पत्नी नहीं मेरी शक्ति…! – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय  : Moral stories in hindi

विनायक एक आम आदमी था। महीने के तीसों दिन कोल्हू के बैल की तरह खटने के बाद बड़ी मुश्किल से महीने के अंत में एक साधारण सी तनख्वाह आती थी, जिससे बड़ी मुश्किल से उसके घर का खर्चा चल रहा था। 

बच्चों की पढ़ाई लिखाई, घर का किराया,उसके वृद्ध और बीमार माता पिता की दवाइयाँ, डॉक्टर का खर्चा, राशन पानी, आना-जाना, मेहमान नवाजी सब लेने देने के बाद उसके हाथों में कुछ भी नहीं बचता था।

उम्मीद भरे सुबह के साथ वह हर दिन यही सोचता अच्छे दिन आएंगे कभी न कभी।

एक दिन ऑफिस से घर लौटते समय उसके सिर में  एकाएक दर्द होने लगा और अचानक ही उसे चक्कर आने लगे।

उसने अपने चेहरे पर पानी के छींटे मारे और पानी का घूंट भी लिया।

थोड़ी देर वह ठीक भी हो गया लेकिन यह वाकया उसे अंदर ही अंदर डरा दिया।

मजबूरी जिंदगी की यह थी ,कहीं उसे कोई बड़ी बीमारी निकल गई तो वह क्या करेगा? अगर उसे कुछ हो गया तो उसका घर कैसे चलेगा? उसके माता पिता, पत्नी और बच्चे…!!!

शादी से पहले उसकी पत्नी स्कूल में पढ़ाया करती थी।

शादी के बाद उसने ही अपनी पत्नी को नौकरी करने से मना कर दिया था और घर परिवार के जिम्मेदारी दे दी थी। धीरे-धीरे उनके बच्चे हुए फिर उसकी पत्नी घर गृहस्थी  में ही सिमट कर रह गई थी।

आज विनायक को अपने इस फैसले पर अफसोस हो रहा था।

वह बहुत कुछ सोचते हुए घर आया। दोनों बच्चे पढ़ रहे थे।

बहुत ही मनोयोग से पढ़ते हुए देखकर उसका दिल कचोट गया।

कल को उनकी पढ़ाई कैसे पूरी होगी? कहां से पैसा आएगा? वह कुछ सोचते हुए अपने कमरे में  आकर लेट गया। 

तभी उसकी पत्नी हाथों में चाय का कप लेकर वहां आई और कहा

“ क्या बात है जी, आपकी तबीयत ठीक है? ऐसे कमरे में क्यों सो गए?”

चाय का कप लेकर पीते हुए विनायक पहले तो सोचने लगा कि उसे सच्चाई बताए या नहीं फिर उसने कहा

“ दीपा,आज मेरा माथा घूम गया। अब मुझे डर लग रहा है?”

“हो सकता है  काम के प्रेशर से स्ट्रेस बढ़ गया हो या फिर आंखों का नंबर बढ़ गया हो।

कल एक बार चेक करवा लीजिएगा।”

अपनी पत्नी की पॉजिटिव बातें सुनकर एक बार विनायक के मन को शांति मिली।उसे लगा वह बेकार ही डर रहा था।

उसने धीरे से अपनी पत्नी से कहा

“ दीपा, अब मुझे लगता है कि तुम्हें  फिर से नौकरी पकड़ लेनी चाहिए।”

“क्यों?” दीपा घबरा गई।

“नहीं…वो…घर एक के भरोसे नहीं चलता…पहले मैंने तुम्हें मना किया था ना लेकिन अब लग रहा है कि मैं गलत था।”

“पर…अब अम्मा बाबूजी बिल्कुल लाचार हैं जी। दीपा रोंआसी हो गई।उसने फिर कहा…

मैं उनपर घर की जिम्मेदारी छोड़ कर नहीं जा  सकती…अब उन्हें मेरी आदत पड़ चुकी है…।

पर आ..प ऐसे क्यों बोल रहे हैं जी…!”

अनजान आशंका से घबराते हुए दीपा ने पूछा।

“नहीं कुछ नहीं..!”विनायक ने बात को टाल दिया।

दूसरे दिन वह सुबह ही डॉक्टर के पास अपॉइंटमेंट लेकर पहुंचा।सारे टेस्ट कराने के बाद डॉक्टर ने विनायक से कहा

“सर, आपका अपेंडिक्स बढ़ा हुआ है और आपके किडनी में स्टोन भी है।इमिडिएट ऑपरेशन करना होगा।”

“हे भगवान!,विनायक ने अपना सिर पकड़ लिया।

कैसे होगा सब?” पैसों की चिंता उसे पागल बना रही थी।

उसे चिंता में देख कर डॉक्टर ने उससे पूछा

“क्या हुआ?”

“सर पहले तो मुझे रूपये अरेंज करने होंगे फिर 

ही ऑपरेशन होगा ना…अब मैं इतने रुपये कहाँ से लाऊंगा।”

देखिए मि. विनायक, मजबूरी से जिंदगी नहीं चलती।

आपके लिए ऑपरेशन जरूरी है नहीं तो यह बढ़ता जाएगा और जानलेवा हो जाएगा।”

आपके पास हेल्थ कार्ड तो होगा ना।आप उसे इस्तेमाल कर सकते हैं।”

“हेल्थ कार्ड!विनायक बुदबुदाया इतनी कम सैलरी में हेल्थ कार्ड कैसे एफर्ट कर सकता हूं।

विनायक बहुत ही परेशान था घर लौटकर उसने अपनी पत्नी को सारी बातें बताते हुए कहा

“दीपा डॉक्टर ने इमीडिएट ऑपरेशन के लिए कहा है ।मेरे किडनी में स्टोन है और अपेंडिक्स भी बड़ा हुआ है। दोनों के ऑपरेशन करने होंगे। इतना पैसा कहां से आएगा?”

दीपा ने  अपने पति के दोनों हाथों को प्यार से थपथपाते हुए कहा

“चिंता की बात नहीं है जी,मैं हर महीने हेल्थ कार्ड में पैसे भरती ही हूँ।

फिर बचत कर पोस्ट ऑफिस में भी रेकरिंग करवाया है…सब ठीक हो जाएगा जी …आप बिलकुल भी चिंता मत कीजिए।

ऑपरेशन में कोई दिक्कत नहीं आएगी।”

विनायक अश्रुपूरित आँखों से अपनी पत्नी को देखता रहा।

उसकी पत्नी ने उसकी मजबूरी को कितनी अच्छी तरह से हैंडल कर लिया था।

जो रुपए विनायक अपनी पत्नी के पर्सनल खर्च के लिए दिया करता था उन्हें उसकी पत्नी अपने ऊपर खर्च न कर मुसीबत के समय के लिए बचत  करती जा रही थी ।

विनायक का मन अपनी पत्नी के प्रति श्रद्धा से भर गया ।

उसने अपनी पत्नी के दोनों हाथों को अपने हाथों में लेकर उसे चूम लिया और कहा

“ थैंक यू सो मच दीपा ,तुमने मुझे किस मजबूरी से बचाया है यह मैं बता नहीं सकता… अभी मुझे अपने ऑपरेशन के लिए कर्ज लेना पड़ता और फिर उसे चुकाने के लिए ना जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते…!

एक हफ्ते में सफल ऑपरेशन के बाद विनायक घर लौट आया था।

इसी बीच उसके बड़े बेटे ने स्कूल ओलंपियाड निकाल लिया था।

उसे स्कूल और सीबीएसई दोनों की ओर से स्कॉलरशिप मिलने लगा था।

दीपा बुनाई में एक्सपर्ट थी। खाली समय में वह अपने बच्चों पति और सास ससुर के लिए स्वेटर शॉल बना करती थी अब उसने इसे अपना प्रोफेशन बनाने का निर्णय लिया क्योंकि वह घर से बाहर जाकर नौकरी करने में असमर्थ थी।

उसके सास ससुर खास तौर पर सास बिल्कुल ही  अपाहिज होकर बिस्तर पर थी।उन्हें देखना जरूरी और मजबूरी दोनों था।

उसने अपने पड़ोसियों से स्वेटर बुनवाने का आग्रह किया।

धीरे धीरे दीपा का नाम होने लगा।अब वहां के लोकल दुकानदार उसे ऑर्डर पर स्वेटर बुनवाने लगे थे।  

अब पैसों की किल्लत नहीं रह गई थी।

अपने बच्चों के भविष्य के प्रति और अपने माता पिता के लिए अब विनायक निश्चिंत हो गया था।

अपने आप को विनायक कभी बहुत ही मजबूर समझता था लेकिन अब उसके उम्मीदों का सूरज जगमगा उठा था। वह यह समझ चुका था कि उसकी पत्नी ही उसकी शक्ति है।

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सीमा प्रियदर्शिनी सहाय

#बेटियाँ के 6वीं जन्मोत्सव पर मेरी रचना

कहानी नंबर-4

मौलिक और अप्रकाशित

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