सूरज – भगवती सक्सेना गौर 

14 वर्षीय पोते सूरज की आवाज़ से नींद टूटी, “बाबा, उठिए, ब्रश करिए।” और  70 वर्षीय सत्येंद्र ने आंख खोली

अब अपनी जिंदगी से हताश हो चुके सत्येंद्र पोते के लिए जीवित थे। वो जीना भी एक सजा ही मालूम होती थी. धरती नही समा पायी, तो बिस्तर ने ही अपने कब्जे में कर लिया। ब्रेन हेमरेज के बाद भी किसी तरह बच गए और पैरालिसिस हो गया।

शरीर तो बेजान लगता था, पर सत्येंद्र खुली आँखों से अतीत में विचरण करते थे। एक समय था, अफसर के पद पर दिल्ली में कार्यरत थे, परिवार गांव में रहता था। कभी कभी आते थे तो घर मे आवाज़े गूंजती थी,”कहाँ हो, सबलोग आओ, रमेश ये किताब रखो, सुनती हो, ये साड़ी, कपड़े लाया हूँ, तुम सबलोग को जो अच्छा लगे रक्खो।”

धीरे धीरे शहर में ही तिमंजला मकान बनवाया, बीबी और दोनो बेटे के साथ सुखमय जीवन बीतने लगा। अब सत्येंद्र प्यारी सी सावित्री की आंखों में झांक रहे थे, ईश्वर ने नाम के अनुरूप ही पत्नी ढूंढी थी, जो कभी किसी बात का विरोध ही नही करती थी।  दोनो बेटे इंजीनियर बन गए एक विदेश में बस गया, एक पास में ही था। समय पर प्यारी सी बहुये भी आ गयी। याद करने लगे, ये सबसे छोटा पोता जब आया, तब मेरा भी बचपन लौट आया। 4 वर्ष से ही ये सूरज को मुट्ठी से देखता था, फिर स्कूल में हमने सूरज ही नाम लिखवाया।

पर ईश्वर जब मनुष्य का बहीखाता लिखते हैं, तो उनको भी बैलेंस शीट बनानी पड़ती है, और वो सुख दुख बराबर करते हैं।


पिछले साल एक बीमारी का भयानक तूफान आया और 1 महीने के अंतराल में ही छोटे बेटे बहू को महायात्रा में ले गया। अचंभित रह गए,”सोचने लगे, जाना मुझे था, और पहले बीबी छोड़ गई, आज बेटा बहू ने मुझे अनाथ कर दिया। हकलाकर थोड़ा बहुत बोल लेते थे, दैनिक कार्य भी बिस्तर पर ही करना पड़ता था। बेटे बहू के बाद उनके पास 14 वर्षीय पोता सूरज ही रह गया था। पड़ोस में रीना आंटी रहती थी एक दिन उन्होंने ही सूरज को बुला के बोला,” कैसे संभालते हो बेटा, बाबा को उठा बैठा लेते हो।”

उसका जवाब था,” मैंने पापा के साथ कई बार उनकी सेवा की है, वो आजकल एक नैपकिन आता है, वो उनके लिए वरदान से कम नही है। कभी कभी मामा आकर बैंक से पेंशन के पैसे लाकर देते हैं और बाजार का सामान ले आते हैं। स्कूल लॉक डाउन से बंद ही है।”

मेड और कुक आकर घर का काम करती है।

रीना ने उससे कहा,”खेलने की उम्र में वक़्त ने तुमको बहुत कुछ सीखा दिया, एक दिन पूरा जमाना तुम्हारी मुट्ठी में होगा।

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