तलाश – राम मोहन गुप्त

(मायका_बेटियों का टूरिस्ट प्लेस)

– राम मोहन गुप्त

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‘सुनिये, परसों मैं मम्मी से मिलने चली जाऊँ’ अनन्या ने नयन से, लगभग बताने वाले अंदाज में पूछा। ‘हाँ, क्यों नहीं, मैं भी साथ चलता हूँ, काफी वक्त हो गया सभी से मिले हुये और दो दिन की छुट्टी भी है मेरी’ कहते हुये नयन ने हामी भर दी।

फिर क्या था अनन्या को मानों पंख लग गये और हफ़्ते भर से धुलने को पड़े सारे कपड़े धुलने लगे। दोपहर तक के काम निपटाने के बाद वह तैयारी में लग गई, अब दिन में सोना क्या। अपनी, बच्चों व नयन की

सारी पैकिंग करने के साथ साथ उसने अपनी माँ को फोन भी कर दिया कि वे लोग परसों आ रहें हैं। माँ जी कल सुबह हम अपने घर जा रहे हैं..पूरी हनक के साथ अनन्या ने अपनी सास को सूचित कर दिया।

पूरे तीस दिन बाद आज फिर वह अपने मायके यानि कि अपनी माँ के घर में थी। इस बार घर में पता नहीं क्यों वो पहले वाली गर्मजोशी किसी में नज़र नहीं आ रही थी, पर नयन बड़े खुश दिखाई दे रहे थे और बच्चे तो हमेशा की तरह बच्चों के साथ मस्त थे।

कितने दिनों का प्लान है इस बार, भाभी का सवाल पता नहीं क्यों उसे अच्छा नहीं लगा। कुछ ज़्यादा नहीं हम लोग ‘एक सप्ताह रहेंगें और ये कल चले जायेंगे’ बड़े ही अनमने ढंग से जवाब देती अनन्या माँ के कमरे में चली गई। अरे आप यहाँ बैठे है मैं तो समझ रही थी कि भइया के साथ गप्पें लड़ा रहे होंगे! क्यों क्या मम्मी केवल तुम्हारी ही मम्मी हैं मेरी नहीं.. हम दो पल साथ नहीं बैठ सकते, बात नहीं कर सकते? नयन का जवाब सुन वह झेंप सा गई, मैंने ऐसा कब कहा!

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नयन के बाहर जाते ही उसने मम्मी से पूछा ‘क्या कह रहे थे? कोई खास नहीं…, मम्मी का छोटा किन्तु कुछ अधूरा सा जवाब मिलते ही उसने फिर पूछा ‘कुछ तो जरूर होगा, शायद काफी देर से यहाँ थे, पर मम्मी चुप ही रहीं।

सुनिये कल हम लोग भी आप के साथ ही वापस चलेंगें। पर क्यों! तुम तो पूरे एक हफ़्ते के लिए आई हो, रहो ना। ‘नहीं मुझे भी साथ चलना है घर में कितने काम पड़े हैं और माँ जी भी अकेली हैं’ कहते हुए अनन्या की हताशा झलक रही थी।

अरे बहू तुम! इतनी जल्दी लौट आईं, पूरे दो दिन भी अपनी मम्मी के पास नहीं रही.. जब गई ही थीं तो रुक कर आना था। माँ जी… अपनी मम्मी के पास ही तो लौट आईं हूँ। अनन्या का जवाब सुन कर सासू माँ ने नयन की ओर देखा जो पता नहीं क्यों आज काफी संतुष्ट नज़र आ रहा था। 

इससे पहले कोई और कुछ कहे-पूछे अनन्या ख़ुद ही बोल पड़ी ‘माँ जी मुझे समझ आ गया है मेरी सच्ची खुशी यहीं है, आप और इन्हें बार-बार अकेले छोड़ कर मेरा मम्मी के पास जाने और पूरे दिन भर इस उम्र में आपका घर के सारे काम करने, अकेले रहने का दर्द समझ चुकी हूँ मैं।

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कैसे..?

इस बार मम्मी ने मुझे बताया कि कैसे पिछले पन्द्रह दिन उन्होंने अकेले काटे हैं, वह भी बच्चों और भईया के बिना। उनके अनुसार ‘अब अकेले रहना बहुत दुःख देता है, रात क्या दिन भी काट नही कटते।’

मुझे माफ़ करना माँ जी, अब मुझे पूरी तरह समझ आ गया है कि हमारी सारी खुशियाँ यही हैं, न कि मम्मी या भईया के घर में। नाहक ही मैं, आप सबको कष्ट देकर, अपने  सुख और चैन की तलाश में भटक रही थी।

अब पूरी तरह से मैं आपकी बेटी बन कर रहूँगी…

अब, सब खुश थे नयन, अनन्या और उनकी माँ भी। दीगर बात है कि इस बार नयन का उसके साथ ससुराल जाना, भाभी व सासू माँ से चुपके से मदद माँगना और दोनों का सहयोगी व्यवहार काम आ गया। अनन्या की तलाश और नयन के प्रयास पूर्ण हुए और कोई कठोर कदम नहीं उठाना पड़ा नयन को।

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-राम मोहन गुप्त

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