माँजी, मत कटवाइए मेरे बाल, प्लीज माँ जी–मेरी क्या गलती है, शुभा रो रो कर कहे जा रही थी।
दस दिन पहले ही उसके पति मयंक की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी।
तभी से ससुराल वाले उसे कलंकिनी,कुलटा,मनहूस न जाने क्या क्या कह कर संबोधित करने लगे थे। उन्हें ये नहीं समझ आ रहा था कि जिसका हाथ पकड़ जिंदगी के अनजान सफर पर वो चली थी अब वह सफर उसे अकेले ही तय करना था।
तीन साल हो गए थे उनकी शादी को,कोई बच्चा न था। मयंक का कहना था कि पहले हम एकदूसरे को समझ लें,यह ज्यादा जरूरी है,जिस तरह नासमझी और आपसी सामंजस्य की कमी से आजकल शादियाँ टूट रही है उसमें एक दूसरे को समझना ही पहली अहमियत है,पर किसे पता था कि एक दुर्घटना इनकी सारी खुशियों को बिखेर कर रख देगी।
आज दसवां दिन था और उसकी सास तथा अन्य रिश्तेदार उसके बाल मुंडवाने पर अड़े हुए थे। शुभा गिड़गिड़ा रही थी,उसके कमर तक लंबे बाल न सिर्फ उसे बल्कि मयंक को भी उतने ही पसंद थे, अक्सर कहता–शुभी, अपने बालों को कभी मत कटवाना,इसकी छांव में ही मुझे सुकून मिलता है,पर आज वो असहाय हो कुछ नहीं कर पा रही थी।
तभी उसकी सास चिल्ला कर बोली– कुलटा, मैंने अपना बेटा खोया है और तू अपने बाल नहीं कटवाना चाहती, अपने यहां तो पति के साथ चिता पर जल जाने का रिवाज़ है।
माँ जी,मैंने भी मयंक को खो दिया है। मयंक मेरी भी जिंदगी से दूर जा चुके हैं, पर मुझे सजा न दीजिए माँ जी–शुभा उनके आगे हाथ पैर जोड़ रही थी,पर किसी का दिल नहीं पसीज रहा था । सभी रिश्तेदार यह तमाशा देख रहे थे पर किसी की हिम्मत न हो रही थी कि इस झूठे कर्मकांड को रोक लें।
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नाई भी उस्तरा लेकर तैयार खड़ा था, उसके लिए तो यह स्वर्णिम अवसर था कि काफी नेग मिलेगा। पंडित जी भी अपने पोथी पत्रे के साथ मंत्रोच्चारण के लिए तैयार खड़े थे। किसी को शुभा की परवाह नहीं थी। शुभा भी शिथिल हो चुपचाप पड़ी थी।
तभी सास के इशारे पर नाई ने जैसे ही शुभा के बालों पर उस्तरा लगाया कि दरवाजे से आवाज आई–क्यों भीड़ लगी है,क्या हो रहा है यहां ?
आवाज सुनते ही शुभा की सास रोते हुए बोली–आकाश, तुम आ गए। देख मयंक हमें अकेला छोड़ कर चला गया और ये कलमुंही अपने बाल नहीं कटवाना चाह रही।इसे कोई फिक्र ही नहीं थी उसकी।
मौसी, क्या फिक्र होने पर बाल मुंडवाना जरूरी है,क्या मयंक के जाने से शुभा की जिंदगी नहीं खत्म हो गई। सबसे पहले तो वह आपका बेटा था,सबसे ज्यादा फिक्र तो आपको होनी चाहिए और अपने बाल मुंडवाना चाहिए।
आकाश बेटा–ये क्या कह रहे हो,इस उम्र में बाल मुंडाती मैं अच्छी दिखूँगी?
तो…शुभा अच्छी दिखेगी बाल मुंडवा कर इस उम्र में, आकाश ने जोर देकर पूछा।
पति के न रहने पर तो बाल मुंड़ाना ही पड़ता है,पीछे से फुसफुसाहट सी आवाज आई।
हां…तो यहां सभी औरतें मुंड़ा लें अपने बाल,क्योंकि मयंक सभी का कुछ न कुछ लगता है और सभी को मयंक की फिक्र होगी।
ये क्या कह रहा है आकाश–तभी उसकी माँ आकर बोली, ये तो रिवाज है जो निभाना पड़ता है।
माँ, ये कैसा रिवाज है जो किसी की भावनाओं को नहीं समझता, खैर मेरे यहां होते तो मैं ऐसा होने नहीं दूंगा,कहते हुए आकाश शुभा का हाथ पकड़ उसके कमरे में ले गया।
आज इस घटना को दस साल हो गए,शुभा चाय पीते हुए सोचती रही।तभी उसे ध्यान आया–अरे, पांच बज गए हैं, शुभम और आकाश आते ही होंगे।आकाश ने उसकी जिंदगी पर छाए कोहरे को हटा दिया और शुभम के रूप में प्यारा सा तोहफा भी उसके पास है। मयंक की यादें अभी भी उसके दिल के कोने में है, जिसे गाहे बगाहे वह आकाश के साथ मिलकर बांट लेती है।
पर मेरी जैसी किस्मत कितनों की होती है, सोच आँखें छलछला उठी उसकी।
वीणा
झुमरी तिलैया
झारखंड