“पता नहीं मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है ? माँ सही कहती थी तेरे हाथ में यश ही नहीं है… अच्छे काम भी कर लो कोई नाम नहीं होने वाला..बेकार ही सिरदर्द ले कर अपने माथे काम की चादर ओढ़ती रहती हूँ….इतने जतन से सब तैयारी की और नाम देखो हो गया जेठानी जी का….इससे अच्छा तो यही होता अपने शरीर को ही आराम दें देती।”अपने आपको कोसती और कमर दर्द से कराहती नव्या कमरें में बैठ कर आँसू बहाएँ जा रही थी
मन कड़वाहट से भर चुका था…ऐसा नहीं था कि उसे नाम ही कमाना था पर थोड़ी सराहना थोड़ा अपनत्व थोड़ी सी परवाह कोई करें तो थकान भी कम हो जाती पर यहाँ तो ऐसा कुछ भी नहीं था ना कोई ऐसा अपना नज़र आ रहा था।
तभी उसकी माँ का फोन आ गया फिर क्या था नव्या शुरू हो गई।
उधर से उसकी माँ ने समझाते हुए कहा,”बेटा मैं जानती हूं तू हमेशा अपने ससुराल वालों का पूरा ख्याल रखती हैं ये अच्छी बात है…पर हर बार सब काम तुम्हें ही करना जरूरी है क्या? माना तुम्हें लगता है ससुराल की इज्ज़त का सवाल है तो सब काम एक दम परफेक्ट हो पर इसका मतलब ये तो नही कि तुम खुद को उसमें झोंक दो..
अरे कुछ काम उन लोगों को भी करने दो…..अब क्या हुआ तुम्हारे कमर में दर्द हो रहा तो किसी को कोई फर्क पड़ेगा? नहीं ना..किसी को परवाह नहीं ये तो मुझे दीया ने बताया तभी तुम्हें फोन कर रही हूँ अपने आपको भी देखो….जब सब का काम सुचारू रूप से चलता रहेगा तो तुम्हारी तकलीफ़ कोई नहीं समझेगा ….
अभी भी वक्त है अपने शरीर को भी आराम दो और जब तुम्हारी जेठानी की बेटी की सगाई है तो उनको भी कुछ ज़िम्मेदारियाँ उठाने दो…तुम ही भागदौड़ करती रहोगी तो उनको तो पता भी नहीं चलेगा शादी में क्या क्या करना होता….देख तेरी माँ हूँ तेरी ही फिक्र करूँगी…..
बाकी जो तेरा दिल करे करना.. परिवार में जब भी कोई इस तरह की फ़ंक्शन हो तो जो भी काम हो मिल जुल कर करो तो ही सब ठीकठाक चलता है नहीं तो एक कल-पुर्जा खराब हुआ नहीं कि सब चौपट हो जाएगा…बस बेटा आज तू आराम कर कोई भागदौड़ करने की जरूरत नहीं है तू ठीक रहेगी तभी तेरे पति और बच्चों का ख्याल रख सकेंगी…ये बता दामाद जी किधर है?….उनको तेरी हालत का पता है भी कि नहीं ?”
‘‘ तुम तो जानती ही हो उनको …..जाने कौन सी पूजा के परिणाम स्वरूप मिलें हैं मुझे श्रवण कुमार और लक्ष्मण सरीखे पति…..बस बोल गए कुछ देर आराम करो फिर काम करना।”नव्या ने कहा
‘‘ बेटा अभी भी बोल रही हूं अपने शरीर को देखकर ही काम ओढ़ना… बेकार मेहनत करेगी फिर अफसोस ही रहेगा…चल तू आराम कर बाद में फिर फोन करूँगी।”कहकर माँ ने फोन रख दिया
नव्या किसी तरह बेटी दीया को बुला कर अपने कमर में मूव लगवा ली।
शरीर को तो आराम दे भी दे पर जो दर्द दिल में हो रहा उसका क्या किया जाएँ ।
आज उसने सोच लिया था कि अब कल के कार्यक्रम के लिए उसे क्या करना होगा।
आज जेठानी की बेटी की सगाई होने वाली है। घर के बाहर लॉन में सारी तैयारियां शुरू हो गई थी। हलवाई लग गए थे। सब नव्या को आवाज दे रहे थे क्योंकि जिसने जिम्मेदारी अपने माथे खुद ले ली है तो हर चीज के लिए उसको ही बुलाया जा रहा था।
“भाभी ये रहे सब सामान की लिस्ट…. हलवाई का सामान यहाँ रखा है वो सामान वहां रखा है..।’’नव्या सब बातों की जानकारी अपनी जेठानी को देने लगी
“पर ये सब मुझे क्यों बता रही हो नव्या,…..ये सब तो तुम ही अच्छे से सँभाल सकती हो मेरे बस का नहीं ये सब करना.. फिर तुम्हारे जितना दिमाग तो मैं लगा भी नहीं सकती सब कुछ कितनी बारीकी से कर लेती हो मेरे से नहीं होगा….तुम ही देखो ये सब नहीं तो वरूण जी को बोल दो।”जेठानी ने कहा
‘‘ ना भाभी आपकी बेटी की सगाई है ना.. सब कुछ परफेक्ट तो आप ही कर सकती है कल घर में जितने मेहमान आए हुए थे सब आपकी पसंद की तारीफ ही कर रहे थे…मुझसे बेहतर दिमाग तो आपके पास ही है ना तो फिर आज भी सबकुछ परफेक्ट ही होना चाहिए।”नव्या के शब्दों की कड़वाहट बस वो महसूस कर रही थी पर सामने मीठे बोल बोलना जरूरी था
‘‘ वो ….वो ..ऽऽ अब सब को क्या बोलती फिरू के ये सब नव्या ने किया है? मेरी बेटी की सगाई है तो सब यही सोच रहे होंगे ना कि ये सब सामान, तैयारी मैं ही कर रही हूँ.. ऐसे में मैं कुछ नहीं बोल पा रही ।”जेठानी ने स्पष्ट किया
‘‘ इसलिए ही तो आज की तैयारी आप ही कीजिए…..जब जो काम मैंने पीछे से किए तो भी आप की वाह वाही हुई जबकि मैं ही जानती हूँ मेरी कमर में कितना दर्द हो रहा है बेल्ट लगा कर सारे काम कर रही हूँ ताकि कोई कमी ना हो जाए तब तो आप ही आगे रही तो आज आप ही अपनी जिम्मेदारी निभाएँ….मेरी तकलीफ़ मैं ही समझ सकती हूँ ….एक बार को आपने पूछा तक नहीं।” कहकर नव्या अपने कमरे में चली गईं
कुछ देर बाद वरूण कमरे में आकर बोलें,‘‘ क्या हुआ है तुम्हें? बाहर भाभी अकेले सब देख रही है सब पूछ रहे छोटी बहू किधर है .. उसको भी तो मदद करनी चाहिए…..चलो बाहर भाभी की मदद करो.. मदद क्या जब सब कुछ तुम कर ही रही थी तो अभी भी करो।”
‘‘ हाँ कर तो रही थी अब नहीं करूँगी….मेरे कमर में बहुत दर्द हो रहा.. आपको पता भी चलता है? जो कह रहे हैं छोटी बहू को मदद करनी चाहिए उनको कल क्यों नहीं बताया कि ये जो सजावट तैयारी सब देख रहे हैं छोटी बहू ने ही किया है.. बड़ी बहू की तारीफ हुई तो
सबकी जुबान पर ताला लग गया.. छोटी बहू नहीं दिखाई दी तब? अब नही दिखाई दी तो मुझे दिखाई भी नहीं देना। शाम तक आराम करूँगी तो ही मैं सगाई समारोह में शामिल हो पाऊँगी…आप जाकर कह दें सब को छोटी बहू कामचोर है…पता नहीं इतना सब कर के भी सबकी नजरों में बुरी ही बन गई ।पता नहीं मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?’’नव्या के अंदर ये सब देख सुनकर कड़वाहट भर चुका था इसलिए वो गुस्से में वरूण से बोली
‘‘ इतना गुस्सा क्यों कर रही हो? …..समझ रहा हूँ तुमने बहुत भाग दौड़ की है सब कुछ इतने व्यवस्थित रूप से कोई नहीं कर सकता, एक एक मेहमान का ध्यान रखना सबके बस का नहीं। लगता है दर्द ज्यादा हो रहा लाओ कमर में मूव लगा देता हूँ और ये एक दर्द की दवा भी खा लो।
मैं जाकर सब सँभालता हूँ….नव्या मुझे माफ करना मैं बड़ो के लिहाज में तुम्हारे दर्द को नजरंदाज करता रहा पर लगता है अब तुम्हारे लिए भी मुझे ही सोचना होगा।’’ कहकर वरूण मूव लगा कर दवा दे कर बाहर चले गए
शाम को नव्या सगाई के लिए आई तो सब उसे ही देख रहे थे। तभी उसकी बेटी उसके पास एक कुर्सी लेकर आई और बोली,‘‘ माँ काम उतना ही करना चाहिए जितना शरीर इजाजत दे.. मर कर सब के लिए काम भी करती रहती हो और ताने भी सुनती हो
इससे अच्छा है ना जिसका काम है उनको ही करने दो.. और लोगों की बातों पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं जिनके लिए कर रही थी जब वो ही नहीं समझते तो दूसरों की बात का क्या मलाल करना…चुपचाप यहाँ बैठी रहो जिसको जो सोचना सोचने दो।”पन्द्रह साल की दीया की बातें सुन कर सब बोलने लगी कितना बोलती है छोटी बहू की बेटी पता नहीं कैसे संस्कार दे रही है इसे।
नव्या अपने सिर पर हाथ रखते हुए सोचने लग,”सच में मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है? एक बेटी माँ के लिए सोच रही है तो भी वो ग़लत ही नजर आ रही…..भगवान जाने सारी बहुओं की किस्मत ऐसी होती या बड़ी बहू की किस्मत अच्छी और छोटी की बुरी या फिर इसका उल्टा…शायद ये हर घर की कहानी होगी एक कहानी मेरे नसीब की भी ।”
दोस्तों मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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