” जानकी बुआ” – वीणा सिंह : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi:  जानकी बुआ नही रहीं एक सप्ताह पहले हीं ये मनहूस खबर मुझे मिली थी.. जानकी बुआ से बरसों पहले किया वादा मुझे याद आ रहा था, मैं मौके की तलाश में थी…

    हमारे पड़ोस में जानकी बुआ उनके पति दो बेटे,दो बेटियां जिनकी शादी हो चुकी थी और दो बहुएं पोता पोती से भरा संपन्न परिवार रहता था.. मम्मी के ससुराल के आसपास के किसी कस्बे में जानकी बुआ का मायका था.. इसी से दोनो में ननद भौजाई का रिश्ता कायम हो गया था… मुझे भी जानकी बुआ से खास लगाव था.. घर में कुछ खास बनता मुझे जरूर खिलाती… बाजार जाती तो कभी क्लिप तो कभी सुंदर सा दुपट्टा कभी कुछ मेरे लिए जरूर लाती..

                एक बात मुझे बहुत अजीब लगती बुआ कभी अपने पति से बात नहीं करती.. घर में मम्मी पापा को हर मसले पर एक दूसरे की राय हंसी मजाक तो कभी गम्भीर विषय पर विचार करते देखती.. पर बुआ का कमरा अलग था और उनके पति का अलग.. दोनो भईया और भाभी भी उनसे बात नही करते थे.. बिरजू नाम का एक आदमी जो बाजार से सामान लाने से लेकर किचेन में दोनो भाभियों की मदद करता वही उनको खाना नाश्ता दवा देता था.. मेरी उत्सुकता उम्र के साथ बढ़ती जा रही थी पर हिम्मत नही होती बुआ से पूछने की…

               मेरा कॉलेज की मैगजीन में मेरी लिखी एक छोटी सी कहानी छपी… मैं घर में सबको दिखा दौड़ते हुए बुआ के पास गई.. बुआ चश्मा लगा कर बड़े गौर से मेरी कहानी पढ़ी.. मेरे सर पर हाथ रखा.. खूब आशीर्वाद दिया और मेरे पसंद की मिठाई मुझे अपने हाथों से खिलाई.. फिर बहुत गंभीर स्वर में मुझसे कहा तनु मुझसे वादा करो जब मैं नहीं रहूंगी दुनिया में तब तुम मेरी कहानी लिखना, जो आज मैं तुझे सुनाऊंगी.. मैने वादा किया…

                बुआ मुझे लेकर पार्क चली गई… बुआ ने कहना शुरू किया मेरी शादी सत्रह साल की उम्र में हो गई.. मेरी खूबसूरती देख मेरे ससुर मेरे पिता से मेरा हाथ अपने इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर बेटे के लिए मांग लिया.. मेरी शादी हो गई… सब कुछ अच्छे से चल रहा था… मैं चार बच्चों की मां बन गई थी.. पच्चीस साल की उम्र में हीं.. सास ससुर ननद जेठ जेठानी सब मुझसे खुश रहते..

           कुछ दिनों से मेरे पति घर देर से आ रहे थे.. मैने एक दिन पूछा तो बोले एक महात्मा शहर में आए हैं उनका प्रवचन सुनने जाता हूं.. मेरे पति बहुत अच्छे वक्ता भी थे..उनकी आवाज का सम्मोहन लोगों को मंत्र मुग्ध कर देता..छोटे छोटे बच्चों और घर परिवार में उलझी मैं ज्यादा ध्यान नहीं दिया.. धीरे धीरे मेरे पति के घर आने का अंतराल बढ़ता गया… फिर मेरे पति एक कम उम्र की खूबसूरत नई नई दीक्षा ली साध्वी के साथ प्रचार के लिए जाने लगे… घर खर्च ससुर जी हीं चलाते थे. उनका कहना था तुम लोग अपने पैसे जमा करो…

               उड़ते उड़ते मेरे कानों में खबर पहुंची मेरे पति उस साध्वी के साथ प्रचार के लिए विदेश जाने वाले हैं.. जब घर आए तो गेरुआ वस्त्र गले में माला और बाल मुड़े हुए.. मैं तो पैर पकड़ के रोने लगी.. बच्चों का वास्ता दिया पर… पासबुक कुछ कपड़े और कागजात लेकर चले गए ये कहते हुए मैं मोह माया से मुक्त हो गया हूं … मुझे असली और सच्चा ज्ञान मिल गया है…

               हंसते खेलते परिवार पर मानो बिजली गिर गई हो.. मैं बच्चों को पकड़ कर रोती फिर उन्हे चुप कराती… अकाउंट के सारे पैसे भी लेकर चले गए थे मेरे पति… ससुर को दिल का दौरा पड़ा वो ये आघात झेल नहीं पाए… सब की नजरें बदल गई थी.. सास मुझे कुलच्छिनी नाम से हीं बुलाती.. कौड़ी कामख्या  की जादूगरनी है ये अपने रूप से ससुर को मोहित कर लिया..अब पति और ससुर दोनो को घर से दूर। कर दिया..जेठानी और उनके बच्चे मुझसे नौकरानी सा व्यवहार करते.. मेरे बच्चों पर भी उन्हे तरस नही आता था.. सुना बिस्तर ओह रात भर रोती रहती तकिया गिला हो जाता.. कैसे कटेगी जिंदगी..

    एक रात जेठ कमरे में आए और बोले मुझे खुश रखोगी तो सब ठीक हो जायेगा.. मैं सिहर उठी.. ओह जेठ का ये रूप…

                  मैं मायके चली गई बच्चों के साथ …बाबूजी रिटायर हो गए थे, भईया पेंशन का पैसा उठा कर लाते और भाभी के हाथ में दे देते.. अम्मा बाबूजी भी अपनी मजबूरी जाहिर कर चुके थे.. बुढ़ापा हमारा इन्ही के सहारे कटेगा, हमलोग मजबूर हैं जानकी…. भाभी भी गिरगिट की तरह रंग बदल चुकी थी..

                मेरे बचपन की सहेली मुझसे मिलने आई मेरा दुख दर्द सुनकर उसने कहा जानकी जिसका पति उसका साथ छोड़ देता है उसका कोई मायका ससुराल नही होता.. तू हिम्मत कर मेरे पति वकील हैं जितना हो सकता है तुम्हारी मदद करेंगे.. रात भर सोचकर कल बताना… मैं रात भर सोचती रही बच्चों से नौकरों सा बर्ताव स्कूल में बच्चों को दूसरे बच्चे चिढ़ाते थे देखो साधु का बेटा आ गया.. बच्चे रोते हुए कहते कल से स्कूल नहीं जाना.. और मैने मन बना लिया… पति अपनी नौकरी से इस्तीफा दे चुके थे..

          मैं अपनी सहेली से सुबह सुबह हीं दृढ़ संकल्प के साथ मिलने चली गई.. उसके पति के कहे के अनुसार मुझे ससुराल में करना था… ससुराल में खूब ड्रामा हुआ मैने कहा मेरे हिस्से के घर का पैसा दे दीजिए नही तो कानूनी कार्रवाई करूंगी और किसी दूसरे से बेंच दूंगी… सहेली के पति का नाम लेकर मुझे चरित्रहीन भी कहा गया.. बेटा कम उम्र की साध्वी के साथ देश विदेश में क्या कर रहा है कोई पूछने वाला नहीं…

             और मैं चार बच्चों को लेकर दूसरे शहर चली आई.. अपने हिस्से के घर के पैसे मैं ले चुकी थी.. यही मेरी हिम्मत थी.. चारों बच्चों का नाम सरकारी स्कूल में लिखा दिया… एक कमरे में सिलाई का काम शुरू किया… टिफिन भी बनाती.. बच्चे सहायता करते.. बच्चों ने भी खूब साथ दिया.. पढ़ने में भी खूब मन लगा रहे थे..

बाहर की दुनिया एक अकेली जवान औरत के लिए कितनी खौफनाक होती है ये कड़वी सच्चाई मेरे सामने आ रही थी.. मजबूरी में मैं सिंदूर लगा रही थी.. जिसके नाम से मैं नफरत करती थी उनके नाम का सिंदूर लगाना उफ्फ…

                 छोटा सा सिलाई सेंटर और टिफिन का काम मुझे सोचने का वक्त नहीं देता पर कभी कभी आंखें बरस पड़ती…

               समय गुजरता गया.. बेटा वरुण और वैभव दोनों नौकरी करने लगे.. उन्होंने पहले दोनो बहनों की शादी करने के बाद अपनी शादी करने का संकल्प लिया था.. तनु स्कूल में टीचर हो गई और मनु इंफोसिस में इंजीनियर.. दोनो की शादी खूब धूमधाम से हो गई.. शादी से पहले सुनने में आया की मेरे पति लौट आए हैं और यहां आना चाहते हैं.. मैने साफ इंकार कर दिया.. नासूर बने जख्म रिसने लगे थे..

                             मैने दोनो बेटियों का कन्यादान लोटा रखकर किया.. दोनो बेटों की शादी भी अच्छे से संपन्न हो गई..

        बच्चों ने मेरा काम करना नौकरी लगते हीं छुड़वा दिया था.. एक एनजीओ से जुड़ी थी.. एक दिन दीन हीन से मेरे पति हाथ जोड़े दरवाजे पर खड़े थे आंखों से #पश्चाताप के आठ आठ आंसू #बह रहे थे.. मुझे माफ कर दो जानकी… और मैं पत्थर बन चुकी थी… चाहती तो लात मार कर बाहर कर देती पर मुझे उनके गुनाह के लिए उनकी आंखों में हमेशा# आठ आठ आंसू #

देखनी थी… मैं पंद्रह सालों में एक घर में रहते हुए भी कभी उनसे बात नही की है.. बच्चे भी उनसे बात नही करते.. बेटियां आती है पूरा परिवार हंसता है घूमने जाता है ये पश्चाताप के आंसू अपने कमरे में बहाते रहते हैं.. मेरी जिंदगी के खूबसूरत पल को जिसे इस इंसान ने तिल तिल कर मरने के लिए छोड़ दिया.. मेरे बच्चों का बचपन मेरी जवानी सब कुछ इस इंसान ने दांव पर लगा कर दर दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया.. बच्चे गर्व करते हैं मुझ पर बहुएं और दामाद भी मेरी बहुत इज्जत करते हैं.. और ये इंसान घर के एक कोने में बेकार की चीज जैसा पड़ा आंसू बहाता रहता है.. पोता पोती भी उसके पास नही जाते.. जो भी मुझसे इसके बारे में पूछता है मैं कहती हूं मेरा तथाकथित पति है जो अपनी जिम्मेवारियों से मुंह मोड़कर संन्यासी बनने गया था, आज सब कुछ रहते हुए भी इतना अकेला है की आठ आठ आंसू बहाता रहता है.. महात्मा जी और उनके चेलों ने इसका जमा पूंजी खतम होते हीं आश्रम के कामों में लगा दिया और जब बीमार पड़ा और कमजोर हो गया तो भगा दिया… इसके घरवालों ने भी इसे नही रखा और यहां भेज दिया.. ये उदाहरण है हमारे समाज के उन मर्दों के लिए जो शादी कर बच्चे पैदा करते हैं और फिर संन्यासी बनने चले जाते हैं.. उनका यही हस्र होता है… बिरजू खाना पानी नाश्ता सब कमरे में दे आता है… वो भी इससे बात नही करता.. बच्चे बड़े हो गए तो मैने सिंदूर लगाना भी छोड़ दिया. मैं इतनी दूर आ चुकी हूं की इसका होना या नहीं होना मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता.. औरत त्याग ममता सहनशीलता की देवी होती है पर। उसका एक रूप ये भी है.. पूरा वातावरण बोझिल हो चुका था.. बुआ बोली मैं दुबारा अपने मायके भी कभी नहीं गई ना हीं ससुराल से कोई रिश्ता रखा है.. सब ठीक हो जाने पर उन लोगों ने नजदीकियां बढ़ानी चाही पर मैने और बच्चों ने साफ नकार दिया…

           शाम हो चुकी थी हम दोनों वापस धीरे धीरे घर की ओर बढ़ने लगे.. मैने बुआ का हाथ जोर से अपने हाथों से पकड़ लिया था…

#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित # 

     Veena singh

 

 

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