बहू के लिए सास की आँखों में आँसू (भाग 2) – रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : कल्याणी जी की हालत बदतर होती जा रही थी वो खाना पीना छोड़ कर बस निशिता को याद करती रहती थीं…. ये देख कर विहान की बुआ कला को बहुत आश्चर्य हो रहा था कोई बहू के लिए भी इतना दुखी होता है…

“ रे कल्याणी तू इतना करें है वो भी बहू के ख़ातिर तेरी बेटी होती तो तेरा क्या होता…. अब तुने तो कुछ ना किया ना फिर इतना काहे खुद को बीमार कर रही है…अभी दो साल ही तो हुआ था ब्याह का ….विहान के लिए फिर लड़की मिल जाएगी… अब जो हो गया सो हो गया…अपना ध्यान रख नहीं तो सुदर्शन और विहान का ध्यान कौन रखेगा….।” कला ने कल्याणी से कहा जो उम्र में उनसे बड़ी थी

“ जीजी निशिता आई तो बहू बन कर ही थी पर वो कब विहान से ज़्यादा अपनी हो गई पता ही नहीं चला… लोग बहू बहू करते और मैं बेटी बेटी…मैं तो उसे कहती थी बहू तुम मेरी बेटी की तरह हो मेरी बड़ी चाहत थी एक बेटी हो और वो मेरी बहू से कब बेटी बनती गई पता ही चला …. वो मेरे कलेजे का टुकड़ा थी जीजी…. जब से आई थी मुझे इतना मान सम्मान और प्यार दिया कि बेटी भी मुझे क्या देती…. मेरी जरा सी तबियत क्या बिगड़ती वो मेरी तीमारदारी में लग जाती खुद का ध्यान नहीं रखती थी…. कौन बहू ऐसा करती हैं जीजी आप ही बताओ…. ।”रूँधे गले से कल्याणी जी ने कहा 

“ ये तो बता हुआ क्या था…वो तो अपने मायके ही गई थी ना…उधर कोई ध्यान ना रखा उसका…?” कला ने पूछा जो निशिता की पूरी बात से अनजान थी

“ जीजी क्या बताऊँ….. अरे हमारी बहू माँ बनने वाली थी… उसकी माँ ने कहाँ कुछ महीनों के लिए हमारे पास भेज देते तो अच्छा होता…यहाँ बच्चा होने के बाद आप अकेले कैसे करेंगी…. यहाँ हम सब मिलकर सँभाल लेंगे … जीजी मैं देख रही थी मेरी बहू उस हालत में भी जितना हो सकता काम में लगी रहती थी मेरी मदद लेती थी पर उसकी कोशिश यही रहती कि मुझे ज़्यादा काम ना करना पड़े और मुझे यही लग रहा था वो पगली मेरी वजह से अपना ख़्याल नहीं रख पा रही बस मैंने ही ज़िद्द किया माँ का मन हैं चली जा मायके…..जीजी वो हमें छोड़ कर जाना ही नहीं चाहती थी…पर मेरे बहुत कहने पर वो जाने को राजी हुई…. उसका भाई लेने आया था जीजी…. जिस कार से आया था उस कार का हाइवे पर एक बड़ी गाड़ी से टक्कर हो गया…. भाई को चोटें आई पर वो बच गया पर मेरी निशिता हमारे घर के चिराग़ के साथ ही चली गई….ना मैं जाने कहती ना ये हादसा होता..।”इतना कहते कहते कल्याणी जी दहाड़े मार कर रोने लगी 

“ अरे कल्याणी तेरी इसमें क्या गलती… तुने तो बहू के भले के लिए ही सोचा …. अब भगवान की मर्ज़ी के आगे किसकी चली है…. वो निर्मोही तेरे पास कुछ दिनों के लिए ही आई होगी तुमसे ममता पाने…।” कला कल्याणी जी को ढाढ़स बढ़ाते हुए बोली 

“ पता नहीं जीजी अब मेरे विहान का क्या होगा…. मेरी वजह से उसकी ज़िन्दगी भी बर्बाद हो गई… खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी..।” कल्याणी जी अभी भी रो रही थी 

“ सुन कुछ दिन तू ख़ुद को सँभाल और विहान को भी…. मैं

कोई अच्छा रिश्ता देख कर तुम्हें बताऊँगी…. अभी विहान को सँभलने का मौक़ा दो …उसे भी निशिता को भुलाना आसान नहीं होगा पर ज़िन्दगी जीने के लिए आगे बढ़ना भी ज़रूरी है यादों के सहारे ज़िन्दगी कट सकती हैं जी नहीं जाती…।” कला ने समझाते हुए कहा 

कल्याणी के लिए अपनी बहू को भुलाना बहुत ही मुश्किल था क्योंकि जो इंसान एक बार दिल में जगह बना ले फिर दूसरे को वही जगह देना थोड़ा मुश्किल होता है… पर अपने बेटे का भविष्य देख उसने दृष्टि नाम की लड़की से उसका ब्याह करवा दिया जिसका पहला पति उसे इसलिए छोड़ गया था क्योंकि वो किसी और को चाहता था… परिवार की मजबूरी ने दृष्टि को उसके गले बाँध दिया था…दृष्टि ने उसे अपनी मर्ज़ी से छोड़ दिया था…

दृष्टि को  विहान और कल्याणी जी के निशिता के साथ रिश्ते की बात बता दी गई थी….दृष्टि जो खुद एक शादी का दुख देख रही थी उसने इस परिवार में निशिता की भरपाई करने की पूरी कोशिश की…. कल्याणी जी की क़िस्मत अच्छी थी कि दृष्टि ने भी उन्हें पूरा मान सम्मान दिया पर कल्याणी जी अभी भी निशिता को भूल नहीं पाई…आख़िर अपने कलेजे के टुकड़े को भुलाना इतना आसान कहाँ होता है… वो आई तो बहू बन कर थी पर कल्याणी जी की बेटी बन गई थी ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्यकहानीप्रतियोगिता 

# बहू तुम मेरी बेटी की तरह हो ..

मौलिक रचना

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