अलविदा भीगी आँखों से – गोमती सिंह

——सरस्वती और मंदाकिनी दोनों बैठकर आपस में पुरानी बातों को याद कर रहे थे।  

         सरस्वती बोल रही थी-पता है मंदाकिनी, मेघा जब स्कूल जाती थी तब मेरे से ही चोटी बनवाती थी । कभी-कभी उसकी चाची बोल देती “आओ मेघा मैं छोटी बना देतीं हूँ, माँ जी कुछ दुसरे काम में ब्यस्त है । ” तो मेघा चिढ जाती और कहती – नहीं नहीं मैं दादी माँ से ही छोटी बनवाऊंगी । और मैं लाख व्यस्तता छोड़ कर उसकी छोटी बनाती थी ।

          आज मेरी उसी दुलारी मेघा का दूर शहर में विवाह का  मंडप पड़ने वाला है और मैं यहाँ पराई बनी बैठी हूँ।  

      इतना कहते-कहते सरस्वती का गला रुंध गया वह फफक कर रोने लगी। मंदाकिनी ने उसे समझाते हुए चुप करा कर पूछने लगी -वैसे सरस्वती! तुम दोनों सास बहु के बीच इतनी अनबन कैसे हो गई  ? 

  तुम दोनों के बीच इतनी रंजिश किस बात की आ गई? 

   मुझे याद है मेघा की माँ तुम लोगों पर जान छिडकती थी । फिर अचानक …….! 

         क्या बताऊँ मंदाकिनी! मेरा तो ” होम करते हांथ जला है ।” वो कैसे बहन ? ‘ मंदाकिनी ने पूछ  लिया ।

तुम्हें याद है जब मेरा बड़ा पोता प्रशांत  10 वर्ष का था तब अचानक पता चला कि उसके हार्ट में छेद है । तब हम सब एकदम घबरा गए थे । अस्पताल में चेक अप कराने से   डाक्टर ने कहा कि इसका सफल आपरेशन बैलूर में होता है । 

           उस समय मेरा बड़ा बेटा अजय प्राइवेट कंपनी में काम करता था।  उसकी तनख्वाह इतनी नहीं बनती थी कि अपने बल बूते पर इतना बड़ा आपरेशन करा पाता । 

        फिर इस समस्या को लेकर अजय और सरिता हमलोगों के पास गांव आए ।

        तूम तो जानती ही हो बहन खेती बाड़ी में कितना मुनाफा होता है ! मुझसे सिर्फ इतनी गलती हुई कि मैंने कहा – जितनी फसल हुई है उसे बेच कर इलाज करा लो । इससे अधिक हमलोगों के पास है ही क्या । मेरा इतना बोलना था कि सरिता बहु आगबबूला हो गई।  कहने लगी ” मेरे बच्चे की जान ख़तरे में है और आप लोगों को संपत्ति बचाने की सूझ रही है ।” क्या होता कहते कि – जाओ पांच एकड़ जमीन बेच दो , किसी भी तरह बच्चे की जान बच जाए । 




             रखे रहो अपनी फ़सल और जमीन हमलोग अपने बच्चे का इलाज किसी भी तरह करा लेंगे । ऐसा कहते हुए दोनों बच्चों को लेकर रातों रात चले गये।  

      उसके बाद हमलोग कहते-कहते थक गए जमीन बेच लो , जमीन बेच लो मगर वह किसी की नहीं सुनी । 

          फ़िर क्या हुआ तुम्हें तो पता है मंदाकिनी! 10 वर्ष की उम्र में मेरा पोता देहावसान कर गया । तुम ही बताओ न मंदाकिनी ये होम करते हांथ जलने जैसा नहीं हुआ क्या?  उन्ही लोगों की संपत्ति बच जाय और मिलजुल कर इलाज हो जाय कह कर ही तो मैंने ऐसा कहा था ।  मेरा होनहार पोता हांथ से चला गया और बेटा बहु भी नाराज़ हो गए। 

        उस दिन के बाद मैं प्रशांत और मेघा का मुंह तक नहीं देख पाई । 

     मेरा कलेजा तड़प रहा है मगर बहु को मेरी स्थिति का अंदाजा नहीं है । कौन समझाए उसे उसके लिए तो मैं चंडालिनी हो गई हूँ।  इतना दुःखी मत हो सरस्वती बहन ! जीवन-मृत्यु तो भगवान के हाँथों में  होता है, कोई यश-अपयश के भागीदार हो जाते हैं।  

         मंदाकिनी समझाते हुए उससे कहने लगी- ” एक बात है बहन , जहाँ खून का रिश्ता बना होता है वहाँ हृदय का  तार भी जुड़े हुए होते हैं।  ”  देख लेना किसी न किसी बहाने सरिता का अंत:मन बदलेगा  और वह तुम लोगों को ससम्मान बुलाएगी। 




                     उधर मेघा को हल्दी लग गई थी।  फिर आज बारात आने का दिन आ गया था।  मेघा अपनी मम्मी को डर के कारण कुछ बोल नहीं पा रही थी मगर मन ही मन दादी माँ के लिए घुट रही थी । 

   सभी लोग बारातियों की ब्यवस्था करनें में जुटे हुए थे। अब मेघा को दुल्हन बनाने के लिए सजाने का समय आ रहा था , मगर वह कोने में बैठी कुछ  खोई हुई सी थी , तभी उसकी मम्मी सरिता वहाँ आई ….अपनी बेटी को आज विवाह के दिन इस तरह खोई हुई हालत में देख कर भड़भड़ चिल्लाती सरिता एकदम शान्त मन से उसके पास आ बैठी और कहने लगी ” क्या हुआ बिट्टी! क्यों इतना उदास हो। ” ‘ कुछ नहीं माँ ‘ वह डर से अपनी उदासी छिपाने लगी । 

    नहीं बेटी! कुछ बात तो है , तुम छुपा रही हो ।

 ” मेघा कुछ हिम्मत बटोरते हुए बोली, हाँ माँ! एक बात है  , पूरा करोगी ? ” 

‘ क्यों नहीं बेटी! बोलो तो सही । ‘

मम्मी! दादी माँ को बुलवाया लो न , मैं उन्हीं से चोटी बनवाऊंगी ।

” इतना सुनते ही सरिता का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। ” फिर दुल्हन बनने जा रही बेटी की भोली सूरत देखकर उसका गुस्सा ज्वार-भाटा की तरह शान्त हो गया । और बड़े प्यार से अपनी बेटी को आस्वासन देते हुए कहने लगी- हम अभी तुम्हारी दादी दादा, चाची-चाचा को बुलावा भेजते हैं ।

           अब परिस्थितियां बदल गई थी । अब अजय और सरिता ने कार खरीद लिए थे। 

      मन के गुस्से को अलविदा कहा और प्रशांत को भी भीगी आँखों से हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।  

        और मेघा की दादी माँ वगैरह को लेने के लिए उसकी कार धूल उड़ेलती तेजी से सड़क पर दौड़ने लगी ।एक घंटे के सफ़र के बाद दादी माँ सहित परिवार के सभी सदस्य आ गए  तब मेघा का सुंदर  चेहरा खिल कर निखर गया । सरिता और सरस्वती गले मिल कर रोने लगे। मन ही मन दोनों ने कहा- ” अपने तो अपने होते हैं। ” फिर हंसी खुशी मेघा का विवाह संपन्न हुआ। 

#अपने_तो_अपने_होते_हैं 

            ।।इति।।

      -गोमती सिंह, कोरबा छत्तीसगढ़ 

        स्वरचित, मौलिक।

 

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