“चाय जरा जल्दी मंगाओ यार ! मुझे जाना है।” मनीष ने घड़ी देखते हुए कहा।
“अभी तो शाम के छह ही बजे हैं, इतनी जल्दी घर जाएगा।” विनय ने आंखें गोल-गोल घुमाते हुए कहा।
“अरे नहीं यार! तुम लोगों को तो पता ही है, अपना बचपन का यार गिरधर, इस जिले में बड़ा अफसर बनकर आ गया है। एक सिफारिश करने के लिए उसके घर जाना है।”
“रहने दे, अपना वक्त ही बिगाड़ेगा। किसी काम का नहीं है वो!”साजिद ने बीच में कूदते हुए कहा।
एक ही कॉलोनी के रहने वाले तीनों दोस्त रोजाना शाम की तरह चौराहे पर स्थित भोला टी स्टाल पर बैठे थे।
“ऐसा क्यों कह रहा है तू?”विनय ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
पेशे से सब्जियों के दलाल साजिद ने बताया,”थोड़े दिन पहले एक बड़ा सौदा हाथ लगा था। मंजूरी फाइनली गिरधर के हाथ में थी। मैंने उसे पांच लाख का ऑफर दिया। कर देता तो दस लाख मेरे भी खरे हो जाते। अगली पार्टी को मैंने पूरा विश्वास दिलाया था कि पुरानी यारी है।काम हो जाएगा। लेकिन वो साला माना ही नहीं।”
“पांच लाख की रिश्वत भी ठुकरा दी?” मनीष की आंखें फटी की फटी रह गई।
“हां! बोलता है कि वह बेईमानी से दूर रहता है। गलत काम नहीं कर सकता।”
“कमाल हो गया! इस युग में ऐसा व्यक्ति!! कब तक चलेगा?”
“भाई इसकी छोड़ ! मैंने तो उसे रिश्तेदारी का मामला बताते हुए सिर्फ सिफारिश की थी। वह बात अलग है सिफारिश के नाम पर मैं अच्छी रकम कूट लेता। लेकिन मुझे भी कह दिया कि मैं सिफारिश नहीं मानता।” विनय ने भी अपना रोना रोया।
“फिर तो एकदम घटिया आदमी है। ऐसे के यहां क्या जाना !”मनीष ने गर्दन टेढ़ी कर एक और थूकते हुए कहा।
तब तक चाय आ चुकी थी । तीनों दोस्त चाय में मशगूल हो गए।
दूसरी ओर खन्ना जी बड़े सरकारी बंगले के बड़े ड्राइंग रूम में, टी टेबल पर ब्रीफकेस खोले बैठे थे।
“गिन लीजिए साहब! पूरे पन्द्रह लाख हैं!!”
“यहां कौन सी नोट गिनने की मशीन रखी है, खन्ना साहब। आप पर हमें पूरा ऐतबार है। बेईमानी तो हमारे बचपन का दोस्त साजिद कर रहा था। हमने पहले उससे पूरा काम समझा, उसे मना किया फिर आप से सीधे ही संपर्क कर लिया।”
“जी! तभी तो हमें ज्ञात हुआ कि वह बीच में ही दस लाख खाना चाहता था।”
“बिचौलियों का राज खत्म हुआ खन्ना जी, अब तो अफसर सीधे ही सौदा करते हैं। हा….हा….हा “
और गिरधर जी के साथ-साथ खन्ना साहब भी हंस पड़े।
स्वरचित और मौलिक
मधुसूदन शर्मा