सास भी माँ ही होती है – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

     मेघना की शादी की तारीख जितनी पास आ रही थी, उसके दिल की धड़कने उतनी ही बढ़ती जा रही थी। शादी की तैयारियों में तो वो सब भूल जाती लेकिन अकेले में उसे एक डर सा सताता। और वो सच्चा भी था। उसका बचपन गांव में संयुक्त परिवार में बीता जहां उसकी मां ,ताई और चाची सब साथ में ही रहते थे। 

       घर काफी बड़ा था और खेती बाड़ी, गाय भैंसे वगैरह थी। उसकी दादी बहुत कड़क स्वभाव की थी। पूरे घर पर उसकी हकूमत चलती। दादा जी के जल्दी स्वर्गवास के बाद दादी ने ही तीनों बेटों को अपने पांव पर खड़ा होना सिखाया।उसके चाचा ताया तो ज्यादा नहीं पढ़ पाए, ताया जी को घर का बड़ा बेटा होने के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और चाचा की पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी। 

       अपने घर का ही काम इतना था कि दादी ने भी पढ़ाई पर ज्यादा जोर नहीं दिया लेकिन मेघना के पिता का शौक देखते हुए उसे पढ़ने से मना भी नहीं किया। गांव के स्कूल में बारहवीं के बाद ही वो शहर में पढ़ने चले गए। घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी तो उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई की और अच्छी सरकारी नौकरी भी प्राप्त की। 

        ताया जी की शादी के बाद दादी ने मेघना के पिता यानि नरेन को शादी के लिए कहा, अभी उसने बी. काम ही किया था। दादी चाहती थी कि वो भी गांव में रह कर अपना ही काम संभाले लेकिन वो आगे पढ़ना चाहते थे तो दादी ने शर्त रखी कि वो शादी कर ले फिर चाहे पढ़ता रहे। 

    मना करते करते भी बाईस की उम्र में नरेन की शादी हो गई और अगले साल ही मेघना का जन्म। दो साल बाद चाचा की भी शादी हो गई। समय के साथ घर में सात बच्चे हो गए। ताया जी के तीन, मेघना और उसका भाई रेयाशं और चाचा की दो बेटियां। 

        मेघना के पिताजी की शहर में पढ़ाई चालू थी और फिर अच्छी नौकरी की तलाश। मेघना अपनी मां और भाई के साथ गांव में ही रहती, पिताजी ही आते जाते रहते। वो चाहते तो थे परिवार को साथ ले जाना लेकिन जब तक अच्छी नौकरी न मिल जाए , ये संभव नहीं था। वो घर से पैसे मगंवाने के हक में नहीं थे। पांचवीं पास करने को बाद ही मेघना का परिवार शहर मे शिफ्ट हुआ।

      मेघना की दादी के आगे किसी की बोलने की हिम्मत नहीं थी। तीनों बहुएं रसोई संभालती, दादी ने तीनों के काम बांटे हुए थे। घर में हैल्पर थे मगर सब को काफी काम करना पड़ता। कौन सी बहू कब मायके जाएगी, किस रिश्तेदार की शादी में कौन जाएगा, कपड़ो, गहनों की खरीददारी कब और कितनी होंगी, त्यौहारों पर क्या बनेगा।

    यानि कि पूरा डिसिप्लन, तब मेघना बच्ची थी लेकिन उसे दादी की टोकाटोकी पंसद नहीं थी। वैसे उसे लगता कि दादी सबको बहुत प्यार करती है लेकिन उसे बहुत बुरा लगता जब उसकी मां देर रात तक रसोई में लगी रहती। परिवार बड़ा था तो काम भी ज्यादा होना ही था।

       शहर में आकर मेघना ने जैसे सुख की सांस ली।तीज त्यौहार पर वो गांव जाते थे , मेघना को अपने कजनस से मिलने का चाव रहता, सब बच्चे पढ़ लिख रहे थे,ताया जी की बड़ी बेटी की शादी भी हो गई थी। मेघना को लगता कि उसकी दादी बहुओं से अच्छा व्यवहार नहीं करती। हालाकिं ऐसा कुछ था नहीं लेकिन घर में नियम तो थे। और वही बच्चों को पंसद नहीं आते ।  

       मेघना की मां इंद्रा ने अपनी सास के प्रति कभी कुछ भी बुरा नहीं कहा लेकिन मेघना के मन में सास की छवि कुछ अच्छी नहीं थी। वैसे तो वो शहर बहुत कम आती लेकिन दो तीन बार किसी बीमारी की वजह से आई। एक बार उनकी आंखों का आप्रेशन हुआ तो वो लगभग पद्रंह दिन रही। मेड  होने के बावजूद भी मां पापा उनका सारा काम स्वंय करते।

दिन में कई बार आंखों में दवाई डालना, खाने का ध्यान रखना। उतने दिन मां कहीं नहीं गई, किट्टी पार्टी भी मिस कर दी।एक शादी पर जाना भी कैंसिल कर दिया। मेघना जब रात देर से घर आती तो वो जरूर पूछती और कहती, बेटा समय से घर आ जाया करो, जमाना ठीक नहीं। 

वैसे तो मेघना के कपड़े सलीकेदार होते लेकिन कुछ पार्टी वियर भी थे, दादी के सामने वो पहन कर कभी नहीं आई, फालतू में चार बातें सुनने को मिलती। 

    हर समय मां का अपनी सास के आगे पीछे घूमना,उनकी पंसद नापंसद के मुताबिक खाना बनाना, जाना आना भी कम कर देना, मेघना ठहरी नए जमाने की , उसे लगता कि ये सब काम तो मेड भी कर सकती है, इस के लिए अपने प्रोग्राम खराब करने की क्या जरूरत है। उसे लगता कि ‘ सास’ नामक जीव मानो ’’ हौआ’ है या थानेदार है।

कई बार सहेलियों से भी बात होती तो सास के बारे में सब बुरा ही बोलती जबकि मां सबको अच्छी लगती। एक बार यूं ही बाते चल रही थी तो सासों की बुराई करना रिया को पंसद नहीं आया , उसने कहा ,” ऐसा क्यूं सोचती हो, सास भी तो मां ही होती है, हमारी मां भी तो भाभी की सास ही होगी, और फिर हंसते हुए बोली, हम भी कभी सास बनेगी”।

     “ शादी के बाद करना सास शब्द की व्याख्या” मेघना ने चिढ़ते हुए कहा।

    आखिर मेघना की शादी का दिन भी आ गया। सब कुछ हंसी खुशी संम्पन हुआ। मेघना की सास काफी पढ़ी लिखी, सुंदर और सलीके वाली औरत थी। शादी से पहले और कुछ समय बाद भी उसने नौकरी की लेकिन बाद में छोड़ दी थी। मेघना भी आन लाईन काम करती थी, लेकिन आजकल उसने छुट्टी ले रखी थी। 

     शादी के बाद एक महीना रस्मों रिवाज और घूमने फिरने में निकल गया। जब पहली रसोई की रस्म में रेयाशं की भुआ ने मूंग दाल का हलवा बनाने की फरमाईश कर दी तो मेघना के तो हाथ पांव ही फूल गए। सूजी या आटे का हलवा तो वो बना लेती थी मगर मूंग दाल का तो उसने कभी बनाया ही नहीं था।

    उसकी सास मालविका ने बड़े ही प्यार से उसे सब समझाया और हलवा बनते समय रसोई के चार चक्कर लगा गई और सबको हलवा बहुत पंसद आया।सबने मेघना को नेग दिया, मालविका ने तो कानों के जड़ाऊ झुमके दिए।  मेघना का काम किसी बाहर की कंपनी के साथ था, कई बार आन लाईन मीटिंग देर रात को होती क्योंकि उस समय वहां दिन होता है। 

      सुबह मेघना थोड़ा जल्दी उठने की कोशिश करती लेकिन उठ न पाती और जिस दिन देर रात तक मीटिंग होती तब तो सुबह के दस ग्यारह भी बजे होते। मेघना सोचती कि किसी न किसी दिन जरूर सुनने को मिलेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसकी ननद रूही भी बड़े प्यार से पेश आती। काफी काम मेड करती, कुछ मालविका और घर पर होती तो रूही भी टेबल वगैरह लगाने में मदद करती। 

        धीरे धीरे मेघना भी घर में घुलने मिलने लगी और काम में भी हाथ बंटाने लगी।  उसे कहीं से नहीं लगा कि ये उसका अपना घर नहीं या कोई उसे तंग कर रहा है। सचाई तो ये थी कि उसे मायके से भी ज्यादा छूट थी, कोई रोका टोकी नहीं, बस कहीं जाना हो तो घर पर बताना जरूरी था। 

      रात को सब इकट्ठे खाना खाते, किसी को बाहर जाना होता तो अलग बात थी। उसे ज्यादा तो पता नहीं था लेकिन रेयांश घर खर्च में अपना योगदान देता था। एक दिन तो उसकी आंख खुली तो दिन के बारह बज चुके 

थे। रसोई में सब काम लगभग हो चुका था, उसे बहुत शर्मिदंगी सी महसूस हुई , “सारी ममी, आज पता ही नहीं चला, अलार्म लगाना भूल गई”।मेघना ने कहा ” कोई बात नहीं, रात को देर से सोई होगी, आजकल दिन रात में कोई फर्क नहीं, कोरोना ने “वर्क फराम होम” और “आन लाईन मीटिंग” का तोहफा जरूर दिया। शायद पहले भी होगा लेकिन अब तो आम है”।

    मेघना इतनी व्यस्त रहती कि कई कई दिन मां को फोन ही न कर पाती तो उसे माँ से ही मीठी डांट पड़ती। दो साल बाद बेटा हुआ तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई। दो महीने के अंश को लेकर मेघना मायके आई तो बेटी को खुश देखकर परिवार में सबने खुश होना ही था।शादी के बाद मां बेटी में आमने सामने कम ही बातें हुई थी।  मेघना एक दो दिन के लिए ही आती या फिर रेयांश साथ होते। 

     अबके उसका रहने का कुछ लंबा प्रोग्राम था। जैसे कि हर मां की इच्छा होती है कि बेटी मायके में कुछ आराम कर ले, ससुराल में तो काम ही करना है,

और उसे अपनी बेटी की सास के बारे में राय का भी कुछ कुछ आभास था। लेकिन अब तो बात ही कुछ और ही थी। रेयांश से ज्यादा बातें मालविका के बारे में करती। पूरा टाईम इतना ध्यान रखा कि क्या बताऊं, हर रोज जूस, डिलीवरी के टाईम, बाद में ये, वो यानि की प्रशंसा ही प्रशसां।

    इंद्रा के मन को तसल्ली हो गई, फिर भी उसने छेड़ते हुए कहा, तेरी तो सास के बारे में राय कुछ और ही होती थी।” सच बताऊं ममी,गांव में दादी की हकूमत देखकर मेरे दिमाग में न जाने क्यों मेरा ऐसा दृष्टिकोण बन गया था”। 

       “ बेटा,उस समय तूं बच्ची थी, और मांजी की मजबूरी, तेरे दादा जी के निधन के बाद अगर मांजी ने अपना कंट्रौल न रखा होता तो आज हमारा ये रूतबा न होता , जमीन जायदाद सब सुरक्षित है और  किसी बड़े का डर न हो तो घर बिखरते देर नहीं लगती। वो जो भी करते है, परिवार की भलाई के लिए ही करते है।वंश तो बहू से ही चलता है, किसी की बेटी , किसी की बहू होगी। अपना अपना स्वभाव होता है। 

इंद्रा ने आगे कहा,” कुछ बातें अनजाने में ही बेटियों के मन में भर दी जाती है, मायके में ऐश करने दो, ससुराल में तो काम ही करना है, वहां ये सब नहीं चलेगा, और भी न जाने क्या। सास की छवि खराब ही दिखाई जाती है, जबकि ऐसा कुछ नहीं। अगर कुछ खराब है तो उसके साथ और भी बहुत सी बाते जुड़ी होती है।

     अब देखो, समय के साथ हम यहां आ गए, तेरे ताऊ भी अलग घर में रह रहे है, चाचा का परिवार दादी के साथ है, सबको अपना अपना हिस्सा भी मिल गया और प्यार और सम्मान भी है। कितने चाव से हम गांव जाते है।

      सास के प्रति गल्त धारणा पुराने जमाने की बातें हो गई, उसमें भी पता नहीं कितनी सच्चाई रही होगी। कहते है कि आदमी की कमाई में तभी बरकत होती है जब घर की औरत उसे ढ़ंग से सभांले। और घर में नियम , कानून, अनुशासन, सामाजिक परम्पराओं का निर्वाह, अच्छे रीति रिवाज हमारी उच्च संस्कृति का एक अहम् हिस्सा है। 

    “ बिल्कुल मां, मैं सब समझ गई, मां हो या सास , दोनों ही बराबर है, मां तो मां ही है”और फिर अंश को गोदी में लेते हुई मुस्कराई,” अब तो मुझे भी सास बनने की तैयारी करनी है”। और दोनों हँस पड़ी।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

वाक्य-  सास को बहू की तकलीफ नहीं दिखती है।

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