का मन कैसे कर सकता है…… यहाँ आकर उसके काम भी डबल हो जाते हैं…. जरा सा आराम करना चाहे भी तो नहीं कर सकती…. रसोई से ही फ़ुरसत जो नहीं मिलती…. छोटे होने का नुक़सान भी यही है कि आओ तो एक पैर पर खड़े रहो…. किसी को भी ये ध्यान नहीं रहता कि राशि माँ बनने वाली है…. वो अचानक से कुछ सोची और सासु माँ के पास गई 

“ माँ मुझे आपसे कुछ बात करनी है…. जो बात कल रात अधूरी रह गई वो आप शायद समझ सकें…… ।”

“ हाँ बहू बोलो।” सासु माँ ने पूछा 

“ माँ मुझे अपने लिए कमरे में एक अलमारी लेनी है…. ताकि मैं अपने कपड़े और ज़रूरी सामान उसमें रख सकूँ….. हम यहाँ बराबर आते रहते हैं …. हर बार कपड़े लाती ले जाती रही क्योंकि यहाँ हर जगह जेठानी जी का सामान रखा पड़ा है…. निकुंज से कई बार कहा पर वो मुझे ही चुप कराते रहे…

पर अब मुझसे बार बार अपने कपड़े सूटकेस से निकालना और रखना नहीं हो पाता…. अब आप ही बताइए मैं क्या करूँ….. कहने को मेरा ससुराल है पर इस घर में मेरे लिए कोई जगह तक नहीं है….. अतिथि का तरह आती और जाती हूँ…..  मेरा भी मन होता इसे अपने घर जैसा महसूस करूँ…. अगर कल को मैं यहाँ नहीं आऊँगी तो मुझे गलत मत समझिएगा… सब अपनी सुविधानुसार ही कहीं भी रह सकते हैं अगर वो अपना घर हो तो….।”राशि ने अपनी बात कह दी

सासु माँ कुछ सोचते हुए बोली ,” छोटी बहू …बड़ी बहू को इस घर में रहते बारह साल हो गए है…. निकुंज हॉस्टल में रहता था…. कभी-कभी आता तो अपने भाई के कपड़े भी पहन लेता था इसलिए उसके कपड़े भी उसके भाई के साथ रख दिए जाते थे…. अब दो साल पहले जब तुम आई हम में से किसी ने भी यह नहीं सोचा की इस घर में तुम्हारे लिए भी जगह बना देनी चाहिए….. निकुंज ये सब कभी नहीं बोल पाएगा  ये तो मैं समझ गई….. तुम चिन्ता मत करो…. जिस कमरे में तुम रहती हो उसमें तुम्हारे लिए जगह करवाती हूँ…..।”

सासु माँ जेठानी को बुलाकर समझाते हुए बोली,“ बड़ी बहू छोटी बहू के लिए भी इस घर में जगह तो रखो…. रिश्ता बनाने के लिए बड़े दिल के साथ घर में भी जगह देनी पड़ती है….ना मैंने ध्यान दिया ना तुमने…. चलो अब इस बार इस घर में अपनी देवरानी के लिए भी जगह बना दो…. ताकि अब जब आए वो इस घर में वो भी खुल कर रह सकें जैसे इतने सालों से तुम रहती आई हो।”

जेठानी जी को ज़रूर थोड़ा बुरा लगा कि पूरे घर में जिनका आधिपत्य था एक कमरा और अलमारी देवरानी के सुपुर्द करना पड़ेगा जब भी वो आएगी ।

“ माँ इतना सारा सामान मैं ओर कहाँ ले जाकर रखूँगी..आप भी समझिये..  वो लोग दो चार दिन के लिए ही तो आते है …ऐसे में पूरी एक आलमारी उनको देना..।” वो आगे और कुछ कहती सुमन जी ने कहा,” बहू जब तुम इस घर में आई है तो मैंने भी तुम्हारे लिए जगह बनाई ताकि हम अच्छे से रह सकें तुम्हें इस घर में अपनापन मिले बस यही तुम्हें भी करना चाहिए था बड़ी हो थोड़ा बड़प्पन दिखाना सीखो ।”

जेठानी ने मन मार कर ही सही बड़े दिल का परिचय देते हुए एक अलमारी खाली कर देवरानी के लिए जगह भी बना दी और देवर की नज़रों में महान भी बनी रही ।

बहुत घरों में जो पहले से रह रहे होते वो पूरे घर पर अपना आधिपत्य समझ लेते है….. दूसरे किसी के आने से उनके लिए जगह बनाना नागवार गुजरता है पर अगर बड़े समझदार हो तो मसला सुलझ जाता हैं नहीं तो जो नया सदस्य घर में आता है और वो अगर बाहर रहता है तो समस्या इतनी बढ़ जाती कि वो आने से पहले हज़ारों बार सोचता और फिर धीरे-धीरे आना कम कर देता….. बहू के परिप्रेक्ष्य में कहूँ तो हर बहू के लिए ससुराल में इतनी जगह तो हो जहाँ वो जब आए चैन से रह सकें….. बाहरी मेहमान की तरह नहीं…।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# बड़ा दिल

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