नाराज़गी भरी सीख – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

मम्मी ,मम्मी थोड़ी देर के लिए आपका फोन देना …..

 क्यों क्या काम है? और ये पढ़ते पढ़ते तुझे फोन की याद क्यों आ जाती है? तूने तो बोला 1 घंटे से पहले मैं कमरे के बाहर नही आऊंगी और अभी तो आधा घंटा भी नही हुआ कनक की मां रुचि बोली

  अरे मम्मी कल मेरा मैथ का टेस्ट है  है और एक टॉपिक समझ नही आ रहा था  बस उसी के लिए गूगल से सॉल्यूशन  सर्च करना है  ।मुझे याद आ गया तो मैं आ गई  देखने

  सॉल्यूशन  गूगल से सर्च करना है , पर क्यों? ये गलत है बेटा तू अपने आप क्यों नही सोचती ,बुक रीड कर , थोड़ा दिमाग पर जोर डाल और सोच, फोन नही मिलेगा इसके लिए। रूचि नाराज़ होते हुए बोली

  क्यों नही मिलेगा ? एक तो मेरे सारे दोस्तों के पास फोन है और मेरे पास ही नही । दूसरा आप अब अपना फोन भी यूज करने नही देती हो ।कनक ने भी चिल्लाते हुए अपनी नाराज़गी जता दी 

  तो आप बता दो फिर। पर पापा ने आपको मना किया है मुझे  पढ़ाने के लिए इसलिए आप तो बताएंगी नही। खुद से महान जो बनाना है मुझे। 

  ( असल में रूचि के पति अरुण का मानना है की बच्चे खुद से  पढ़े तो बेहतर है इसलिए  तीसरी क्लास से ही बच्चों को खुद पढ़ने की आदत डलवा दी। रुचि को बिलकुल मना किया है उनको बैठकर पढ़ाने को। 

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  अपने आप पढ़ने दो, रिजल्ट जो भी हो। गलतियों से सीखने दो ।तुम कब तक उन्हें अपने काम छोड़कर पढ़ाती रहोगी। अभी तो छोटी क्लास है, बाद में बड़ी क्लास होगी तब ? अरुण रुचि को ये बोलता हर बार इसलिए रुचि भी अब उनको देखती है बस, पढ़ाती नही ये सोचकर कि पतिदेव फिर नाराज़ होंगे 

  हां कभी कभार उनकी प्रोब्लम सॉल्व जरूर करवाती है।

  रुचि की बेटी आठवीं में और बेटा तीसरी में है और दोनो अपने आप ही पढ़ते हैं)

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  आप रहने ही दो,मैं कर लूंगी अपने आप।

   ये क्या तरीका है कनक मुझसे बात करने का । मै तो कुछ अच्छा ही बोल रही हूं ना। रुचि ने फिर नाराज़ होते हुए कहा

    हां मम्मी आप  तो हमेशा अच्छा ही बोलती हो, गलत तो हमेशा मैं ही होती हूं। आप चाहती ही नही हो मैं फर्स्ट आऊं इसलिए मुझे फोन नही दे रही हो मुझे सब पता है कनक बोले जा रही थी और गुस्से से अपने रूम का गेट बंद कर लिया

   

     उधर रुचि की सास उर्मिला जी उनकी बहस को दूसरे कमरे  में बैठ सुन रही थी वो बोली

      बहु बच्चों से इतनी बहस मत किया कर , उसकी जुबान खुलते देर नहीं लगेगी । एक बार बोल कर चुप हो जाया कर और ये एक दूसरे से बात बात नाराज होना घर का माहौल खराब करता है ये बात मत भूलो

       पर मम्मी बच्चों को सही गलत सिखाना हमारा काम है 

       हमे ही उनको बताना होगा न कि वो कब सही कर रहे हैं, कब गलत।आजकल बच्चे खुद से कुछ करना ही नही चाहते , थोड़ी भी प्रोब्लम आती है किसी भी सब्जेक्ट में तो बस गूगल किया और बात खतम। सेल्फ स्टडी करना चाहते ही नही। पका पकाया हलवा चाहिए इन्हे बस

        ये थोड़ी देर का आराम उनकी जिंदगी भर की नींद हराम कर देगा किसी दिन …..पर ये बात इनको समझ नही आती । 

        और एक बात और , इसको सब समझ आता है पर बस फोन लेने का बहाना चाहिए इसको तो।।ये आजकल के बच्चे तो………बस रुचि बोले जा रही थी(शायद बेटी का गुस्सा बातों से निकाल रही थी)

        हां…. ये तो ठीक है बहु।  पर रोज रोज इसी बात पर बहस क्यों करनी , समझाने का तरीका बदल अगर वो बातों से नही समझती तो। 

         ठीक है मां कोशिश करती हूं ..…… कह रुचि अपने काम में लग गई।

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         कनक … कनक … तेरा आंसर मिल गया क्या मैथ का रुचि ने थोड़ी देर बाद पूछा

           हां मम्मी आपने तो फोन दिया नही तो बुक रीड की,  एग्जांपल देखा तो फिर किया । कितना टाइम वेस्ट हो गया मेरा आपको पता है।?यू ट्यूब से देखती तो 2 मिनिट्स नही लगते मुझे ।पर आपको क्या फर्क पड़ता है इससे। कनक गुस्से में अपनी ही धुन में बोले जा रही थी। सामने कौन है इस बात से उसको फर्क भी नही पड़ रहा था।

           और कनक ये कौनसे टोन में बात कर रही है मुझसे , मम्मी हुं मै तेरी। सही , गलत का कुछ तो पता होगा तुझे। रूचि फिर नाराज़ होने लगी

           सॉरी मम्मी….. कनक धीरे से बोली

           आ मेरे पास बैठ थोड़ी देर, 

(कनक रुचि के पास बैठती है)

“तू मुझे गलत समझती है ना पर बेटा पर  मैं जानती हूं तेरे लिए क्या सही है और क्या गलत इसलिए तुझे समझाती हूं।

             सारी सब्जेक्ट में  मै तेरे कांसेप्ट क्लियर करवाना चाहती हूं बस । फोन से देखती तो इतनी मेहनत थोड़े ना करती ,रट लेती बस हर बार की तरह जो तेरे लिए आगे बहुत गलत साबित होता क्योंकि बोर्ड के एग्जाम में तो सवाल कही से भी आ सकते हैं । कांसेप्ट क्लियर होंगे तो प्रोब्लम होगी ही नही।

             तुझे पता है जब मैं और पापा पढ़ते थे तब तो फोन थे  ही नही , हमने भी तो बुक से, सेल्फ स्टडी करके पढ़ा है।  फिर हमे टेंशन कभी होती नही थी सवाल कहीं से भी आ जाए फिर।

              मेरे बहुत से दोस्त वन वीक सीरीज, न्यू टाइप से पढ़कर पास तो हो जाते पर आगे आने वाली अगली  क्लास मे पीछे रह  जाते।

             और ये तुझे भी पता है तेरी सारी फ्रेंड्स में तू अपने आप ही पढ़ती है बाकी सबको ट्यूशन, कोचिंग लगी हुई हैं।वो इसलिए क्युकी बचपन से तुझे हमने आदत जो डाल दी अपने आप पढ़ने की

              अब तू बता तेरे लिए हमारा  ये निर्णय सही था या गलत” रुचि ने पूछा

               “हां मम्मी ये बात तो सही है। सब लोग ट्यूशन और कोचिंग जाकर  भी मेरे बराबर जितना नंबर लाते हैं। “कनक ने हंसते हुए कहा।

                अगले दिन …..

                मम्मी, मम्मी थैंक यू….. कनक ने कहा

                अरे क्या हुआ हमेशा मम्मी से नाराज़ होने वाली लड़की आज थैंक यू क्यों बोल रही है भला रुचि ने उत्सुकता से पूछा

                मम्मी आज मैथ का टेस्ट बहुत अच्छा हुआ मेरा , जो एग्जांपल बुक से पढ़ा था सेम टू सेम वही आ गया। मेरे बहुत से दोस्त को समझ ही नही आया।

                इसलिए तो बोलती हूं हमेशा बुक से रीड किया करो। गूगल से या यू ट्यूब से आंसर तो आ जायेगा पर बिना समझे ही सिर्फ रट रटा कर रुचि हंसते हुए बोली

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                फोन बजता है ट्रिन… ट्रिन….

                अरे ये किसका नंबर है…. नंदिनी… नय्यर

                ये कौन है, मैं नही जानती इस नाम के किसी भी पर्सन को रुचि बोली

                मम्मी ये मेरी फ्रेंड है, नंदिनी कनक ने कहा

                अरे कितने दोस्त हैं तेरे, निकिता, मीशा,योगिता, अश्विका, करण और एक दो के नाम मुझे याद नहीं आ रहे 

                अब ये नई नंदिनी

                

                

                और एक बात और बेटा…… मैं कई दिनों से देख रही हूं तेरे बहुत सारे दोस्त बन गए . पूरी क्लास ही शायद तेरी दोस्त है , है ना मैं सही कह रही हूं ना रुचि ने कनक से पूछा

               हां मम्मी , आपकी बेटी है ही इतनी अच्छी कनक ने इतराते हुए कहा

               पर इतना अच्छा होना भी  गलत है बेटा। कि कोई भी आपको अपने मतलब के लिए दोस्त बना ले।

                दोस्त बनाना गलत नही पर इतने दोस्त बनाना भी सही नही है। उससे तुझे पढ़ाई में डिस्ट्रेक्शन होगा । इसलिए दोस्त कम हों पर अच्छे हों।

                अभी तुम्हारी पढ़ाई की उम्र है बेटा , पढ़ाई पर फोकस कर न की दोस्त बनाने पर

                और इतने लोगों को देखकर ही तेरे मन में भी होड लगी रहती है। उसके पास ये है… मेरे पास नही। मुझे फोन दिलाओ ,कभी  अच्छे वाले शूज तो कभी स्मार्ट वॉच…..

                 पर कनक  हमे अपनी आर्थिक स्थिति मतलब फाइनेंशियल कंडीशन भी तो देखनी पड़ेगी न। 

                 हमारे यहां पापा अकेले कमाते हैं, और उन लोगों के पापा मम्मी दोनो सर्विस में हैं। है कि नही

                 हां मम्मी….. कनक बोली

                 तो फिर हमे हिसाब से खर्चा करना पड़ेगा ना, समझी या नही

                 कनक ने हां में सिर हिलाकर जवाब दिया

                 

                 वैसे मेरे दोनो बच्चे बहुत समझदार है , देखा जाए तो तभी उसका बेटा खेलकर वापस घर आता है और कहता है

                 मम्मी ट्वेंटी रूपीज दो ना, मेरे सारे दोस्त मिलकर पार्टी कर रहे हैं दो ना मम्मी प्लीज

                 अरे उदय इस हफ्ते तेरा बहुत हो रहा है बेटा ,बाहर का पैक्ड फूड

                 तुझे समझाया था न ये गलत बात है। हमारी हेल्थ के लिए कितने हार्मफुल हैं ये सब

                 ये सोसायटी में भी न लोग अपने बच्चो पर ध्यान ही नही देते लगता है, जो मांगे दिला देते हैं। अब बच्चे क्या  जाने सही और गलत के बारे में । उनके तो बस स्वाद से मतलब है फिर चाहे सेहत जाए भाड़ में 

                 पर उदय आज के बाद ये ज़िद नही चलेगी, ध्यान रखना और अपने दोस्तों को भी बता देना

                 हां मम्मी, पर आज दे दो बस, अब नही मागूंगा प्रोमिस

                 ठीक है पर चिप्स, कुरकुरे नही। जूस पी सकता है चाहे तो 

                 ओके मम्मी जूस पी लूंगा ,बस खुश 

                  रुचि उदय को चालीस रुपए देती है और बोलती है। जो भी ले दीदी के लिए भी लाना।और दोनो शेयर करके खाना 

                  ओके मम्मी बाय….. उदय चला जाता है

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आज कनक बड़ी हो चुकी है और पढ़ लिखकर काबिल इंजीनियर बन चुकी है और वहीं उदय ने ट्वेल्थ 92 परसेंट मार्क्स के साथ पास कर ली है।

 रुचि और अरुण बहुत खुश होते हैं जब भी अपने बच्चों को आगे बढ़ते हुए देखते हैं और अपनी परवरिश पर गर्व करते हैं

  कनक और उदय भी जैसे जैसे बड़े हुए हैं मम्मी पापा द्वारा सिखाए गए सही और गलत बात का अर्थ समझ चुके हैं । उन्हें  अब समझ आ गया कि मम्मी पापा थोडे स्ट्रिक्ट , हमेशा उनसे नाराज़ रहने वाले थे पर उनके फायदे के लिए। आज उनकी सीख से ही तो दोनो अपने लक्ष्य को हासिल कर रहे हैं।

   दोस्तों, बच्चों पर कुछ तो अपने आस पास का , सोसायटी का प्रभाव होता है, कुछ बढ़ती उम्र के साथ हार्मोन परिवर्तन का। इसलिए बच्चे थोड़े जिद्दी और गुस्सैल हो जाते हैं जब कभी हम उनकी इच्छा पूरी नहीं करते ।

बात बात पर नाराज़ हो जाते हैं

   लेकिन एक माता पिता के तौर पर क्या गलत है और क्या सही ये सिखाने की ज़िम्मेदारी हमारी होती है और इसके लिए हमे थोड़ा स्ट्रिक्ट या सख्त होना पड़े और कभी कभार नाराज भी होना पड़े तो कोई बुराई नही। बच्चे आज भले ही हमे गलत या खुद को सही समझे पर आने वाले कल में वो जब समझदार होंगे हमारे प्यार, अपनेपन और फिक्र का एहसास उन्हें जरूर होगा।

    इसलिए बचपन से ही बच्चों की आदतें अच्छी होंगी तो हमे फिक्र करने की जरूरत नहीं पड़ेगी वो सही और गलत का अंतर खुद से ही कर लेंगे

    

आपको मेरी कहानी कैसी लगी बताना मत भूलिए और अपने विचारों से अवगत कराना भी

धन्यवाद

निशा जैन

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