रमोला और अमन की दोस्ती धीरे धीरे परवान चढ़ी और एक दिन भी बिना मिले, दोनों रह नहीं पाते थे। दसवीं तक रोज पढ़ाई लिखाई भी एक साथ करते। और 1995 के समय में आज की तरह खुल्लमखुल्ला इश्क की बातें नही कर सकते थे।
अमन इंजीनियरिंग पढ़ने मुम्बई चले गए और रमोला उसी शहर में रह गयी, घर भी बदल गया। फ़ोन भी सबके पास नहीं होते थे। दोनों का कांटेक्ट टूट चुका था। वर्ष 2002 में ही अमन अच्छी जॉब में लग गए।
फिर छुट्टियों में घर आये, तो मम्मी ने कुछ लड़कियों की फ़ोटो दिखाई और बोलीं, “अब तो शादी कर ही लो, छोटा भाई भी है, तुम नहीं करोगे तो लाइन क्लियर नहीं होगी।”
तब अमन के दिल की घंटी बजने लगी, सोचा आज रात को फेसबुक में रमोला को ढूंढा जाए। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी।
और इत्तफाक ऐसा हुआ कि वह मिल गयी, फ्रेंड रिक्वेस्ट देखकर ही पहचान गयी, फिर तो बात चल ही पड़ी।
खूबसूरत तो बचपन से ही थी, अब चार चांद लग चुके थे। वह भी अच्छी जॉब करती थी। इस बीच अमन के पापा ने भी फ्लैट खरीद लिया था।
एक दिन रमोला और अमन ने मिलने का दिन तय किया और दो घंटे एक रेस्तरां में कॉफी के साथ इतने वर्षों की गुफ्तगू करी। अचानक अमन ने रमोला का हाथ अपने हाथ मे ले पूछा, “मेरी दुल्हन बनोगी?”
रमोला शर्मा गयी, “क्या ऐसा हो सकता है?”
“कोशिश करता हूँ।”
फिर दोनों घर चल पड़े। तभी अमन ने उससे सोसाइटी का नाम पूछा और रमोला ने अमन की ही सोसाइटी का नाम बताया। एक आश्चर्य में दोनों थे, एक साथ वहां तक आये, बिल्डिंग भी वही, अमन पांचवे फ्लोर और रमोला छठवें फ्लोर पर गयी।
घर आकर रात को अमन ने मम्मी से कहा, “मम्मी, क्या मैं अपने पसंद की लड़की को आपकी बहू बना सकता हूँ?”
“क्यों नहीं, पर ठीक ठाक होनी चाहिए।”
“अरे बला की खूबसूरत है।”
पापा उनलोगों को जानते थे, छोटी सी बिज़नेस थी।
अब बेटे की इच्छा पूरी करनी ही थी, शादी पक्की हुई।
अमन के मम्मी पापा जबसे नौकरी लगी, बड़े बड़े मंसूबे बांधे बैठे थे, बड़ी हुंडई गाड़ी दहेज में लेंगे, बेटा इंजीनियर है, सबकुछ मिलना ही चाहिए।
पर बेटे की पसंद होने के कारण ज्यादा कुछ नहीं मिला, बस खूबसूरत दुल्हन आयी, जिसकी गुलाबी रंगत, मेकअप, पैरों का सुर्ख लाल आलता देखकर रिश्तेदार ही नहीं, पूरी सोसाइटी के लोग अमन के भाग्य पर रश्क कर रहे थे।
दोनों दूल्हा दुल्हन एक हफ्ते के भीतर ही ज्यादा छुट्टी नही होने के कारण मुम्बई चले गए। रमोला ने वहां नई नौकरी जॉइन करी। दोनों की शादीशुदा जिंदगी बहुत मज़े में बीत रही थी। पर लड़के के माँ पापा जो बेटे के जन्म से ही बहुत कुछ उम्मीदें बांध लेते हैं,
उसके कारण दुखी ही रहे। एक वर्ष बीतते ही अमन की माँ को एक दुख और सता रहा था, जब भी फ़ोन पर बात होती, बहू से कहती, अरे मुझे दादी कब बना रही हो।
रमोला घर, आफिस को सम्हालने में व्यस्त थी, बड़े शहर में एक की कमाई से रहन सहन बढ़िया नहीं हो सकता। पर #सास को बहू की तकलीफ नहीं दिखती है।
आज बच्चों ने उनकी बात काट दी, कि हम चार वर्ष तक आपको दादी नहीं बनाएँगे। बेटे बहू से दुखी सास ने समधियाने से बातचीत भी बंद कर दी। होना ये चाहिए कि वयस्क बच्चों को स्वतंत्रता देनी चाहिए। वही माँ बाप दुखी रहते हैं, जो उन्हें अपनी उंगलियों पर नचाना चाहते हैं।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बेंगलुरु
#सास को बहू की तकलीफ नहीं दिखती है।