एक प्यार ऐसा भी …(भाग -13) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

आप सबने अभी तक पढ़ा कि बहादुर राजू ने अपनी प्यारी दोस्त निम्मी को मौसा मौसी के चंगुल से बचा लिया है ….. इन सब में बेचारे सर जी को गोली लगी थी …. उन्हे निम्मी के बापू ने समय पर अस्पताल पहुंचाकर बचा लिया है …. मौसी के जेल जाने की वजह से उनकी बेटी मन्नु को निम्मी की अम्मा अपने साथ गांव ले आयीं है …… सभी लोग गांव आ चुके है …..

अब आगे….

गांव आकर राजू और सर जी की बहादुरी का सबको पता चलता है तो उन्हे कंधो पर बैठाकर उनका सम्मान किया जाता है ….. गांव के प्रधान जी की  तरफ से भी उन दोनों को माला पहनायी ज़ाती है … ज़िसे देख ख़ुशी से बांवरी हुई जा रही है निम्मी …. दोनों हाथों से लगातार तालियां बजा रही है ……

उसके हाथ लाल पड़ गए है ……

राजू को भी लग रहा है कि शायद मैने कुछ अच्छा काम किया है तभी इतनी वाहवाही हो रही मेरी……

राजू के अम्मा बापू  की ख़ुशी का भी ठिकाना नहीं था आज….

सर जी के कहने पर निम्मी की अम्मा ने निम्मी को दुबारा स्कूल भेजना शुरू कर दिया है …..

राजू तो पहले से  ही रोज स्कूल आने लगा था….

निम्मी राजू से बोली….

ए रे राजू…. तू तो बहुत होशियार हो गया है …. कैसे पटर पटर सर जी के सवालों के अंग्रेजी में उत्तर दे रहा…..

मैं तो मौसी के घर जाके बिल्कुल बुद्धु हो गयी हूँ…..

निम्मी की आँखों में आंसू है ….

रो मत निम्मी …. मैं तुझे पढ़ा दूँगा …. और मास्साब भी पढायेंगे …. मै भी कितना  बुद्धु था…. पता है ना……

होशियार हो जायेगी…. तू तो पहले से ही पढ़ने में अच्छी थी…. बस भूल गयी है ….. पढ़ती रहेगी तो तुझे सब आ जायेगा…. समझी निम्मी …..

राजू निम्मी को दुखी तो देख ही नहीं सकता….

उसे हर तरह से बहलाने, समझाने की कोशिश करता रहता है …..

सर जी दोनों के निश्चल प्यार को देख मुस्कुरा भर देते…..

राजू की छोटी बहन भी अब बड़ी हो रही थी….

प्रधान जी का बेटा आशीष भी अपनी टोली के साथ अब जेल की हवा खाकर बाहर आ चुका था….

राजू और निम्मी ने एक दूसरे को सहयोग देते हुए 12वीं पास कर ली थी….

अब 12वीं के आगे की पढ़ाई के लिए गांव में कोलेज नहीं थे…

सब शहर में थे……

सर जी का भी ब्याह हो गया …..

उनका प्रमोशन हो गया था…. वो जल्द ही गांव छोड़कर जाने वाले थे…..

उन्होने राजू और स्कूल के सभी बच्चों और उनके परिवारजन को समझाया कि बच्चों को सभी आगे ज़रूर पढ़ाये….

मैं शहर में रहूँगा अब अपने परिवार के साथ….. वहीं किसी अच्छे कोलेज में अपने बच्चों का दाखिला करा सकते है आप सभी ….

अब बच्चों को मैने इतना समझदार तो बना ही दिया है और वो खुद भी अपना अच्छा बुरा समझते है ….

उन्हे शहर भेजिये पढ़ने के लिए….

कोई दिक्कत य़ा परेशानी हो तो मैं हूँ वहां…. बेझिझक वहां आ सकते है मेरे पास……..

सर जी ने अपनी बात समाप्त की…. कुछ तो सहमत दिखें…. ज्यादातर ने बच्चों को गांव में ही आगे ना पढ़ाकर घर पर रखने का फैसला लिया ……

उनमें ज्यादातर लड़कियों के माँ बाप थे जो बच्चों को आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे… उनमें निम्मी की अम्मा बापू भी थे…..

वो एक बार निम्मी को शहर पढ़ने भेजकर पछता चुके थे…. अब तो उन दोनों ने  कान पकड़ लिए….

राजू के माँ बापू राजू को आगे पढ़ाना चाहते थे….

उन्होने सर जी से कहा …..

मेरा राजू बचपन से आपकी छाया में रहा…. अब आगे की ज़िम्मेदारी भी आपकी… उसे कमरा दिला देना….बाकी सब व्यवस्था राजू के बापू कर देंगे….. वो रोज शहर जावें है …..

राजू की अम्मा को देख 8-10 लड़कों की अम्मा बापू मान  गए….

सभी अपने बच्चों को शहर भेजने की तैयारी करने लगे…..

निम्मी राजू को अपने से दूर जाता देख बेचैंन हो रही थी….

य़हीं हाल इधर राजू का था….

एक दिन दोनों रास्ते में खेत की मेड़ पर मिले….

निम्मी को आंसुओं की वजह से सब धुंधला नजर आ रहा था…..

तू राजू ही है ना …. मुझे पता ना चल रहा….

क्यूँ तेरी आँखें नहीं है री निम्मी …

राजू ही तो हूँ… दीख नहीं  रहा तो छू के देख ले…..

राजू  बोला…..

दिखेगा कहां से रे राजू…. देख कैसे मेरे  आंसू भरे है आँखों में  …

निम्मी ने अपनी आँखें आगे की तरफ करते हुए बोला….

क्यूँ तू रो क्यूँ रही है निम्मी ???

राजू बोला….

तुझे नहीं पता य़ा बन रहा है ??.

निम्मी नाक सिकोड़ती है …..

नहीं मुझे नहीं पता….. तेरी अम्मा तो ना चली गयी…

कल बहुत खांस रही खाट पे बैठी….

राजू कहता है ….

तू मेरी अम्मा को मार डाल… तू भी जा रहा है और मेरी अम्मा भी चली गयी तो मैं क्या करूंगी रे राजू…..

फिर तो वो आशीष मुझ से ब्याह कर लेगा….

अम्मा बापू भी प्रधान बाबा की बात मान रहे है ….

बोले है आशीष अच्छे से पढ़ जायें ,, कुछ बन जायें तो कर देंगे अपनी निम्मी का ब्याह आशीष से….

तो बुराई क्या है रे निम्मी …. तुझे तो आगे पढ़ना नहीं है ….

आशीष प्रधान का बेटा है …. बहुत पैसा है उनके पास… आशीष कुछ ना भी करें तो भी तू महारानी बनके रहेगी उनके घर में….

राजू दुखी होकर मुड़कर जाने लगा तो निम्मी ने उसका हाथ पकड़ लिया …..

राजू…… सच में तुझे अच्छा लगेगा….

मुझे ना करना उस आशीष वाषिश से ब्याह ……

मुझे तो……

बोल आगे क्या कह रही…. बोल निम्मी ….

राजू अपना हाथ छुड़ा लेता है निम्मी से….

ऐसे हाथ मत पकड़ा कर …. पता है ना अब हम बच्चे ना रहे… सयाने हो गए है …. किसी ने देखा तो तेरी आफत आ जायेगी निम्मी …. और वो जो सर जी ने बताया था ना कि लड़का लड़की का य़ा लड़की लड़का का हाथ पकड़े हैं 14-15 साल बाद तो वो कोई जवानी वाला हार्मोन होता है … उस से कुछ होता है ….

धड़कन तेज हो ज़ाती है …. खुद को आईने में निहारने का मन करता है ….. मैं और तू तो 18 साल के हो गए…..

तू हाथ पकड़े है ना तो मुझे भी ऐसा ही होता है निम्मी ….

धत…. निम्मी शरमा  ज़ाती है …. तू भी कैसी बातें करे है ….

निम्मी तू कुछ कह रही कि तुझे उस आशीष से ब्याह ना करना… तुझे तो…..

राजू निम्मी की आँखों में आँख डाले बोला….

कुछ नहीं कह रही…. मुझे लाज आती है …

पर मत जा ना राजू तू गांव से… मेरा मन कैसे लगेगा तेरे बिना….

निम्मी दुखी होके बोली…

देख निम्मी पढूँगा नहीं तो मुझे भी तो कोई बापू अपनी छोरी ना ब्याह के देगा …. वो तो नौकरी वाला छोरा ही देखेगा… मेरे यहां आशीष के जैसे जमीन जायदाद भी ना है …..

और मैं चाहूँ कि निम्मी तू भी किसी के घर जा तो अपने पैरों पर खड़ी होके जा…… ऐसा करता हूँ मैं शहर जाके, वो जो मास्साब बता रहे… प्राईवेट फोर्म बी.ए का,,, वो डलवा दूँगा ….

तू पढ़ती रहना… बस पेपर देने चली जाय़ा करना……

राजू निम्मी को समझाता है ….

तू बहुत अच्छा है रे राजू…. मैं पढूँगी ….. तू डलवा देना फोर्म मेरा…. जा तू अच्छे से पढ़ …

निम्मी के चेहरे पर मुस्कान है …

निम्मी मैं कुछ बन जाऊँ तब  तेरी अम्मा से कुछ बात करूँगा ….

अगर उससे पहले तेरा ब्याह हो जायें तो कर लेना… खुश रहना तू….

एक दूसरे से इतना बोल…. निम्मी और राजू अपने अपने घर की ओर चले आयें है …..

दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति निश्चल प्रेम की शुरुआत हो चुकी है ….

अगले दिन राजू शहर की ओर चला आया हैं …

पर यह क्या शहर आतें ही एक लड़की राजू को इशारे से बुलाती है ….

आगे की कहानी कल…. तब तक के लिए मुंगफली खाईये……

बिहारी ही का नाम लीजिये …. नइया तो उन्ही के हाथ में है हमारी आपकी….

बोल बांके बिहारी लाल की जय

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मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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