नमिता ने घर पहुंच सौरभ को मां की गोद में दिया… बैग रखे… मां पापा के पैर छूकर… सीधा अपने कमरे में घुस गई….!
मां ने आवाज लगाया….” क्या हुआ नम्मो… इतनी जल्दी में क्यों है…. चाय बनाऊं …!
नमिता बोली…. “नहीं मां… रुको… आती हूं….”
थोड़ी देर बाद एक ढीला ढाला गाउन डाले अंदर से फ्रेश होकर…. नमिता बाहर हाॅल में आ गई… फिर मां से बोली…” अब चाय बनाओ ना मां…!
मां हंसते हुए बोली…” बड़ी हड़बड़ी मची थी तुझे… क्या हुआ… पेट वेट तो ठीक है…?”
“अरे नहीं मां…. मुझे साड़ी की कैद से पहले आजाद होना था…. तंग आ गई मैं… इस दस हाथ की साड़ी को लदे लादे…. पता है मां… मैं कब से तुम्हारे पास आने को परेशान थी… कि किसी तरह जान छूटे साड़ी से…. मेरी सासू मां को तो जैसे क्या परेशानी है मुझसे…. मेरा तो मन करता है…. मैं अब जल्दी से अपना घर ले लूं…. की चैन की जिंदगी मिले…. एक तो दस हाथ की साड़ी पहनो…. फिर घर के रीति रिवाज… पूजा पाठ… इतने लोगों का आना-जाना… मुझसे नहीं हो पाता…. अच्छी बहु बनने के चक्कर में मैं पिसी जा रही हूं…..! कब ये अपना घर लें जो मुझे मुक्ति मिले….!” नमिता एक सांस में बोल गई…
मां थोड़ा सख्त होकर बोली…” बेटा यह ठीक है कि हमने तुझे बहुत लाड़ से पाला है… लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तू घर तोड़ने की बातें करें….!
मां को सीरियस होता देख नमिता ने तुरंत बात बदलते हुए कहा…” छोड़ो ना मां… भाभी कैसी है… बात वात होती है तुम्हारी… कब आएगी मायके से….? सुमित की शादी के बाद से तो उससे मुलाकात ही नहीं हुई….!”
“आ जाएगी…! आज ही मैंने सुमित को भेजा है उसे लाने….।
“अच्छा… चलो बढ़िया है…. सव्या आ जाएगी तो इस बार उसके साथ भी कुछ दिन रहने को मिल जाएंगे….!”
सुमित की शादी को दो महीने ही हुए थे… पग फेरे के बाद जो सव्या मायके गई… तो अभी तक नहीं आई थी… अब घर में सत्संग पूजा का आयोजन किया था मां जया जी ने…. तो बहू बेटी सभी को बुला लिया था….
कुछ देर में सव्या भी आ गई…. हल्की धानी रंग के सूट सलवार में…. सर पर दुपट्टा लिए… बहुत प्यारी लग रही थी…. जया जी की बहु रानी…
आते ही उसने सबके पैर छुए… दीदी के पैर छूने झुकी तो उसने गले लगा लिया…. “आ जाओ मेरी प्यारी छोटी भाभी…. इस बार साथ में पूजा का आयोजन करेंगे…. इसी बहाने तेरे साथ वक्त बिताने का मौका मिल गया….!”
सव्या मुस्कुरा कर रह गई….!
पूजा का दिन था…. पूरा घर कामकाज में लगा हुआ था… नमिता भाग-भाग कर सबके बैठने का… पूजा के फूल… बेलपत्र… दूर्वा… सबका संग्रह करने में लगी थी….
जया जी नैवेद्य बनाने में व्यस्त थीं…. सव्या लाल सलवार सूट में… दुपट्टा सर पर लिए…. रसोई में सासू मां का हाथ बंटा रही थी…
अचानक नमिता ने रसोई में आते ही कहा… “वाह मां क्या जमाना आ गया है…. मतलब आज पूजा के दिन भी… घर की बहू सूट सलवार पहने खड़ी है…!” सव्या ने सर झुका लिया… जया जी मुस्कुरा कर रह गईं….!
थोड़ी देर में पूजा शुरू हुई…. पूजा में तो सव्या साड़ी पहन कर आई… पर फिर ब्राह्मण भोजन के समय तुरंत सूट पहनकर मां और दीदी के साथ मिलकर सबका हाथ बंटाने में लग गई….।
लेकिन नमिता थोड़ी चिढ़ी चिढी सी लग रही थी… कुछ देर में जब सब लोग चले गए… तो नमिता वापस मां के पास गई…. और बोली…” मां अभी से सव्या को इतनी छूट देना सही नहीं…. कल को देखना तुम्हारे सर पर चढ़कर ना बैठ जाए….!
मां ने बेटी के कंधे पर हाथ रख कर कहा…” बेटा कल क्या होगा… यह तो मैं नहीं जानती…लेकिन कल सुबह जो तू कह रही थी…. मैं वह भी नहीं चाहती… कि मेरे घर में हो…. आखिर वह भी किसी की बेटी है… अगर कल को इन्हीं रीति रिवाज और कपड़ों के चक्कर में…. वह भी मुझसे अलग होने का सोचेगी…. या अलग हो जाएगी…. तो हम तो बिल्कुल अकेले रह जाएंगे…. इसलिए बेटा अगर जमाना बदल गया है…. तो जमाने के साथ हमें भी बदलना होगा…. अगर नहीं बदल पाए तो…. छोटी-छोटी बातों को बखेड़ा बनने में देर नहीं लगती….!
तुम्हारी सासू मां से भी मैं इस बारे में बात करूंगी…. तुम खुद भी उनसे बात करो…. इन बातों को लेकर अलग होने के बारे में मत सोचो…. अगर यही बात कल को सव्या अपने मायके जाकर बोलेगी तो….!
इसलिए कल अगर अलग हुए तो…. इसका कारण जमाने के साथ हमारा ना बदलना नहीं होना चाहिए…. है ना….!
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा (न जाने कैसा जमाना आ गया है)