सोनिया अपनी मां साधना के साथ गर्मियों की छुट्टियों में अपनी दादी के घर आई थी। 13 वर्षीय सोनिया बहुत चंचल और मासूम थी, लेकिन अपने बचपने और कम उम्र के कारण कभी-कभी चीजों को पूरी तरह समझ नहीं पाती थी। दादी के घर की गर्माहट और अपनापन उसे अच्छा तो लगता था, लेकिन दादी की कड़वी बातों से वह असहज महसूस करने लगी थी।
एक दिन दोपहर के समय, जब साधना रसोई में दादी के साथ काम कर रही थीं, सोनिया पास ही बैठकर कुछ पढ़ रही थी। तभी दादी ने साधना को जोर से डांटते हुए कहा,
“साधना, तुम यह काम ठीक से क्यों नहीं करती? मैंने तुम्हें कितनी बार बताया कि आटे को गूंथने का सही तरीका यह है। तुम तो हमेशा अपनी ही चलाती हो।”
सोनिया ने यह सब सुना और उसका मासूम मन आहत हो गया। वह रसोई से बाहर चली गई और अपने कमरे में जाकर बैठ गई।
शाम को जब साधना कमरे में आई, तो सोनिया रूआंसी होकर बोली,
“मां, अब हम कभी दादी के घर नहीं आएंगे। वह आपको दिनभर डांटती रहती हैं। मैं यह सब और नहीं देख सकती।”
साधना को अपनी बेटी की चिंता समझ में आई। उसने उसे प्यार से पास बैठाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहते। अभी तुम्हारी उम्र छोटी है, और तुम्हें सही-गलत का पूरा ज्ञान नहीं है।”
साधना ने सोनिया को समझाने की कोशिश की। उसने कहा,
“देखो बेटा, तुम्हारी दादी मुझे अपनी बेटी समझती हैं। जब मां अपनी बेटी को डांटती है, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि वह उसे प्यार नहीं करती। यह उनके अपने तरीके हैं अपनी चिंता और प्यार जताने के।”
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सोनिया ने गुस्से और दुख भरे स्वर में कहा,
“लेकिन मां, वह आपको चिल्लाकर क्यों बोलती हैं? यह तो गलत है।”
साधना मुस्कुराई और बोली,
“बेटा, जब तुम छोटी थी और गलती करती थी, तो मैं भी तुम्हें डांटती थी। क्या इसका मतलब यह है कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करती?”
सोनिया ने सिर हिलाया और कहा,
“नहीं मां, आप तो मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं।”
साधना ने कहा,
“रिश्ते कभी भी परफेक्ट नहीं होते। इनमें गलतफहमियां, मतभेद और कभी-कभी कड़वाहट हो सकती है। लेकिन यह सब रिश्तों की अहमियत को कम नहीं करता। दादी मुझे डांटती हैं, लेकिन वह मेरे लिए कितनी चिंता करती हैं, यह भी देखो। उनके गुस्से के पीछे प्यार छिपा होता है।”
सोनिया चुपचाप सुन रही थी।
साधना ने आगे कहा,
“जब मैं छोटी थी, तो तुम्हारी दादी मुझे भी ऐसे ही डांटती थीं। लेकिन उनकी डांट ने मुझे सिखाया कि गलत और सही में फर्क कैसे करना है। उन्होंने मुझे मजबूत बनाया।”
अगले दिन सोनिया ने देखा कि दादी सुबह-सुबह उठकर घर के सभी काम खुद कर रही थीं। उनके हाथ कांप रहे थे, लेकिन फिर भी वह सब कुछ व्यवस्थित रखने की कोशिश कर रही थीं।
सोनिया ने अपनी मां से पूछा,
“मां, दादी इतना काम क्यों करती हैं? वह आराम क्यों नहीं करतीं?”
साधना ने जवाब दिया,
“बेटा, यह उनका प्यार और जिम्मेदारी है। वह अपने परिवार को हमेशा खुश देखना चाहती हैं। जब तुम बड़ी हो जाओगी, तो समझोगी कि जो लोग हमें सबसे ज्यादा डांटते हैं, वही हमें सबसे ज्यादा प्यार करते हैं।”
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उस दिन सोनिया ने खुद से ठान लिया कि वह अपनी दादी को समझने की कोशिश करेगी। उसने धीरे-धीरे उनसे बातें करना शुरू किया। जब दादी ने उसे सुबह पढ़ाई करते हुए देखा, तो उन्होंने कहा,
“तुम्हारी लिखावट तो बहुत सुंदर है। मुझे खुशी है कि तुम पढ़ाई में इतनी अच्छी हो।”
सोनिया को यह सुनकर बहुत अच्छा लगा। उसने महसूस किया कि दादी उसे भी उतना ही प्यार करती हैं, जितना वह अपनी मां को करती हैं।
सोनिया ने धीरे-धीरे यह सीखा कि रिश्तों को निभाने के लिए संयम और समझदारी की जरूरत होती है। हर रिश्ते में उतार-चढ़ाव होते हैं, लेकिन सच्चा प्यार वही होता है, जो इन कठिनाइयों को पार कर सके।
एक दिन उसने अपनी दादी के पास जाकर कहा,
“दादी, क्या मैं आपके साथ रसोई में मदद कर सकती हूं?”
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा,
“तुम मेरी प्यारी पोती हो। आओ, मुझे मदद करो।”
साधना को खुशी हुई कि उसकी बेटी ने इतनी छोटी उम्र में रिश्तों की अहमियत को समझ लिया। उसने महसूस किया कि जीवन में हर रिश्ता अनमोल है और उसे प्यार और समझदारी से निभाना चाहिए।
मूल रचना : अर्चना खंडेलवाल