समझौता अब और नहीं – माधुरी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

मालिनी चाय का कप लेकर अपने घर की बालकनी में आ बैठी,चाय सिप करते करते देखा कि हर कोई बस भागा चला जा रहा है,जैसे कोई ट्रेन पकड़नी हो,फिर खुद ही मुस्करा दी। पिछले पन्द्रह दिनों से वह भी तो भाग हीरही थी।पिछले कुछ दिनों से लाइफ में इतनी भगदड़ की मची रही कि सुकून से चाय पीना भी नहीं नसीब हुआ।

भगदड़ तो मचनी ही थी। उसके एकलौते बेटे यश की शादी जो थी,और शादी का सारा जिम्मा उसअकेली के कंधों पर ही तो था,यह अलग बात थी कि यश व अनीता ने काम वांट लिए थे।अनीता उसकी होने बाली बहू का नाम है।यश को उसकी पसंद की लड़की अनीता को बहू वना कर वह खुद भी काफी हल्का महसूस कर रही थी।

दरअसल मालिनी एक डिग्री कॉलेज में फिजिक्स की प्रोफेसर थी और अनीता भी उसी कॉलेज में पढ़ती थी, बल्कि। वह भी उसके क्लास की ही स्टूडेंट थी साथ ही मालिनी की फेबरेट भीशायदइसका कारण अनीता का मिलनसार स्वभाव व पढाई में तेज होना हो। इसी कारण जब उसके बेटे यश ने मालिनी के सामने अनीता से शादी करने की चाहत जताई तो मालिनी ने अपनी स्वीकृति देने में जरा भी देर नही लगाई।

यश की शादी की तारीख फिक्स होते ही मालिनी ने अपने कॉलेज से पन्द्रह दिनों की छुट्टी ले ली।कितना सारा काम शादी का उस अकेली को ही पूरा करना था।बहू के गहने उसकी शॉपिंग, रिश्तेदारों की लिस्ट,उनकादेनालेना, कैटरिंग का हिसाब, उसे मैन्यू बताना कि क्या क्या बनाना है।घर की डैकोरेशन आदि आदि।।

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मालिनी शादी के कामों का ब्यौरा देखही रही थी कि।पंडित जी शादी के समय हबन आदि कराने के लिए जिस सामग्री की जरूरत पड़ेगी उसकी लिस्ट बनाने आगए।पंडित जी शादी के समय होने बाला हबन के सामान की लिस्ट मालिनी को लिखबा ही रहे थे कि यश ऑफिस से आकर वहीं बैठ गया और कहने लगा कि पंडितजी दो लोगों की शादी के लिए इतना तामझाम क्यों?तिस पर पंडित जी कहनेलगेकिबेटा शादी सात जन्मों का बंधन होता है अतः सारे काम बिधि बिधानसे हीपूरेहोने चाहिए।

मालिनी पंडित जी के कहे शब्दों को सुन कर चौंक जाती है,उसके मन में कुछ दरक सा जाता है, मालिनी ीीसोचने लगी कि उसकी शादी भी तो अजय के साथ पूरे विधि विधान से ही हुई थीं,तो फिर ऐसा क्यों हुआ।सात जन्म तो क्या वह तो अजय के साथ सात साल तक भी चैन से नहीं रह पाई। शादी के कुछ दिनों बाद ही अजय का मुखौटा उतर गया था,

चूंकि मालिनीएक डिग्री कॉलेज में लेक्चरर थी तो सहकर्मी पुरुष लैक्चरार भी होते थे, स्टाफ रूम में खाली समय मैं बिबिध विषयों पर चर्चा भी होती रहती थी, पूरबभी इसी कॉलेज में कैमिस्ट्री का लैक्चरार था, चर्चा करते समय मालिनी के बिचारों व पूरब के बिचारों से आपस में काफी समानता होती थी इतना ही नही ही कभी कभी साथ चलते चलते किसी बिषय पर चर्चा करते करते मालिनी घर तक आपहुंचती,

तो आग्रह करके पूरब को चाय पीकर जानें को कह देती।एक दो बार अजय के घर आजाने तकपूरब को मालिनी के साथ बैठा देख करअजय ने मालिनी के साथ बदसुलूकी का व्यबहार किया व उसके चरित्र पर लांछन भी लगाया।

यदि किसी दिन कॉलेज से घर लौटने में देर हो जाती और अजय पहले घर लौट आता तोमालिनीके चरित्र पर लांछन लगाने लगता। कुछ दिनों तक तो मालिनी ने यह सबसहन किया कि किसी तरह उसका घर परिवार ठीक से चलता रहे। सांसारिक धर्म निभाते हुए वह एक बच्चे की मां भी बन गई थी।अजय का व्यवहार मालिनी के प्रति दिनों-दिन खराब होता जा रहा था।अब तो अजय कभी कभी मालिनीपर हाथ भी उठा देता,तीन साल का यश मालिनी पर पिता को हाथ उठाते देख सहम जाता फिर कभी मालिनी के पीछे छिप जाता या रोने लगता।

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मालिनी अजय के इस तरह के व्यवहार से तंग आचुकी थी, कितना सहती आखिर सहने की भी तो एक सीमा होती है।एक दिन इस सबसे तंग आकर मालिनी ने अजय का घर छोड़ दिया।अबतक यश दस साल काहोचुका था।

मालिनी ने कहीं पीजी में अपने रहने का इंतजाम कर लिया और किसी कोचिंग सेंटर में नौकरी करने लगी,साथ ही कुछ ट्यूशन भी कर लेती, जिससे जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ गई थी।यश अब बारह साल का हो चुका था।मां को इतनी मेहनत करते देखकर कभी कभी मां की गोद में सिंर रख कर रो पड़ता।

मालिनी की मेहनत रंग लाई और उसे इस कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी मिल गईं।

इसी कॉलेज में नौकरी करते करते उसेदसेकसाल हो चले थे,इसी नौकरी में एक ओर उसे अच्छी सैलरी दी ,जिससे वह आर्थिक रूप से मजबूत महसूस करने लगी साथ ही अनीता जैसी स्टूडेंट से भी मुलाकात कराई जो अब उसकी बहू बनने जारही थी साथ ही पूरव जैसा मनमौजी दोस्त भी मिला।

मालिनी जब बेटे यश की शादी कीतैयारियों में व्यस्त थी तो उसके फोन पर एक नम्बर फ्लैश हुआ,मालिनी के चेहरे पर झुंझलाहट आगई ,फोन अजय का था,चूंकि अभी तक मालिनी व अजय का तलाक नही हुआ था ।उसने तुरंत फोन यश को पकड़ा दिया,अजय ने पूछा,नीड ऐनी हेल्प तिसपर यश ने गुस्से से जबाव दिया,पापा आप हम लोगों को अकेले क्यों नही छोड़ देते।जब आपकी हेल्प की जरूरत थी तब तो आपने मेरी मां को बहुत तंग किया,अब हम लोग अपना काम अपने हिसाब से कर लेंगे,सो प्लीज़ आगे से फोन करके हमें तंग न करें।

यश का रिश्ता तय होते ही मालिनी कितनी सोच में पड़ गई थी कि सब कुछ कैसे होगा,लेकिन यश व अनीता ने मिलकर सब कुछ अच्छे के संभाल लिया ।सभी कामों को तीन हिस्सों में बांट लिया था। कुछेक काम मालिनी के हिस्से में भी आए थे,कुल मिला कर सब कुछ बहुत अच्छे से निपट गया था । शादी के बाद यश व अनीता हनीमून के लिए चले गए।घर में सन्नाटा सा पसर गया।मालिनी ने इस बीच अपने को व्यस्त रखने का भरसक प्रयास किया ,कभी मनपसंद म्यूजिक सुनती,तो कभी कोई अच्छी किताब पढ़ने का प्रयास करती, छुट्टियां खत्म होने में पूरे चार दिन बाकी थे। बच्चों के बिना घर एकदम सूना लग रहा था।अनीता ने घर में आकर उसके जीवन में खुशियां व सुकून दोनों भर दिए थे।

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मालिनी अपना मनपसंद उपन्यास लेकर पढ़ने बैठी ही थी कि उसका फोन बजा,फोन पर पूरब का नाम देखकर तुरंत फोन उठाया,पूरब ने कहा मालिनी बच्चे घूमने गए हैं तो तुम घर में क्यों अकेले बैठी हो।पारस टॉकीज में तुम्हारी मनपसंद मूवी लगी है, हम पंछी एक डाल के,दो टिकटें लेली हैं तुम तुरंत पंहुचो।

मालिनी तुरंत तैयार होकर टॉकीज पहुंच गई,मूवी देखकर फूड कोर्ट में खाना खाया ।

पूरब की कम्पनी में मालिनी अपने-आपको बहुत खुश व हल्का महसूस कर रही थी,ऐसा उसने अजय के साथ कभी महसूस नहीं किया था।

मूवी देख कर घर आकर उसके मन में विचारों का सैलाव उमड़ आया, क्या उसे अपनी शेष जिंदगी पूरब के साथ बिताने का निर्णय लेना चाहिए।अब तो यश की शादी करके वह अपनी जिम्मेदारियों से पूरी तरह मुक्त होचुकी है। क्या यश पूरब को स्वीकार कर पाएगा या अनीता उसके बारे में क्या सोचेगी।मन इसी ऊहापोह में उलझा था कि अनीताका फोन आया,मां हम लोग कल बापस आरहे हैं फिर मिलकर बातें करते हैं। बच्चों के घर वापस आने के बाद फिर से घर में रौनक छा गई।मालिनी व अनीता कॉलेज जाने लगे व यशअपने ऑफिस।

कॉलेज से लौटकर फ्रेश होकर अनीता दो कप चाय बनाकर ले आई और मालिनी के पास ही बैठ गई।अनीता ने महसूस किया कि मालिनी कुछ कहना चाहरही है लेकिन कह नहीं पा रही है।अनीता ने पूछा, क्या बात है मां ,ऐनी प्रोब्लम,आप कुछ परेशान सी हैं,आप मुझसे अपनी बात शेयर कर सकती हैं।

अनीता तुम लोगों के जाने के बाद मैने व पूरब ने मूवी देखी,फूड कोर्ट में खाना खाया ,जानती हो,पूरब ने सारी डिसेज मेरी पसंद की ही मंगबाई,मैने उस दिन पहली बार लाइफ में किसी को अपने लिए केयर करते देखा।सच बहुत अच्छा लगा मुझे पूरब की कम्पनी में। एक्चुअली आई फील स्पेशल फीलिंग फॉर पूरब, आई वांट टू वी बिद हिम फॉर ए लाइफ टाइम।

मालिनी के आखिरी शब्द यश ने ऑफिस से आते हुए सुन लिए,और एकदम भड़क गया,मां मैं ये सब क्या सुन रहा हूं ये क्या बकबास है,यदि कोई कम्पेनियन ही चाहिए तो पापा से सुलह करली होती, उन्होंने तो आपको कितनी बार वापस बुलाया था।

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मालिनी चुपचाप यश का चेहरा देखती रही,कि आज उसका बेटा इतना बड़ा हो गया है कि अपने फैसले मां को सुना रहा है जबकि इसी बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए उसने क्या क्या नहीं सहा।

अनीता तुरंत बोली,तुमको किसने अधिकार दिया मां की लाइफ के बारे में फैसला लेने का। क्या अपनी खुशी के लिए सोचना गलत है,तुमने ही तो मुझे यह सब बताया था कि मां ने कितना कुछ सहा है अजय अंकल के साथ।तुम पुरुष हो शायद इसीलिए मां के मनकी पीड़ा को नही समझ पाए। लाइफ इस ब्यूटीफुल जब हम इसे बिना किसी समझौते के जीऐ।मां को भी अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जीने का पूरा अधिकार है,फिर खुशियां उम्र की मोहताज नहीं होती। मां मैं आपके बिचारों से पूरी तरह सहमत हूं।मैं इसमें आपके साथ हूं जल्द ही आप व पूरब अंकल एक साथ होंगे लाइफ पार्टनर की तरह।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

समझौता अब और नही पर आधारित कहानी

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