“हद करते हो सुरेश…. कितना समझाया था तुम्हें पर तुमने मेरी जरा भी बात नहीं मानी…क्या ज़रूरत थी छोटे को दुकान पर बैठाने की …अच्छा ख़ासा वो शहर में पढ़ाई कर रहा था पर तुम्हें तो उसका शहर जाना भी नहीं पसंद आया और ना उसका पढ़ाई करना ।” मनोहर बाबू अपने बड़े बेटे को हर बार की तरह ज़िम्मेदार ठहराते हुए सुनाए जा रहे थे
“ पर पिताजी मैंने..।” सुरेश कुछ कहने को मुँह खोला ही था कि पिताजी फिर डपट पड़े
“ आप हर बार मेरा ही गला पकड़ते हैं …. पर आप भी सुन लीजिए मैंने रमेश से ना कहाँ तू यहाँ आकर दुकान सँभाल।” भुनभुनाते हुए सुरेश घर से बाहर लगे दुकान में चला गया
“ रमेश तुमने बाबूजी से क्या कहा है सच सच बोलना… वो तेरे शहर छोड़ कर आने का ज़िम्मेदार मुझे ठहरा रहे हैं… बचपन से आज तक तेरी हर गलती सिर माथे क्या लेता चला गया पिताजी की नज़रों में मैं गुनाहगार बनता गया… वो हर बात पर मेरा गला पकड़ लेते हैं जबकि मेरी जरा सी भी गलती ना होती।” सुरेश अपने छोटे भाई से बोला जो गद्दी पर बैठा था
“ भैया मुझे माफ कर दो… मेरा पढ़ाई में जरा भी जी ना लगता वो तो बाबूजी ने ज़बरदस्ती कर शहर भेज दिया…पढ़ाई होती नहीं फेल हुए जा रहा था.. तब एक दोस्त ने कहा जब तेरा खुद का व्यवसाय है तो वो सँभालो काहे माथा फोड़ी कर रहा पढ़ाई में … मैं ऐसे लौट कर आता तो बाबूजी की चार बात सुनता सो कह दिया भैया ने कहा अकेले दुकान ना सँभल रही पढ़ाई वढ़ाई छोड़ आ कर मेरी मदद कर तो मैं आ गया ।” रमेश सिर झुकाए बोला
“ चल ठीक है तेरे लिए ये भी सुन ही लिया अब तू जाकर खाना खा ले।” सुरेश रमेश को जाने बोल कर खुद दुकान पर बैठ गया
दरवाज़े की ओट से ये सब सुन रहे मनोहर जी दंग रह गए…. अपने बड़े बेटे के व्यवहार पर।
रमेश जब घर आया उससे ग़ुस्से में बोले,” जब तेरा मन नहीं था तो सच बोलता सुरेश का नाम लेकर उसे हर बार डाँट पड़वाता रहा तुम्हें जरा भी शर्म ना आई।”
“ मुझे माफ कर दीजिए बाबूजी ।” रमेश माफ़ी माँगते हुए बोला
“ माफ़ी तो मुझे माँगनी है अपने समझदार पुत्र से जो हर बार की तरह मेरी बात सुनता रहा ।” कहते हुए मनोहर जी पास रखी चारपाई पर सिर पकड़कर बैठ गए
मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#मुहावरा
#गलापकड़ना (किसी को ज़िम्मेदार ठहराना)