योग्य उत्तराधिकारी की तलाश?

प्राचीन समय में माधवपुर नाम का एक राज्य था वहां का राजा छत्रसाल थे।  उन्होंने अपने जीवन में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए सब कुछ कर लिया था देश विदेश के वैद्य से अपना और अपने पत्नी का इलाज करवाया। राज्य  के सभी मंदिर में पूजा करने को पंडितों ने कहा उन्होंने वो भी किया। लेकिन फिर भी उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। राजा अब बूढ़े हो गए थे. 

  इसलिए किसी योग्य उत्तराधिकारी को राज्य  सौंपकर सन्यासी बनना चाहते थे। 

वह किसी को भी तो अपना राज्य ऐसे ही नहीं दे सकते थे इसलिए उन्होंने एक उपाय निकाला। अपने महल के बगल में एक छोटा सा किला  बनवाया और उस किले के दरवाजे पर एक गणित का सूत्र लिख दिया। उन्होंने अपने सैनिकों से पूरे राज्य में घोषणा करवा दिया कि जो भी इस सूत्र को हल करेगा किले का दरवाजा अपने आप खुल जाएगा और जो दरवाजे के अंदर प्रवेश कर जाएगा वहीं इस राज्य का अगला उत्तराधिकारी होगा। 



यह घोषणा जैसे ही लोगों को ज्ञात हुआ राज्य  से और राज्य के बाहर से एक से एक गणित का विशेषज्ञ सूत्र  का हल करने के लिए आए लेकिन किसी ने भी उस गणित के सूत्र को हल नहीं कर सका.  फिर धीरे-धीरे यह बात दूसरे राज्यों तक भी पहुंच गई उन राज्यों के राजाओं ने भी अपने राज्य के वरिष्ठ गणितज्ञ को भेजा, उस  गणित के सूत्र को हल करने के लिए लेकिन कोई भी उस सूत्र को हल करने में कामयाब नहीं रहा। 

कुछ गणितज्ञ तो अपने साथ एक से एक गणित के सूत्रों की पुस्तक भी लेकर आए थे लेकिन वे फिर भी उस सूत्र का हल नहीं निकाल सके। 

उत्तराधिकारी बनने वाली बात एक भिखारी को भी पता चला उसने सोचा चल कर एक बार कोशिश करने में क्या जाता है अगर खुल गया तो मैं राज्य का राजा बन जाऊंगा और नहीं खुला तो मैं तो भिखारी ही तो रहूँगा। 

 वह महल के पास आ गया और सैनिकों से पूछा कि मैं एक बार इस गणित के सूत्र को हल करने की कोशिश करना चाहता हूँ. 

सैनिकों ने उस भिखारी का मजाक बनाया और कहा अरे भिखारी चुपचाप जाओ यहां से जब एक से एक बड़े-बड़े गणितज्ञ इस सूत्र का हल नहीं निकाल सके तो तुम्हारे बस की है जाओ यहां से क्यों मजाक कर रहे हो । 

 राजा ने अधिकारी को सैनिकों से बात करते हुए देख लिया था उसने कहा तुम एक बार कोशिश कर सकते हो।  लेकिन याद रखो अगर तुम दरवाजा नहीं खोल पाए तो तुम्हें इस राज्य से बाहर जाना पड़ेगा। भिखारी ने सोचा इसमें कौन सी बड़ी बात है मैं भीख  मांगता हूँ, इस राज्य में ना सही किसी और राज्य में जाकर मांग लूंगा। 



 दरवाजे के पास गया और वह गणित के सूत्र को देखकर सोचने लगा गणित तो मुझे आता नहीं था अब वह क्या करें चलो एक बार दरवाजे को धक्का देकर देखता हूं क्या पता दरवाजा ऐसे ही खुल जाए। 

 भिखारी ने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखा दरवाजा अंदर की तरफ खुल गया.  यह देखकर राजा आश्चर्यचकित हुए। 

 राजा ने भिखारी को अपने पास बुलाया और पूछा तुमने यह दरवाजा कैसे खोल दिया क्या तुमने उस गणित के सूत्र का हल निकाल लिया है। 

भिखारी  ने कहा महाराज मुझे   गणित कहाँ आता है। मैंने सोचा एक बार दरवाजे को खोलने में क्या जाता है नहीं खुलेगा तो वापस चला जाऊंगा।  फिर दरवाजा अपने आप ही खुल गया। 

 राजा ने अगले दिन ही दरबार में उस भिखारी को उस राज्य का अगला उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 

 दोस्तों इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कई लोग प्रयास ही नहीं करते  हैं सिर्फ सोचते हैं और सोचने वाले सिर्फ सोचते ही रह जाते हैं लेकिन जो प्रयत्न करता है वही कामयाब होता है.  भिखारी ने प्रयत्न किया और दरवाजा खुल गया लेकिन दूसरे लोग आए और वह यह भी नहीं सोचा कि वह गणित का सूत्र ही गलत है. 

 वह कोई हल ही नहीं कर सकता है एक बार भी उन्होंने दरवाजे को अपने हाथों से छूकर खोलने के प्रयास नहीं किया वह इसी भरोसे में बैठे रहे  की गणित का सूत्र हल होगा और दरवाजा अपने आप ही खुल जाएगा। 

 दोस्तों इसी तरह का हाल उन लोगों का होता है जो अपने भाग्य के भरोसे बैठे होते हैं वह कर्म नहीं करते हैं जबकि वास्तविक दुनिया में सफलता उन्ही को मिलती है जो कर्म करते हैं जो कर्म करने में विश्वास करते हैं।

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