आप भी बनिए ना राजकुमार – सोनिया कुशवाहा

मेरी बेटी के नामकरण का उत्सव चल रहा था, घर खचाखच रिश्तेदारों से भरा हुआ था। पास और दूर के काफी रिश्तेदार हॉल में जमा थे।चाय कॉफी के साथ गर्मा गरम मुद्दों पर चर्चाओं और बहस का रसपान जारी था।अचानक एक भले सज्जन पुरुष जो कि शिक्षित होने के साथ ही उच्च पद पर आसीन हैं, ने बातों का रुख बेटे और बेटी के विषय की और मोड़ दिया।

अब सभी लोग बढ़ चढ़ कर चर्चा में हिस्सा लेने लगे।सभी लोग अपनी अपनी बिटिया की परवारिश के बारे में बता कर तारीफ पा रहे थे। तभी उन सज्जन ने जो कि दो बेटियों के पिता हैं कोलर टाइट करते हुए कहा, “भाई हम तो अपनी बेटियों को किचेन में नहीं जाने देते, हमारी पूरी कोशिश रहती कि दोनों अपना समय पढ़ाई और उपयोगी हुनर सीखने में बिताए। इतने बड़े स्कूल में पढ़ती हैं,  मेरी बेटियाँ तो डॉक्टर इंजीनियर बनेंगी।मैं उनको काबिल बनाऊंगा। पैसे कमाएगी तो चार नौकर रखेगी जो रसोई संभाले।

अब जमाना बदल रहा है, लड़कियां कोई रसोई में खटने के लिए नहीं! हम अपनी बेटी को बेटे से बढ़कर मानते हैं। “उनकी बात सुन सभी मेहमान सज्जन की बात का समर्थन करते लगे, कुछ ने तो वाह वाह तक कर दी। पास ही मे खड़ी उनकी पत्नी का उतरा हुआ चेहरा देख मुझे सारा माजरा समझ में आ गया।

इन महाशय जी की पत्नी भी पढ़ी लिखी नौकरी पेशा है लेकिन मजाल है जो घर में ये एक गिलास पानी भी खुद पी लेते हो। ऑफिस से थककर आने के बाद उनको इतनी भी इज़ाज़त नहीं कि रोटियाँ सेंक कर रख दे, इन महाशय को रोटियाँ भी गरमा गरम ही चाहिए होती हैं। पत्नी के मायके में गाहे बगाहे फोन करके शिकायत करना तो ये अपना हक समझते हैं।चार लोगों के सामने पत्नी को झिड़क देना भी ये अपना पति धर्म समझते हैं। सबसे बड़ी बात इनके घर में रसोई संभालने को कोई नौकर नहीं है।  सभी पिता अपनी बेटी को राजकुमारी की तरह पालते हैं उसके लिए राजकुमार जैसा वर चाहते हैं जो उसे पलकों पर बैठा कर रखे। लेकिन वही पिता ये क्यूँ भूल जाते हैं कि वो भी किसी की राजकुमारी को ब्याह कर लाए हैं।




जिसको उन्होंने कभी सही से पत्नी होने तक का दर्जा नहीं दिया।  लेकिन पति बनते ही पत्नी को दबा कर रखना उससे पूरे घर की जिम्मेदारी अकेले उठवना हर मर्द अपना फर्ज़ समझता है।अपनी पत्नी को चाहे साल साल भर मायके जाने की इजाजत ना देते हों लेकिन बिटिया को देखकर यह कहते हुए अक्सर मिल जाएंगे, “मैं अपनी बेटी को विदा नहीं करूँगा, कैसे जी पाऊँगा अपनी गुड़िया के बिना”। आपकी पत्नी भी तो किसी की गुड़िया है, उसका अपमान करते, उसकी इच्छाओं का गला घोंटते समय, पत्नी को मायके के नाम पर फटकार लगाते समय ये बात कैसे भूल जाते हैं।

अपनी बेटी के लिए राजकुमार की चाह रखना गलत नहीं है। बिटिया को पढ़ाना लिखाना तो बहुत अच्छी बात है। आप उसे रसोई में भेजना पसंद नहीं करते वो भी ठीक है लेकिन आपकी पढ़ी लिखी बेटी को ससुराल में अपना सही स्थान तभी मिल सकेगा जब आप और हम, अपनी पत्नी और बहू को भी वही सुविधाएं और छूट दे सकेंगे जो कि हम अपनी बेटी के लिए चाहते हैं।अपनी पत्नी से कभी किसी मामले में सलाह तक ना लेने वाले पिता भी अपनी बेटी को बेटे के बराबर हक देने की बात करते हैं।

समाज का निर्माण आप और हमसे होता है।यदि आप और हम मिलकर अपने अपने परिवार को सही कर लें, हर घर में पत्नी और बहू का सम्मान होने लगे तो निश्चित ही हर घर में सुधार आएगा, समाज में सुधार आएगा और केवल तभी हम अपनी बेटियों को एक बेहतर कल, एक बेहतर ससुराल एक बेहतर पति दे सकेंगे।

आइए हम सभी अपने बेटों को राजकुमार बनने को प्रेरित करे।आइए हर पिता को याद दिलाएं कि वे भी किसी की बिटिया को ब्याह के लाएं हैं। जो बदलाव अपनी बेटी के लिए चाहते हैं आइए उस बदलाव की शुरुआत अपने ही घर से करें।

सोनिया कुशवाहा। 

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