कई दशक पहले की बात है जब आज की तरह नौकरी को इतना महत्व नहीं दिया जाता था। घर में बाग- बगीचा, खेती, कुआं, ट्यूबवेल,ट्रैक्टर जीप गाड़ी….इन सब से अमीरी की पहचान होती थी।
जयचंद्र एक पूंजीपति व्यक्ति थे। उनकी लगभग 150 बीघा जमीन थी। कई बड़े-बड़े बाग, तालाब, बहुत बड़ी कोठी, घर में नौकर चाकर, पक्का कुआं रहट के साथ, सिंचाई करने के लिए ट्यूबवेल सब थे। उनकी गिनती गिने-चुने पूंजीपतियों में होती थी। उनके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटा का नाम अपूर्व और बेटी का नाम संयोगिता था।
अपूर्व के घुंघराले बाल, रंग गोरा बहुत सुंदर था। दोनों भाई, बहन पढ़ाई में बहुत होशियार थे। जब अपूर्व बड़ा हुआ, तो पिता ने बेटे से कई बार अपनी संपत्ति को संभालने की बात की। अपूर्व का हमेशा यही जवाब रहता था….पिताजी मैं कुछ अलग करना चाहता हूँ..! उन्होंने एमए एलएलबी करने के बाद वकालत शुरू कर दी। वकालत भी उनकी अच्छी खासी चलने लगी।
संयोगिता के लिए एक डॉक्टर का रिश्ता आया और उसका विवाह डॉक्टर मुकुंद के साथ हो गया। ऐसो- आराम से पली बेटी का ससुराल भी बहुत अमीर था। डाक्टर मुकुंद की अपनी क्लीनिक थी। उनकी क्लीनिक के अलावा दूर दराज तक कोई दूसरी क्लीनिक नहीं थी, जिस कारण क्लीनिक बहुत चलती थी।
बेटी का विवाह होने के पश्चात घर खाली-खाली लगने लगा, तो अपूर्व की मांँ ने अपूर्व के लिए लड़की देखना शुरू कर दिया। उन्होंने बहुत लड़कियां देखी… पर वह हर लड़की में कुछ न कुछ मीन मेख निकाल कर इंकार करती रही।
दुष्यंत राज की इकलौती पुत्री का नाम था… सलोनी।
सलोनी इतनी खूबसूरत थी कि उसके आगे चांद भी फीका नजर आता था। कामकाज, पढ़ाई- लिखाई हर चीज में अव्वल थी।
अपूर्व की मांँ सलोनी को देखने उसके घर गई। सलोनी उन्हें एक नजर में भा गई। अपनी होने वाली बहू के घर दो दिन रुक कर सलोनी के कामकाज, व्यवहार से जब पूरी तरह से संतुष्टि हो गई, तब उन्होंने इस रिश्ते के लिए हांँ कह दी।
जयचंद्र की कोठी दुल्हन की तरह सजी थी तीन दिन तक गांँव वालों की चुल्ही न्योता थी…. सिर्फ चचेरे भाई शत्रुघ्न जी को छोड़कर। चचेरे भाई शत्रुघ्न जी के साथ खेतों को लेकर बहुत पुरानी रंजिश चली आ रही थी।
गांँव में बड़े-बड़े शामियाना लगाकर खाने का बहुत अच्छा इंतजाम किया गया। गांँव में चारों तरफ उत्सव का माहौल था सब नाच- गाकर अपनी खुशियां जाहिर कर रहे थे।
दूसरे दिन जयचंद्र गाजे- बाजे, बस, जीप, घोड़ा आदि से बारात लेकर दुष्यंत राज के दरवाजे पहुंचे। बरातियों को किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो, इस बात की दुष्यंत राज ने पूरी जिम्मेदारी ली और निभाई। बारातियों का स्वागत बहुत अच्छे ढंग से किया गया। जिसे लोग कई सालों तक भूल नहीं पाए।
अपूर्व और सलोनी ने एक दूसरे को जयमाला के समय स्टेज पर पहली बार देखा। दोनों ने एक दूसरे की फोटो तक नहीं देखी थी। अपूर्व, सलोनी को देखकर बस देखता ही रह गया, कुछ पल के लिए सुध-बुध ही खो बैठा। तभी जोर से ठहाकों के बीच किसी ने आवाज़ लगाई अरे.. दूल्हा जी!! दुल्हन के गले में जयमाला पहनाइए। आवाज सुनकर अपूर्व थोड़ा झेंप गया, और सकुचाकर मुस्कुराते हुए जयमाला सलोनी के गले में डाल दी। चारों तरफ फूलों की बारिश होने लगी।
विवाह संपन्न हुआ। राम सिया सी खूबसूरत जोड़ी को नजर न लगे सलोनी की मां ने नजर उतरी।
बारात वापिस गांँव आ गई। सलोनी बहू के खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे, सभी बहू को एक नजर देखने के लिए व्याकुल थे। जिसने भी देखा बस यही कहता- कि सलोनी जैसी खूबसूरत बहू इस गांँव में पहले कभी नहीं आई।
सलोनी जितनी खूबसूरत थी उतना ही सुंदर उसका व्यवहार था। घर के सभी नौकर -चाकर नई बहू की तारीफ करते हुए नहीं थकते थे।
अपूर्व अपनी नई नवेली दुल्हन को छोड़कर एक पल के लिए भी दूर रहना नहीं चाहता था लेकिन…. काम भी जरूरी है।
कुछ दिन के बाद दोबारा कोर्ट में जाना शुरू कर दिया। जैसे ही काम खत्म होता, तुरन्त दौड़े- दौड़े घर चला आता।
दिन, महीने, साल निकलते गए अपूर्व और सलोनी का प्यार दिन पर दिन गहराता चला गया। वह एक दूसरे के बिना नहीं रह पाते थे… ऐसा प्यार पति-पत्नी के बीच बहुत कम देखने को मिलता है।
तीन साल बाद एक दिन अपूर्व को सिर दर्द के साथ तेज बुखार हुआ, उस दिन वह कोर्ट में नहीं गए। घरेलू उपचार के बावजूद जब बुखार नहीं उतरा तो तुरंत डॉक्टर के पास दिखाया गया। न जाने उन्हें कौन सी दवा रिएक्शन कर गई उनका शरीर ठंडा होते-होते एकदम से ठंडा हो गया और उन्हें बचाया नहीं जा सका।
पूरे गांव में अफ़रा-तफ़री मच गई। जो भी सुनता उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं होता। घर वाले समझ नहीं पा रहे थे कि यह क्या हो गया है….! सलोनी रोते-रोते बार-बार बेहोश हो जा रही थी लेकिन…. उसे अपना अपूर्व कहीं नहीं दिखाई पड़ रहा था।
संयोगिता ससुराल से आई वह कुछ न बोलकर सीधे सलोनी पर निशाना साधते हुए बोली- कि इसने मेरे भाई को खा लिया। सलोनी कुछ नहीं बोली… सिर्फ अपनी किस्मत को कोसती रही।
क्रिया कर्म के बाद जब सलोनी के पिता वापिस अपने घर जाने लगे तो जयचंद्र ने कहा….अगर सलोनी अपने मायके जाना चाहती है तो उसे ले जाइए।
दुष्यंत राज ने जब सलोनी से घर जाने की बात कही तो सलोनी ने मना कर दिया। बोली पिताजी अब यही मेरा घर है। मेरे सास ससुर को मेरी जरूरत है मैं यही रहूंँगी…!!
सलोनी अपने कमरे में न जाकर घर में जहां तहां पड़ी रहती। कोई खाने के लिए जबरदस्ती करता तो खा लेती नहीं तो बस…. जिंदगी कट रही थी।
कई दिनों के बाद आज वह अपने कमरे में गई, तो कमरे की हालत देखकर सन्न रह गई। उसकी अलमारी खुली, और बक्सा का ताला टूटा पड़ा था। उसने अलमारी, बक्सा खोल कर देखा तो उसके सभी गहने, कपड़े गायब थे।
वह दौड़ती हुई अपने ससुर के पास गई, बोली- बाबूजी मेरे कमरे से मेरे कपड़े, गहने सब गायब हैं। इतना सुनते ही ननद गुस्से में बोली सब अपने मायके भिजवा दिए होंगे… और अब गायब होने का नाटक कर रही है।
“नहीं दीदी मैं तो अपने आप से ही बहुत परेशान हूंँ और यह सब मैं नहीं कर सकती हूंँ…!”
“तू ऐसे नहीं मानेगी…!”
यह मत सोचना इस घर में कोई नहीं है।
“अब तुझे बताना पड़ेगा कि गहना,कपड़ा कहांँ है..??”
यह कहते हुए एक डंडा ले आई।
बाबूजी आप कुछ बोलते क्यों नहीं, दीदी मेरे ऊपर इतना बड़ा इल्जाम लगा रही हैं।
जयचंद कुछ नहीं बोले और संयोगिता डंडे से सलोनी को पीटने लगी।
वह अपने बचाव के लिए सास के पास गई लेकिन सास तो अधपगली हो गई थी, वह एक तरफ बैठी शून्य निहार रही थी।
संयोगिता ने सलोनी को धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया। सलोनी अब जाए तो जाए कहांँ…?? न ही उसके बाद पैसा है और न ही कपड़े है। रोते-रोते वहीं रास्ते में बैठ गई। गांव वाले सब देख रहे थे लेकिन उनके घरेलू मामले में कुछ भी बोलना उचित नहीं समझ रहे थे।
संयोगिता ने कितनी चालाकी से अपनी भाभी के सभी कपड़े, गहने चुराकर अपने घर भेज दिए थे। यह सब कुछ उसी का किया धरा था, लेकिन बेचारी सलोनी पर उसके ही गहने, कपड़े गायब करने का इल्जाम लगा दिया।
क्या सितम है कि हम लोग मर जायेंगे. – कंचन सिंह चौहान : Moral Stories in Hindi
सलोनी के चचेरे ससुर शत्रुघ्न जी आगे आए और कहा- बेटा मेरे घर चलो…! सलोनी बोली नहीं चाचा जी हम कहीं नहीं जाएंगे अगर हो सके तो मुझे मेरे मायके पहुंचा दीजिए। शत्रुघ्न जी ने सलोनी को उसके मायके पहुंचा दिया। जब सलोनी के पिता ने यह सब जाना तब वह बहुत आग बबूला हो गये और बोले मैं समधी जी की ईट से ईट बजा दूंँगा…! उन्हें मेरी बेटी के साथ इतना अपमानजनक व्यवहार करने की हिम्मत कैसे हुई..?
सलोनी ने अपने पिता के सामने हाथ जोड़कर कहा…! आप उन्हें कुछ मत कहिए। वह लोग अपने बेटा के गम में बहुत दुखी हैं। पता नहीं सब गहने कपड़े कहांँ चले गए..??
गहना, कपड़ा का मुझे कोई अफसोस नहीं है जहां मेरा हीरा जैसा पति चला गया तो यह(गहना, कपड़ा) कंकड़, पत्थर हमारे किस काम के है।
“एक दिन दुष्यंत राज सलोनी से बोले बेटा तुम्हारी पूरी जिंदगी पड़ी है मैं चाहता हूं कि तुम दूसरा विवाह कर लो…!”
सलोनी तपाक से बोली- नहीं पिताजी मैं ऐसा नहीं कर सकती हूँ। मुझे मेरे पति ने बहुत मान- सम्मान, प्यार दिया है। मैं उसी के सहारे पूरा जीवन काट लूंँगी। एक बच्चा गोद ले लूंँगी जिसके सहारे पूरा जीवन कट जाएगा।
दुष्यंत राज अपने समधी जयचंद्र के पास मिलने गए। उन्होंने अपनी बेटी की मंशा को बताया। जयचंद्र एकदम से भड़क गए कि सारा गहना, जेवर चोरी करके यहां से चली गई, मैं उसे अपनी बहू नहीं मानता और वह कभी भी मेरे घर में कदम न रखें। आप भी जाइए इस घर से…?
इस बात को लेकर दोनों के बीच बहुत कहा सुनी हुई, और… रिश्ता लगभग टूट ही गया।
जयचंद्र की आंखों में अपनी बेटी की बातों की पट्टी बंधी हुई थी। जयचंद्र को अपनी बेटी की बातों पर ही विश्वास था।
दुष्यंत राज वापस घर आ गए और अपनी बेटी को वहां हुई वार्तालाप के विषय में बताया। सलोनी को बहुत दुख हुआ। बाबूजी मुझे इतना मानते थे अचानक उन्हें मेरे ऊपर इतना बड़ा अविश्वास क्यों हो गया…??
शत्रुघ्न जी की तीन बेटे थे बड़े बेटे का विवाह सलोनी की मौसेरी बहन रिमी के साथ तय हुआ। दुष्यंत राज अपनी पत्नी के साथ वहां जाने की तैयारी करने लगे और सलोनी को भी जाने के लिए दबाव बना रहे थे। सलोनी अनमने मन से जाने के लिए तैयार हो गई।
विवाह बहुत धूमधाम से हुआ। विवाह की रस्में खत्म होने के बाद शत्रुघ्न जी ने दुष्यंत राज से कहा मेरी बहू सलोनी नहीं दिखाई दे रही है। थोड़ी देर में सलोनी ने शत्रुघ्न जी के पैर छूकर प्रणाम किया। शत्रुघ्न ने दुष्यंत राज से कहा अगर आप उचित समझे तो मेरे मझिले बेटा रोहन का विवाह सलोनी के साथ कर सकते हैं। यह कहते हुए
तुरंत शत्रुघ्न जी ने रोहन को आवाज़ लगाई।
रोहन को दुष्यंत राज से परिचय करवाया। रोहन ने इसी साल एमबीबीएस कंप्लीट किया है… अभी इंटर्नशिप कर रहा है।
शत्रुघ्न ने रोहन को सलोनी के विषय में बताया। रोहन ने भी इस रिश्ते के लिए हांँ कर दी। इसके बाद सलोनी से भी राय ली गई। सलोनी इस उधेड़बुन में बस इतना ही बोली…. आप बड़े लोग जैसा उचित समझे।
कुछ महीनो के बाद रोहन और सलोनी का विवाह हो गया। सलोनी दोबारा दुल्हन बनकर उस गांव में आई…. जगह नहीं बदली, सिर्फ रास्ते बदल गए….!
सलोनी की जिंदगी में दोबारा बहार आ गई। सलोनी की आंँखों में खुशी के आंँसू छलक आए। रोहन ने सलोनी से वादा किया कि वह कभी भी उसकी आंखों में खुशी के आंसू छोड़कर, और कोई आंँसू नहीं आने देगा। तुम्हारा हर एक आंसू मोती के समान कीमती हैं।
– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित, मौलिक अप्रकाशित
हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल
#आँसू बन गए मोती