“ओ!रानी,आज दोपहर को ही आ जाना तुम,देर मत करना।शाम को है पार्टी।कॉलोनी में सभी किसी और को बुलाने वाले थे,पर मैंने मना कर दिया।तुम्हें ही कुछ ज्यादा पैसे मिल जाएं तो अच्छा है।समझी ना तुम।”निशा ने रानी को अच्छे से याद दिला दिया।
“जी,मेम साहब।आप बिल्कुल भी टेंसन मत लीजिए।मैंने सब सामान खरीद लिया है।छोले रात को ही भिंगो दिए थे।मसाला अभी तैयार कर लेती हूं।”रानी के हांथ और मुंह बराबर चल रहे थे।
निशा ने एक बार फिर से लिस्ट निकाल कर दोहराया”स्टार्टर में-कटलेट,हरा कबाब, कार्न चाट,चिली पनीर,सोया चॉपर।मेन कोर्स में छोले कुलछे,वेज बिरियानी,दम आलू,मिक्सड वेज,मटर पनीर,रायता,पापड़ और सलाद।मिठाई में गुलाब जामुन और रबड़ी।”
रानी ने याद दिलाया”मैडम जी,सूप भी तो बनेगा ना?”निशा झेंपती हुई बोली”हां रे हां।तुम्हें तो याद है सब।सुनो रानी,रजनी को भी लेते आना अपने साथ।काम में भी मदद हो जाएगी तुम्हारी।ये ले,दो साड़ी निकालकर रखी हूं।ये हल्की गुलाबी तुम्हारे लिए,नीली वाली बेटी के लिए।अपने बेटे को रात को आने कहना।यहीं खाना खा लेना तुम लोग।खाना बढ़िया बनाना रानी,मेरी इज्जत का सवाल है।”
“जी,मैडम जी,आप निश्चिंत रहिए।”रानी ने भरोसा दिलाया। पार्लर वाली लड़की आ चुकी थी।निशा को आज पूरा मेक ओवर करवाना था।पिछले महीने किटी में मिसेज बत्रा ने टोक दिया था “निशा,बूढ़ी नज़र आने लगी हो।अपना ध्यान रखा करो। लीपापोती करवाकर सबसे उम्रदराज महिला,सबसे जवान दिखने की कोशिश करती थी हमेशा।वाह रे!पैसा ।निशा अपने मेक ओवर में व्यस्त हो गई ,रानी अपने काम में।आज बाकी घरों में जल्दी ही काम निपटा लिया था।ग्यारह बज रहे थे,दौड़कर घर पंहुची तो,रजनी घर के काम निपटा चुकी थी।मां के हांथ में पैकेट देखकर पूछा उसने”अम्मा,क्या लेकर आई हो?मैडम जी ने क्या दिया?”
रानी ने साड़ियों का पैकेट उसके हाथों में दिया और कहा”देख रजनी,आज मेरे साथ चलना है तुझे मैडम जी के घर।रात को पार्टी है ना।तुझे मेरी मदद के लिए जाना है,याद है ना?ये नीली साड़ी दी है उन्होंने तेरे लिए।सुन,ज्यादा सजना मत।साधारण से तैयार होना।हम गरीब हैं बेटा।ये साज-सिंगार अमीरों के लिए है,हमारे लिए नहीं।आज औरतों का दिन है,ऐसा बता रही थी मैडम जी।”
रजनी बारहवीं में पढ़ने वाली सुंदर लड़की थी।ईश्वर का वरदान था या अभिशाप,कि गरीब के घर में इतनी सुंदर बेटी दी। बिल्कुल अपने बाप पर गई है।निखट्टू कामचोर तो था,पर राजकुमारों वाला रूप था मोहन(रानी के पति )का।मिस्त्री का काम करने वाले का बेटा था।उसके बाप ने रानी की मेहनत देखकर शादी तय की थी।रानी की मां ने भी सुंदर दामाद देखकर अपनी गरीब बेटी ब्याह दी थी,उसके साथ।काम करने के लिए कहते ही पारा चढ़ जाता था उसका। छोटे-मोटे काम करके किसी तरह चला रहा था।पांच साल हुए,किसी ठेकेदार के साथ कहीं और गया था काम करने।कभी -कभार फोन करता था।एक बार बस आया था।रानी को दो बच्चों की जिम्मेदारी देकर छुट्टा घूम रहा था।
बेटी सरकारी स्कूल में पढ़ रही है।बेटा अभी चौथी में है।
एक बजते -बजते रानी ,रजनी को साथ लेकर क्लब में खाना बनाने पहुंच गई।अपने पड़ोस की दो और औरतों को भी साथ ले लिया रानी ने।रजनी ने अपनी और मां की साड़ी रख ली थी,मैंचिंग ब्लाउज के साथ।चार बजते-बजते निशा आ धमकी,तैयारी देखने।खुशबू से ही मन भर गया उसका। बर्तनों को खोल -खोलकर देख रही थी निशा।मन भर गया रंग देखकर।सोचने लगी,इस रानी के हाथों में सच में जादू है। फटाफट सारा काम कितनी जल्दी निपटा देती है।गजब की ताकत है हड्डियों में।हमसे तो अपने घर का काम भी नहीं हो पाता। उम्र बराबर की ही होगी,पर ग़रीबी में ज्यादा बूढ़ी दिखने लगी थी।अचानक निशा की नजर रजनी पर पड़ी।छह महीने पहले देखा था,जब घर आई थी मां के साथ।अब तो और बड़ी दिखने लगी।कटलेट को अपने हाथों से सुंदर आकार देते हुए कनखियों से देख रही थी निशा को।नज़र मिलते ही कहा उसने”नमस्ते मैडम जी।”निशा को उसकी आवाज बहुत मधुर लगती थी।उसने भी हंसकर उसके सर पर हांथ फेरा।पता नहीं उसके मन में क्या आया , पर्स में पड़ी एक लिपिस्टिक,काजल,एक ईयरिंग उसके हांथ में देकर कहा”बेटा,शाम को पहन लेना,पार्टी में। अच्छी दिखा कर।”उसने बड़ी शालीनता से कहा”जी,मैडम जी।”
निशा पार्टी की तैयारी देखकर गर्वित हो गई।रानी को खाने की जिम्मेदारी देकर कुछ ग़लत नहीं किया था उसने।बाहर जा ही रही थी कि रानी दौड़ती हुई आकर बोली”मैडम जी,एक बिनती है।छोटा मुंह बड़ी बात।”
निशा ने उसका हांथ पकड़ा और कहा”बोल ना,और पैसे चाहिए क्या,सामान मंगवाना है क्या और?”नहीं-नहीं,वह बोली”आपकी रजनी कविता लिखती है।कैसा लिखती हैं,पता नहीं।आज मुझे एक कविता देकर बोली कि पार्टी में सभी कुछ ना कुछ बोलेंगें।मैडम जी को बोलना ,अगर अच्छी लगे तो ये कविता पढ़ लेंगी।आप देखिए ना,अगर आपके लायक हो तो।”रानी के हांथ से मुड़ा हुआ कागज लेकर गाड़ी में बैठ गई निशा।हैरान थी,इतना हुनर होता है इस दुनिया में,पर कभी पहचान नहीं मिल पाती।रूप-गुण में भी कम नहीं है रजनी।घर आ गया था।बाकी सहेलियों को डेकोरेशन और गिफ्ट्स के लिए निर्देश देकर ,अब निशा निश्चिंत हुई।
सात बजते-बजते क्लब फूलों से सज चुका था।पूरा हॉल रोशनी से नहाया था। विशिष्ट अतिथि महिलाओं के बैठने की सामने व्यवस्था की गई थी।रंगारंग कार्यक्रम की तैयारी की गई थी। धीरे-धीरे हॉल भरने लगा।
महिलाओं ने निशा को बधाई दी,पार्टी का बढ़िया इंतजाम देखकर।स्टार्टर सर्व होने लगा।महिलाओं का गायन और नृत्य शुरू हो गया था। कार्यक्रम अपनी गति से चल रहा था।खाना खाने के बाद विनर की ट्राफी दी जानी थी।आखिरी कार्यक्रम कैटवॉक होना था।नव विवाहिताओं के साथ अधेड़ उम्र की महिलाएं अपना सामर्थ प्रदर्शन कर रहीं थीं। म्यूजिक के साथ चलती हुई महिलाओं ने अपने आत्मविश्वास को थाम कर रखा था।कुछ महिलाओं ने सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए कविता पाठ और कोट्स पढ़ना शुरू किया।निशा को अचानक रानी के द्वारा दिया गया कागज़ याद आया।खुश होकर सोचा ,बाप रे!भूल ही गई थी मैं तो,भगवान भला करे रजनी का ।मैंने तो ध्यान ही नहीं दिया था,कुछ तैयारी करने का।
निशा ने पर्स खोलकर वह कागज का मुड़ा टुकड़ा निकाला।खोलते ही मोती से अक्षरों की चकाचौंध में आंखें। चुंधिया गईं निशा की।पढ़ना शुरू किया तो कई शब्द गीले होने लगे।इतना अच्छा लिखा है,इस लड़की ने।सहज ,सुंदर और सरल शब्दों में नारी को ऐसे उकेर दिया ,मानो कोई चित्रकार हो।सच ही तो लिखा है उसने,उसकी मां से बड़ी महिला और कौन होगी?अपने बच्चों को पाल रही है,पढ़ा रही है और आसमान दे रही है सपनों की उड़ान के लिए।निशा जल्दी से उठकर रजनी के पास गई।देखकर फिर से दंग रह गई।नीली साड़ी,आंखों में हल्का काजल,हल्की लिपिस्टिक और वही ईयरिंग पहना था उसने अभी-अभी।चोटी में रबर लगा रही थी।निशा अपलक देखती रह गई उसे। मंत्रमुग्ध होकर उसकी चोटी खोल दी।खुले बालों में रंभा लग रही थी वह।चुंबकीय आकर्षण था उसके व्यक्तित्व में।सीधे उसका हांथ पकड़ कर मंच में ले गई।कैट वॉक का आखिरी राउंड बचा था अभी।जल्दी से उसका नाम ख़ुद ही लिखकर ,एनाउंस करवा दिया।अब स्वागत करते हैं,रजनी का।
रजनी समझ नहीं पा रही थी,निशा ने उसे मंच पर जाने को कहा।वह डरी-सहमी मंच पर चलने लगी।वॉक ख़त्म होते ही निर्णायक मंडल से अनुमति लेकर रजनी को कविता पाठ के लिए बुलवाया।रजनी की आंखों में आश्चर्य और सुख के मिश्रित आंसू थे।बड़ी मुश्किल से मानी मंच पर कविता पढ़ने के लिए।
मंच पर एक आम महिला ,अपनी नैसर्गिक सुंदरता लिए हुए अपनी भावनाओं का वाचन कर रही थी।हॉल में निस्तब्धता छा गई।प्रकृति की इस प्राकृत लीला को देखकर आज महिला दिवस सार्थक हो रहा था।निशा स्वयं अचंभित थी,अपने गाल पर बहते हुए मोतियों को छूकर।ये क्या और क्यों हो रहा है?आज सामर्थ्य और दिखावे का पर्दा उठाकर नारी की वास्तविक सुंदरता अपनी आभा प्रस्फुटित कर रही थी।तालियों की गड़गड़ाहट से निशा मानो सोते से जागी।हॉल की कुर्सियां खाली पड़ी थीं।सभी खड़े होकर तालियां बजे रहे थे।महिलाओं ने रजनी को घेर लिया।रजनी दौड़कर निशा के पास आना चाहती थी।रानी निशा का हांथ पकड़कर खूब रोने लगी।
आज निशा ख़ुद को बहुत हल्का महसूस कर रही थी।उसने कुछ खास नहीं किया था,अलग नहीं किया था।स्टेज में पुरस्कारों की घोषणा होने लगी।रजनी को स्लैश पहनाया गया और सर पर ताज।हांथ में बड़ा सा गुलदस्ता लेकर वह किसी महारानी से कम नहीं लग रही थी।उसने नीचे उतरकर निशा के हांथ में ट्राफी और दी और ताज देकर आंसुओ से धन्यवाद करने लगी।
निशा ने रानी को बुलाया और बोली”रानी इस ताज और सम्मान के लिए तुम्हें बहुत -बहुत मुबारकबाद।तुम तो बड़ी रानी हो,महारानी हो तुम।बेटी को खूब पढ़ाना ,हम सब तुम्हारे साथ हैं।”
आज महिला दिवस खास हो गया था।महिलाओं ने अपने कौशल और सामर्थ्य से स्वयं को सम्मानित किया था।निशा आज आत्मसंतुष्टि का पदक पाकर खुश थी।
शुभ्रा बैनर्जी
bhaut bhaut sundar story
बहुत ही लाजवाब कहानी।दिल को छू लिया।