नमिता घर के कामों में मशगूल थी तभी डोर वेल बजी । नमिता ने दरवाजा खोला तो देखा सामने कोरियर वाला था। उसने एक लिफाफा पकड़ाया नमिता को और चला गया । नमिता ने जब अंदर आकर लिफाफा खोला तो देखा दूसरे भतीजे की शादी का निमंत्रण कार्ड था ।र्काड देखकर नमिता थोड़ी असमंजस में पड़ गई ।सारे काम छोड़कर ं नमिता बैठ गई पिछली बार भतीजे की शादी का पूरा घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने घूम गया।
दो साल पहले नमिता के बड़े भतीजे की शादी थी।कितनी खुश थी तीनों बहनें । बहनों की शादी निपट जाने के बाद मायके में भतीजे की ये पहली शादी थी जो की सालों बाद पड़ी थी । शादी का समाचार मिलते ही सभी बहनों ने खूब जोर शोर से तैयारी शुरू कर दी थी ।
नमिता तीन बहनें थीं सविता सबसे बड़ी फिर नमिता और सबसे छोटी कविता । सबने मिलकर एक साथ जाने का प्रोग्राम बनाया सभी पूरी मस्ती में थी । बहुत सालों बाद घर में बड़े भाई के बेटे की शादी का मौका मिला था।
नमिता के जीजा जी बड़े मीन-मेख निकालने वाले इंसान थे । दूसरों को परेशान करना बस।वो सोंच रहे थे साले साहब के बेटे की शादी में आए हैं तो पूरी आवभगत होनी चाहिए। पूरी दामाद गिरी दिखानी है ।वो बात बात पर मीन-मेख निकालते रहते और तनाव पूर्ण माहौल बनाने की कोशिश करते थे।
जिससे घर के सभी लोग बस उन्हीं पर ध्यान दें । नमिता ने एक दो बार सविता को टोका भी कि जीजा जी को मना करो सविता दी लेकिन वो भी कह देती अरे इतने सालों में तो यही तो मौका लगा है अपने लोग को
आवभगत कराने का नमिता कुछ नहीं होता तू परेशान न हों बस देखती जा । नमिता चुप हो जाती । जबकि नमिता के पति जतिन और कविता के पति शरद कुछ नहीं बोल रहे थे । दूसरे दिन सुबह जब नास्ते का समय हुआ तो घर में आलू बण्डे हलुआ और ब्रेड बटर और सैंडविच था । जहां पर सबलोग नाश्ता कर रहे थे जीजा जी वहां पर न जाकर कमरे में ही नाश्ता मंगवा रहे थे साथ में जतिन और शरद को भी बैठा लिया था
और ज्यादा ज्यादा नाश्ता मंगवा रहे थे। सबके खाने के बाद काफी नाश्ता बचा हुआ था जो कमरे में ही पड़ा था कायदे से उसको रसोई में भिजवा देना चाहिए था सो नहीं वही पड़ा रहा । दोपहर में किसी वजह से भाभी का उधर से निकलना हुआ तो देखा कि बहुत सारा नाश्ता वहां पड़ा हुआ है तो भाभी ने सविता से कहा , सविता इतना सारा नाश्ता यहां पड़ा है बर्बाद हो रहा है
अब कल से सबलोग नाश्ता वहीं पर करना जहां सबलोग कर रहे हैं । नमिता के जीजा जी सतीश जी अंदर से सुन रहे थे वो सविता को बुलाकर बोले क्यों वहां जाए हम तो यही कमरे में ही नाश्ता करेंगे।
दोपहर को खाना खाते समय सतीश जी फिर बिफर पड़े अरे सविता तुम्हें पता है न कि मैं परवल नहीं खाता फिर भी वही सब्जी बना गई है सबके सामने ऐसी बात सुनकर सविता थोड़ी सकपका गई बोली अब सबके पसंद की अलग-अलग सब्जी तो बनेगी नहीं भिंडी है न आप भिंडी से खा ले । लेकिन वो गुस्से में उठकर अंदर आ गए ।
ऐसा लग रहा था कि वो रंग में भंग डालने के मक़सद से ही आए हैं । दिनभर के बाद जब रात को सोने की तैयारी में भइया नौकर से बिस्तर लगवा रहे थे तो सतीश जी बिस्तर देखकर फिर बिदक गए ये क्या भइया ये कैसे बिस्तर मंगवाए हैं आपने बदबू कर रहे हैं मैं तो नहीं सोऊंगा इसपर आप दूसरे मंगवाए । भइया को भी थोड़ा ताव आ गया बोले अब टैट हाऊस के बिस्तर तो ऐसे ही होते हैं
असल में जुलाई का महीना है थोड़ी बहुत बरसात हो जाती है तो ऐसे गद्दों में थोड़ी महक सी आ जाती है आप इसपर घर से साफ चादर लेकर डाल लिजिएगा। नहीं मुझे तो इसपर नहीं सोना है ।बस ऐसे ही बिना मतलब के किसी न किसी बात को लेकर तनाव पूर्ण माहौल बनाए हुए थे। सुनीता कुछ कहती भी तो कहते तुम चुप रहो यार ससुराल में शादी में आए हैं मज़ाक़ है क्या।
तीसरे दिन बारात उठने का समय हुआ तो सतीश जी ने शराब की मांग कर दी । भइया बोले नहीं यहां ये सब नहीं चलेगा ।तो सतीश जी बोले खुशी का माहौल है शादी है तो इसके बिना तो काम चलेगा नहीं ।अब तो सतीश जी अडकर बैठ गए और जबतक शराब नहीं मिलेगी बारात में नहीं जाना है। जतिन और शरद को भी अपने साथ ले लिया हालांकि जतिन ने मना भी किया तो सतीश कहने लगे तुम मेरे साथ हो कि साले साहब के साथ।
उनके इस व्यवहार से भइया नाराज होकर कहने लगे तुम लोगों को यही सब करना था तो आओ क्यों थे ।अब तो और भी अपमान हो गया।बस दूसरे दिन सतीश जी सविता को लेकर वापस चलें गए । चूंकि गेहूं के साथ घुन भी पिसता है तो दोनों छोटी बहनों को भी उसमें शामिल किया गया और उन्हें भी वापस आना पड़ा।
नमिता बोली कविता से कितने अरमान से गए थे शादी में खूब मौज मस्ती होगी सब जीजा जी ने खराब कर दिया।बस इसी मतभेद की वजह से भइया भाभी से बहनों की बातचीत नहीं हो रही थी। फिर भी दूसरे भतीजे की शादी का र्काड भेज दिया भइया ने। लेकिन फोन नहीं किया। तीनों बहनें शादी में तो नहीं गईं।
शादी बीत जाने के कुछ समय बाद मां से मिलने बहनें जब मायके गई तो मां ने समझाया देखो बेटा गलती दामाद जी की थी उस समय मेरा कुछ बोलना ठीक नहीं था इसलिए कुछ नहीं कहा लेकिन यहां आई हो तो भाई भाभी से मिलकर जाना ।(भाई भाभी अलग मकान में रहते हैं ) तुम लोगों का फ़र्ज़ बनता है
बेटा तुमलोग छोटी हो बेटा हम कितने दिन के है भाभी भाई से ही मायका होता है ।हम न रहे तो मायके आने को तरस जाओगी। सविता तैयार नहीं हो रही थी भाई के पास जाने को सविता भी सतीश के साथ रहते रहते कुछ उनके जैसी ही है गई थी । नमिता और कविता ने कहा चलो सविता दी चलते हैं मां ठीक कह रही है आखिर मतभेद मिटाना है तो किसी न किसी को तो पहले करनी होगी न।
भाई की पेंट वगैरह की दुकान है ।घर के बाहर दुकान है और अंदर रहते हैं । तीनों बहनें गई दुकान में भाई बैठे थे , नमिता ने पूछा कैसे हैं भइया , ठीक है क्यों आईं हो तुमलोग मुझे नहीं रखना तुम लोगों से संबंध।तुम लोग मेरी खुशी में शामिल होने आई थी या बबाल करने । सतीश जी को समझा नहीं सकती थी क्या ।देखो सविता मां पिताजी दामाद के नखरे उठाए हम लोग नहीं उठाएंगे ।
कुछ देर खड़ी रही तीनों आगे कुछ बातचीत न होते देख वापस जाने को दुकान से बाहर निकलीं तो ऊपर से भाभी ने देखा तो आवाज दी क्या तुम लोग भइया से ही मिलकर चली जाओगी क्या भाभी से नहीं मिलोगी।
फिर तीनों अंदर गई , भाभी ने बहुत समझदारी दिखाते हैं कोई पुरानी बात नहीं छेड़ी । अच्छे से चाय नाश्ता कराया । फिर आने का कहकर विदा किया।
जिस बेमन से तीनों बहनें आई थी खुशी खुशी वापस गई।आज मतभेद खत्म हो गया। दोस्तों ऐसा बहुत से घरों में होता है।घर का एक इंसान ऐसा होता है जो रंग में भंग डालने की कोशिश करता है । ऐसा न करें । अगर कोई बात हो जाए तो भी समय रहते मतभेद को दूर कर लें इसी में भलाई है। नहीं तो फिर मन में गांठ की तरह पड़ जाती है।
लम्बा अरसा बीत जाने पर पुरानी बातों की गांठों को खोलना बहुत मुश्किल हो जाता है।आप कितने भी खास व्यक्ति हो पर किसी के घर तनाव का माहौल पैदा न करें।दो चार दिन को मेहमान बनकर गए हैं तो अच्छे से रहे यही मेरी सलाह है ।
धन्यवाद
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
7 जुलाई