प्राचीनकाल में घने जंगल में एक कुआँ था।उसमें बहुत सारे मेंढ़क अपने-अपने परिवार के साथ रहते थे।बस कुआँ भर ही उनकी दुनियाँ थी।उनमें से एक मेढ़क काफी मोटा-ताजा था।साथ में उसकी पत्नी और तीन बच्चे भी थे।कुआँ के सभी मेंढ़कों से मोटा होने के कारण वह मेंढ़क खुद को दुनियाँ का सबसे शक्तिशाली जीव समझता था,
क्योंकि कुएँ के बाहर की दुनियाँ उसने देखी न थी।उस मोटे मेंढ़क की गर्दन हमेशा घमंड से ऐंठी रहती थी।वह अपने कुएँ के साथियों तथा अपने बच्चों के सामने शेखी बघारते हुए हमेशा झूठी-झूठी कहानियाँ सुनाता।
कुछ समय पश्चात् बच्चों की जिद्द के कारण मोटा मेंढ़क उन्हें घुमाने कुएँ से बाहर ले गया।नन्हें मेढ़क खुशी से उछलते-कूदते पिता से आगे निकल गए। उन्होंने जंगल में एक मोटे-ताजे बैल को देखा।बैल अपनी मस्ती में घास चर रहा था।
बैल का विशालकाय शरीर देखकर नन्हें मेंढ़क आश्चर्यचकित रह गए। उसी समय बैल ने जोर से हुंकार भरी।नन्हें मेंढ़क बैल की हुंकार से डरकर पिता के पास वापस लौट आएँ।पिता मेढ़क ने नन्हें मेंढ़कों से डर का कारण पूछा।
उस समय तो नन्हें मेढ़क डर के कारण खामोश रहें।अपने कुएँ की ओर वापस लौटते समय नन्हें मेंढ़कों ने कहा -” पिताजी!आप तो कहते थे कि दुनियाँ का सबसे मोटा और शक्तिशाली जीव मैं ही हूँ,परन्तु आज हमने आपसे बहुत बड़ा और शक्तिशाली जीव देखा है।उसके सामने आप कुछ नहीं हो।”
नन्हें मेंढ़कों की बातें सुनकर मोटे मेंढ़क के अहंकार को ठेस पहुँची।वह रास्ते में रुक गया और अपना शरीर फुलाकर पूछा -” बच्चों! क्या वह जानवर इतना मोटा था?”
नन्हें मेंढ़कों ने कहा -” नहीं पिताजी!वह और मोटा था।”
दूसरी बार अपने शरीर को और फुलाकर मोटे मेंढ़क ने पूछा -” बच्चों!अब देखो,क्या इतना मोटा था?”
फिर नन्हें मेंढ़कों ने कहा -” नहीं पिताजी!और ज्यादा मोटा था।”
घमंड में चूर होकर तीसरी बार मोटा मेंढ़क जी-जान से अपने शरीर को फुलाने लगा,परिणामस्वरूप उसका शरीर फूलकर फट गया और उसकी मौत हो गई।
इसलिए कहा गया है कि कभी घमंड मत करो और कुएँ का मेढ़क मत बनो।
उपरोक्त कहानी पंचतंत्र की कहानी से प्रेरित है।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वलिखित)