क्या बात है दीदी तुम्हारे बेटे की शादी है और तुम उदास सी चिंतातुर बैठी हो क्यों क्या हुआ अमिता अपनी बड़ी बहन सविता से बोली। कुछ नहीं रे बस ऐसे ही सोच रही थी कि आजकल के बच्चे कैसे हों गए हैं जो रिश्तों को खेल समझते हैं रिश्तों की मर्यादा को समझते ही नहीं है । अपनी मनमर्जी किया करते हैं बड़ों की बात उन्हें सुन्नी ही नहीं है।
जबसे बच्चे घर से बाहर रहने लगे हैं पढ़ाई के चक्कर में और पढ़ाई के बाद फिर नौकरी भी बाहर करनी है तो मां बाप से भी दूर हो गए हैं। रिश्तों को निभाना भूल गए हैं ।न अपने मन की कुछ बताते हैं और न ही हम मां बाप की कुछ सुनते हैं।घर से दूर हुए तो मन से भी दूर हो जाते हैं। अपने मन की करते हैं ।
और बस दोस्तो को भी अपना समझते हैं और किसी को नहीं। हां तुम सही कह रही हो दीदी। लेकिन इतनी चिंता न करो खुद पर पड़ेगी तो खुद ही सीख जाएंगे। रिश्तों को निभाना भी और रिश्तों की अहमियत भी।
सविता और धीरेन्द्र के बेटे की शादी थी । दूसरी शादी , हां पहली शादी में दो साल बाद तलाक़ हो गया था। कितने अरमानों से करी थी बेटे सिद्धार्थ की शादी सविता ने सबपर पानी फिर गया। सबकुछ बढ़िया था लड़की पढ़ी लिखी थी पी,एच ,डी किया था और सविता का बेटा भी आईं आई टी से इंजीनियरिंग किया हुआ था।
लेकिन शादी के दो महीने बाद से ही दोनों में छोटी-छोटी बातों को लेकर तू तू मैं मैं होने लगी थी ।शायद दोनों का अहम आगे आ रहा था।बहू मिताली जहां जरा सी कोई बात सिद्धार्थ से होती वो सविता को फोन करने लगती और उसकी शिकायतें लगाने लगती कि यहां आकर सिद्धार्थ को समझाओ । आजकल बच्चे किसी के समझाने के है
क्या।अब इतनी बड़ी उम्र में शादी होती है खुद ही समझदार हो जाते हैं कौन समझा सकता है उन्हें। आजकल तो वो बात रही नहीं कि लड़कियां ससुराल में सास-ससुर से दब कर रहेंगी । कुछ अच्छा बुरा समझाओ तो मान जाएगी अब वो जमाना नहीं रहा अमिता।अब तो बहुओं से सांस ससुर दबने लगे हैं।
फिर दोनों बाहर रह रहे हैं , नौकरी कर रहे हैं। अभी समय ही कितना हुआ है एक दूसरे को समझने के लिए थोड़ा वक्त दो । लेकिन आजकल रिश्तों की अहमियत कोई नहीं समझता ।और मर्यादा तो रिश्तों में रह ही नहीं गई है ।
अगर आपस में कोई बात हो भी जाती है तो बात बात में सास ससुर को फोन करने की क्या जरूरत है आपस में सुलह कर लो । किसी तीसरे के बीच में पड़ने पर बात और खराब होती है।
मिताली के कहने पर एक दो बार सविता बहू बेटे के पास गई,बेटे को समझाया तो बेटा कहता मिताली को समझाओ,अब शादी हो गई है तो क्या दोस्तों से मिलना जुलना छोड़ दूं क्या मिताली कहती हैं घर पर रहो। खुद भी तो जाती है दोस्तों से मिलने बस हमारे मिलने पर रोक है।अब मम्मी बताओ खाना बनाने में में मिताली की हेल्प कर देता हूं
वैसे तो इनको कुछ बनाने नहीं आता ज्यादा तर मैं ही सबकुछ बनाता हूं हेल्प तो ये करती है मेरी थोड़ी बहुत। लेकिन रसोई का कुछ काम तो मिताली को भी देखना पड़ेगा सामान हटाना रखना।अब रसोई का पूरा ही काम तो मैं नहीं कर सकता न। इसलिए सारे झंझटों से बचने के लिए मैंने खाना बनाने वाली रख दी है।
तब भी कोई न कोई परेशानी इनको होती रहती है।अब मम्मी तुम बीच में न पड़ो,हम लोगों को अपने तरीके से निपटा लेने दो ।पर बेटा मैं कब बीच में पड़ना चाहती हूं मिताली का फोन आ जाता है कि आकर देखे तो मुझे आना पड़ता है नहीं तो ,,,,,।
समझा बुझाकर फिर सविता अपने घर वापस आ जाती लेकिन फिर दोनों की किसी बात पर हो जाती ।असल में ईगो आगे आता है आजकल बच्चों के सामने और कुछ नहीं।और आज इस बात पर मिताली और सिद्धार्थ का झगड़ा हो रहा है कि सिद्धार्थ के आफिस का टूर कश्मीर घूमने जा रहा दस दिन को जिसमें लड़के अकेले ही जा रहे हैं
पत्नियां साथ में नहीं जा रही है ।बस इस बात पर मिताली झगड़ा कर रही है कि मुझे भी साथ ले जाओ नहीं तो तुम भी मत जाओ।अब बताओ जब किसी की पत्नी साथ नही जा रही है तो मैं कैसी ले जाऊं।घर छोड़ कर जाने की धमकी दे रही है।अब बताओ क्या मैं
इनका बिल्कुल गुलाम बनकर रह जाऊं क्या।ऐसी छोटी-छोटी बातों में भयंकर झगड़ा हो जाता है दोनों में कोई भी झुकने को तैयार नहीं होता है।पति पत्नी का रिश्ता तो पवित्र रिश्ता होता है ।हर रिश्ते में थोड़ी बहुत मर्यादा भी होती है लेकिन बच्चे आजकल समझते ही नहीं है क्या करें ।
पहले जमाना और था अमिता एक बार शादी हो गई तो ससुराल में कैसे सबसे रिश्ता निभाना है मां बाप अच्छे से समझाते थे और बच्चे समझ भी जाते थे ।बड़ों का दबाव बना रहता था । लेकिन आजकल बच्चे कुछ सुनना ही नहीं चाहते ।यही मिताली और सिद्धार्थ के साथ भी हुआ।
दिसम्बर में शादी हुई थी तो करीब आठ नौ महीने के बाद दिवाली का त्योहार आया तो मिताली और सिद्धार्थ घर आए ।चार दिन रहे और उसके बाद वापस जाते समय फिर दोनों में झगड़ा हो गया ।
और झगड़ा किस बात कि कि कार से पानी की बोतल निकाल लाओ पानी भरना है । बेटे ने बहू से कहा बहू कहने लगी तुम ले आओ वो कहने लगी तुम ले आओ बस ये छोटी सी बात बढ़ती गई ये नहीं हुआ कि कोई एक शांत हो जाए और वो काम न करें जिससे बात बढ़े पर नहीं बहस करनी है तो करनी है ।
फिर सविता ने और पति धीरेन्द्र ने मिलकर बीच बचाव किया और शांत करके वापस भेजा। लेकिन कार में दोनों कि फिर लड़ाई हो गई और बेटे ने नमकीन का पैकेट मिताली के मुंह पर फेंक दिया बस क्या था मिताली कहने लगी मुझपर हाथ उठाया ।अब पता नहीं क्या सही था क्या ग़लत हमने तो नहीं देखा था।
और कुछ दिन बाद बेटे ने बताया कि मम्मी अब हम दोनों साथ नहीं रह सकते हम दोनों तलाक ले रहे हैं सुनकर सविता जी तो जैसे बेसुध ही हो गई ये क्या कह रहे हो बेटा लोग क्या कहेंगे, इस पड़ोस के लोग क्या कहेंगे । रिश्ते दारों में हमारी मदद नाक कट जाएगी। लेकिन दोनों नहीं माने और जिद पर अडे रहे अब जब रहना ही नहीं हैं साथ तो कोई क्या कर सकता है।
बहू का तलाक का नोटिस आ गया घर पर । कोर्ट में हाजिर हुए तो वहां भी बहुत समझाया गया इस तरह से शादी नहीं चलती दो अलग-अलग शख्शियत के लोग जब साथ रहते हैं तो इस तरह के टकराव होते हैं इतना आसान नहीं होता किसी रिश्ते को निभाना बहुत सारे समझौते करने पड़ते हैं , बहुत सारी चीजों को बातों को नजरंदाज करना पड़ता है ।
मिताली और सिद्धार्थ की कोर्ट की तरफ से तीन मीटिंग कराई गई रिश्ते बचाने को ।और सविता और धीरेन्द्र ने भी बहुत दबाव बनाया सिद्धार्थ पर तो वो थोड़ा झुका लेकिन मिताली नहीं मानी और बीस लाख रूपए की मांग की जिसे दे देने पर तलाक़ कि प्रक्रिया पूरी हो गई और दोनों अलग-अलग हो गए ।
सविता और धीरेन्द्र ने सिर पीट लिया क्या करें आजकल बच्चे रिश्तों को खेल समझते हैं उसकी अहमियत नहीं समझते। धीरेन्द्र जी सविता जी से बोले बताओ अब क्या करूं इस बेटे का कैसे जिंदगी गुजरेगी आगे। पहली शादी से तो पट नहीं पाई अब तक ऐसे बैठा रहेगा । आखिर दूसरी शादी तो करनी ही पड़ेगी।
हां आजकल बच्चों को समझना टेढ़ी खीर है । बहुत परेशान रहती थी सविता। तलाक के दो साल बाद फिर लड़की ढूंढी जाने लगी । फिर बहुत देखने पर एक लड़की पसंद आई गरीब परिवार से थी । फिर हर वक्त बेटे को बैठाकर समझाते रहते थे मम्मी पापा कि देखो बेटा जब तक हम दोनों है तुम्हारी फिर से शादी करा दे रहे हैं लेकिन ये हर बार ऐसा नहीं हो सकता ।
रिश्तों को निभाने के लिए बहुत से समझौते करने पड़ते हैं ।इस तरह बात बात में कहा सुनी होगी और लड़ाई झगडे होगे तो कैसे चलेगा ।लडों झगड़ों लेकिन बात बाहर न जाए खुद ही निपटा लो । बेटा चुपचाप बैठा सुनता रहता था पता नहीं सुन भी रहा है कि नहीं ।
फिर सिद्धार्थ की दूसरी शादी हो गई ।जब भी बहू का कोई फोन आता सविता डर जाती फिर कोई बात हो गई क्या । तीन चार महीने ठीक ठाक निकल गए तो दोनों पति-पत्नी को कुछ तसल्ली हुई ।
और अब बहू प्रेगनेंट थी तो बेटा अच्छे से ख्याल रख रहा था ।और फिर बहू ने एक नन्ही सी बेटी को जन्म दिया घर में खुशहाली आ गई।अब बेटा घर का बहू का बच्ची का खुब ख्याल रखता है ।अब लडने झगड़ने का समय ही नहीं मिल पाता।
पाठकों कभी कभी पति पत्नी दोनों ही एक ही स्वभाव के मिल जाते हैं कभी कभी दोनों गुस्से वाले भी तो किसी एक से कोई बात बर्दाश्त ही नहीं होती और दोनों में से कोई दबना नहीं चाहता और छोटी सी बात बहुत बड़ा रूप ले लेती है । अगर कोई बात पर कोई बहस हो भी रही है तो यदि एक थोड़ा शांत हो जाए तो झगड़ा आगे न बढ़ पाए लेकिन नहीं ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
26 जून। रिश्तों की मर्यादा