बगिया की चिरैया – मणि शर्मा

“मम्मी !कहाँ हो तुम ?”आवाज़ लगाती मेघना बैठक में घुसी. आज मेघना स्कूल से जल्दी छूट गई थी. उसका मायका शहर में ही था, कभी कभी वह स्कूल से सीधा ही मम्मी पापा का हाल चाल लेने आ जाती थी.

“दीदी! आइए बैठिए!” छोटे भाई आकाश की पत्नी सुमि ने मेघना के हाथ से सामान लेते हुए कहा.

“मम्मी नहीं दिख रहीं हैं सुमि,”मेघना ने पूछा.

“वो न दीदी!सुमि मुस्कुराते हु

ए बोली, “मम्मी पापा के बीच घर की पुताई के रंग को लेकर कुछ खटपट हो गई है,तो मम्मी सोने का नाटक कर रहीं हैं पापा सामान लेने गये हैं.”

“अच्छा !मैं देखती हूँ,”कहकर मेघना मम्मी के कमरे की ओर जाने लगी.

“अरे नहीं दीदी! आप बैठिए, पहले मैं चाय बना लाती हूँ,आप भी तो सीधे स्कूल से आ रहीं हैं थकी होंगी, “सुमि ने मेघना को सोफे पर बिठाते हुए कहा.

“चलो यह भी ठीक है ,कहकर मेघना सोफे पर पसर गई. सुमि चाय बनाने चली गई.

सचमुच थकान से मेघना का अंग अंग टूट रहा था.स्कूल में परीक्षाओं की वजह से काम ज्यादा था ऊपर से घर की कामवाली भी तीन दिन की छुट्टी पर थी.स्कूल में ही मेघना का मन सुमि के हाथ की चाय पीने का कर रहा था.बैठे बैठे मेघना सुमि के बारे में सोचने लगी.

सुमि बहुत अच्छी लड़की थी. सबका बहुत घ्यान रखती.सभी उस पर वैसे ही निर्भर हो गए थे जैसे मेघना पर रहते थे.मम्मी पापा तो सुमि पर जान छिड़कते थे. घर की छोटी बड़ी परेशानी सुमि बड़े आराम से सुलझा देती. सुमि के भीतर मेघना अपने आप को देखती. कभी कभी मेघना को लगता जैसे वह कहीं नहीं गई मायके मे ही है. उसे आज भी याद है


विदा के समय पापा मम्मी बहुत रो रहे थे. पापा ने उसे बाहों में भरकर कहा था,”मेरी चिरैया !बगिया सूनी करके जा रही है”.और आकाश ने तो अपने आपको कमरे में ही बंद कर लिया था .बड़ी मुश्किल से दरवाजा खुलवाया तो मेघना से लिपट कर बहुत रोया और कहा,”

दीदी !तेरे बिना हम सब कैसे रहेंगे.”   तब मेघना ने आँसुओं के बीच कहा था, “अरे पागल तेरी दुल्हन आएगी तो सब सम्हाल लेगी “. और सचमुच तीन साल बाद सुमि ने आकर सब सम्हाल लिया था.

“दीदी! चाय “सुमि कीआवाज से मेघना का ध्यान टूटा.

“तुम्हारी चाय कहाँ है ?”मेघना ने कप पकड़ते हुए पूछा .

“अभी लाती हूँ दीदी!मम्मी को मना लाऊँ “मुस्कुराते हुए सुमि बोली.

“पहले अपनी चाय ले आओ, पीकर साथ में मना लेंगे”मेघना ने कहा .

सुमि चाय लेकर मेघना के पास बैठ गई. चाय हमेशा की तरह बहुत अच्छी लग रही थी . एक एक घूँट से मानो थोड़ी थोड़ी थकान दूर हो रही थी.

अचानक ही मेघना ने सुमि का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,”थैंक्स सुमि!


“थैंक्स किसलिए दीदी?”सुमि ने आश्चर्य किया.

“मेरे मायके में मेरी कमी पूरी करने के लिए, सबका कितना ख्याल रखती हो.

“क्या दीदी !यह भी कोई बात है ,मेरा घर नहीं है यह”?सुमि बोली . “कहने दो सुमि!तुम्हें देख कर लगता है जैसे मैं यहीं हूँ. सच कहूँ सुमि !मुझे डर लगता था कि भाभी आएगी तो कुछ बदल जाएगा. पर मैं बहुत खुश हूँ. तुम सबसे अलग हो, सबसे प्यारी हो. मेरे मायके की बगिया की प्यारी चिरैया”।कहते कहते मेघना भावुक हो गई.

“बिल्कुल आपके जैसी! है न दीदी !”कहकर  सुमि मेघना का हाथ पकड़ कर खिलखिला कर हँस पड़ी. मेघना को लगा जैसे घर का कोना कोना खिलखिला रहा हो.

मणि शर्मा

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