अधिकार नहीं परिवार – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :  “माँ जी आपके लिए चाय लाई हूँ  पी लीजिये।”

 शशि चाय की प्याली लेकर सासू माँ के कमरे में घुसते हुए बोली । उसने देखा माँ जी जल्दी- जल्दी अपने आँचल की छोर से आंखें पोंछ रही थीं। उससे रहा नहीं गया उसने पूछ लिया-” माँ जी क्या बात है आप परेशान लग रहीं हैं ।”

“नहीं -नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन पहले तुम मुझे यह बताओ कि बिना मुझसे पूछे तुम मेरे कमरे में कैसे आ गई? “

“जी वो…..चाय ।”

“क्या वो… वो कर रही हो। समझा दिया था न कि यह मेरा कमरा है और यहां किसी को बिना पूछे आने की इजाजत नहीं है।”

“जी माँ जी आपने बताया था पर मुझे ध्यान में नहीं था। दरअसल मुझे माँ के कमरे में कभी भी घुस जाने की आदत है न तो इसलिए गलती हो जाती है। आगे से ख्याल रहूंगी।”

शशि को तीन साल हो गये ससुराल आये हुए पर कुछ कुछ आदतें वह अभी तक बदल नहीं पाई है। कमरे से निकलने लगी तो सास ने  टोका-” अपने ससुर जी को चाय दिया?”

“अभी नहीं दिया है माँ जी। अब देने जा रही हूं। पता नहीं क्यूँ पिता जी ने भी अपना कमरा बंद कर लिया है।”

वह चाय लेकर उनके दरवाजे पर पहुंची। दरवाजा अंदर से बंद था और वह किसी को जोर -जोर से डांट रहे थे। शशि ने दरवाजे में कान लगा कर सुनने की कोशिश की पर कुछ समझ में नहीं आया। डर से उसने दरवाज़ा खटखटाना उचित नहीं समझा और उल्टे पाँव वापस लौट आयी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सूखी सूखी होली – संजय मृदुल

शशि की चिंता बढ़ने लगी थी। माना कि ससुराल में उसकी कोई खास अहमियत नहीं थी। देवर, ननदें  कोई भी सदस्य खुलकर कभी भी किसी आपसी विचार विमर्श में उसे शामिल नहीं करते थे। यहां तक कि पति विशाल भी  कभी घरेलू समस्या उसे नहीं बताते थे। या यूं कहें कि उसे उस लायक नहीं समझते थे। 

शशि को इसके लिए कोई शिकायत नहीं थी। वह सोचती थी कि अभी वह नई नई आई है धीरे-धीरे उसे भी इस लायक समझा जाएगा। शशि अपनी इसी सोच को लेकर बिना किसी के प्रति अपनी भावना खराब किये अपने बहू होने की सारी जिम्मेदारी निभाती रहती थी।

पिछले साल बड़ी ननद की शादी थी। उसने सासू माँ के साथ मिलकर बढ़ -चढ़कर तैयारियां की। नाते रिश्तेदारों ने जिम्मेदारी उठाते देखा तो वो मुक्त कंठ से शशि और उसके मैके के संस्कारों की दुहाई देते नहीं थक रहे थे। बार- बार सासू माँ को कहते कि  कहां से ढूंढ लाई है ऐसी संस्कारी और खुशमिजाज बहू! हमें भी तो बताओ…. ।

यही सब पुराने ख्याल सोचते हुए वह बाहर बैठक में चाय लेकर चली गई। वहां पर देवर और पति किसी मसले को सुलझाने की बात कह रहे थे। शशि को देख उन्होंने अपनी बातों का रूख दूसरी तरफ मोड़ दिया। शशि इस बार समझ गई थी कि कुछ तो माजरा है जो सारे के सारे घर वाले परेशान हैं।दूसरी बात कि उससे कुछ छुपाया जा रहा है।

वह अपना काम धाम समाप्त कर अपने कमरे में गई तो देखा उसके पति विशाल के दूसरे वाले मोबाइल पर किसी का कॉल आ रहा था। उसने अनमने ढंग से उसे रिसीव कर लिया। फोन पर उधर से उसकी बड़ी ननद थी। शशि की आवाज सुनते ही वह रोने लगी। अचानक से ननद का इस तरह रोना सुनकर वह घबड़ा गई और पूछ बैठी-” दीदी आप कैसी हैं?”

उधर से भर्राईं हुई आवाज आयी-” भाभी भैय्या को बोलिये मुझे यहां से ले जायेंगे। अब मुझे यहां नहीं रहना। यदि वो लेने नहीं आए तो मैं अपनी जान दे दूँगी। “

फोन शशि के हाथ से गिरते -गिरते बचा। वह एकदम से थरथरा कर वहीँ जमीन पर बैठ गई। अब उसे माजरा समझ में आ गया था कि क्यूँ सब लोग इतना गंभीर थे और कौन सी बात उससे छुपा रहे थे। शशि ने अपनेआप को संयत किया और बोली भले ही यहां सभी ने मुझे पराया समझा हो । पर कम से कम ननद ने तो अपना समझ अपनी व्यथा बताई। मैं उन्हें कुछ नहीं होने दूंगी। चाहे इसके लिए मुझे जो भी काम करना पड़े।

उसने दूबारा से ननद को फोन लगाया और सारी जानकारी ली पता चला उसके पति का किसी और के साथ चक्कर था जिस वजह से वह बात-बात पर पत्नी को प्रताड़ित करता आ रहा था। सुनते ही शशि का खून खौल उठा। वह दृढ़ता के साथ अपनी ननद से बोली-” दीदी आप डरना नहीं और ना बर्दाश्त करना। मैं कल आपके भैया के साथ वहाँ आकर वैसे बदतमीज इंसान से आपको छुटकारा दिलवाकर आपको ले आऊंगी। आप चिंता मत कीजिए।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

आत्मोत्सर्ग ….होलिका का – लतिका श्रीवास्तव 

शाम के समय जब घर के सभी सदस्य नाश्ते के लिए इकठ्ठा हुए तब शशि ने ननद से जो बातें हुईं थीं सबको बताई तथा अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बोली-” हमें उस बेग़ैरत इंसान को सबक सिखाना चाहिए और मेरा मन तो कहता है कि पुलिस को सूचना देकर उसे जेल की हवा खिलाना चाहिए। उसने हिम्मत कैसे की ऐसी हरकत करने की। कहते हुए भी शर्म आ रही है।”

ससुर जी बोले-” बेटा बिना आधार के किसी पर कोई टीका टिप्पणी नहीं करना चाहिए। यह सब हम बड़ों पर छोड़ दो। हम अपनी बेटी को समझा लेंगे। “

देवर ,छोटी ननद इन दोनों ने भी शशि को आरे हाथों लिया-” भाभी लक्ष्मीबाई बनने की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारी बहन काफी है जीजाजी को रास्ते पर लाने के लिए। फिलहाल आप कोशिश भी मत करना हमारे घर को कुरुक्षेत्र  बनाने का …हा हा हा हा हा हा। “

उसने पति की तरफ मुड़ कर देखा। उसे लगा कहीं वह इसके पक्ष से कुछ बोले। पर उसने भी कह दिया तुम अपने काम से काम रखो ज्यादा काजी  बनने की आवश्यकता नहीं है ।हम हैं अपनी बहन के लिए। वह मन मसोस कर रह गई। 

 इधर अब हर दो दिन बाद ननद रोते हुए शशि के पास फोन करती और वापस ले जाने की गुहार लगाती। बेचारी शशि करती भी तो क्या! ननद को समझाने का प्रयास करती रहती। इसके अलावा कर भी क्या सकती थी। ससुराल में उसे कितना अधिकार मिला है उसे पता चल चुका था। आगे बढ़ के कुछ करती तो सबके कोप का भाजन बनती ।

आज वह ससुर जी को ऑफिस के लिए नास्ता पैक कर जैसे ही उनके कमरे में गई वो बेटी को बेतहाशा डांट रहे थे और जग हँसाई की दुहाई देकर कुछ मना कर रहे थे ।शशि को देख चुप हो गये। शशि ने हिम्मत बटोरा और बोली-” पिताजी आप दीदी को लेकर आइये वर्ना कोई अनहोनी हो जायेगा। “

ससुर जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और ऑफिस के लिए निकल गए।

शशि वहां से सीधे अपने कमरे में गई और ननद को फोन लगाया और बोली-” दीदी आप तैयार रहना मैं आ रही हूँ आपको लेने। किसी को भी इसकी भनक नहीं लगनी चाहिए बस आप तैयार रहना। “

एन सी सी की स्टूडेंट रह चुकी शशि ने बहुत सारे बहादुरी के काम किए थे। कई बार वह राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान भी पा चुकी थी। भला अपने ही घर में अपनों को ही वह कैसे अन्याय सहने देती ।जैसे ही पति विशाल ऑफिस चले गए । वह बिना किसी को बताए गाड़ी के साथ ननद के घर पहुंच गई। ड्राइवर को गाड़ी स्टार्ट रखने को बोल वह आनन-फानन में ननद को उसके कमरे से बाहर निकाला और गाड़ी में बैठा कर वापस चली आयी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

जीना इसी का नाम है – के कामेश्वरी 

रोती बिलखती बेटी को देख सासू माँ भी रोने लगीं। ननद को देखकर ही लग रहा था कि उसने खाना नहीं खाया था और उसके साथ मारपीट किया गया था। बार- बार सासू माँ शशि को दुआएँ दे रही थीं। 

आज शशि को लग रहा था कि वह इस परिवार की सदस्य है। वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी।  जो काम भाई पिता नहीं कर पाये वह आज बहू ने कर दिखाया। वह सोच रही थी कि आज विशाल उसके किये गये हिम्मत के कारनामे से खुश हो जाएंगे। वह पति और ससुर जी के ऑफिस से लौटकर आने का इंतजार करने लगी।

विशाल ऑफिस से लौटा था। दरवाजा शशि की जगह उसकी  बहन ने खोला । वह कुछ समझ पाता इसके पहले ही बहन ने झुक कर भाई के पैर छुए। विशाल चौक कर कभी बहन को देख रहा था और कभी पत्नी को!!

“तू कैसे आई?”

 

“भाभी के साथ !”

“मैंने तुझे समझाने की कोशिश की थी न कि अब वही तेरा ठिकाना है। जैसे भी हो तुझको ही सामंजस्य स्थापित करना है। लेकिन तुम्हारी गलती नहीं है। तुझे इसने भड़काया होगा।”

फिर दांत पिसते हुए बोला -“तोड़वा दिया इसने तेरे रिश्ते को भी !”

शशि ने कुछ बोलना चाहा पर विशाल आगबबूला हो शशि पर बरस पड़ा -“

शशि एक बात तुम्हें समझा देता हूं ।अपने दायरे में रहा करो। सबके फटे में टांग अड़ाना  तुम्हारी आदत हो गई है।”

“तुम्हें किसने अधिकार दिया कि तुम मेरे घर के मामले में दखल दो?”

“क्या???”

“क्या कहा आपने? मेरे घर?”

“आप अपने भ्रम से बाहर आइये ।आपकी पत्नी होने के नाते यह घर सिर्फ आपका नहीं मेरा भी है और जहां तक अधिकार की बात है तो मेरा सिद्धांत है कि अधिकार यदि प्यार से ना मिले तो छीनकर लेना चाहिए।

और एक बात  जितना अधिकार इस घर में आपका है उतना ही आपकी बहन का भी है और अब वह यहीं रहेंगी जब तक चाहें।”

दोनों की नोक -झोंक सुन रही सासू माँ से रहा नहीं गया। वह बाहर आयीं और शशि को गले लगाते हुए बोलीं-” ख़बरदार जो मेरी बहू से ऊंची आवाज में अधिकार की बात की तो…. तुझे सिर्फ अधिकार की चिंता है और इसे परिवार की। “

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार

#अधिकार

 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!