दोनों परिवार एक दुसरे से अनजान थे। अमित और अनिशा, दोनों सोशल मिडिया पर एक दुसरे से मिले थे। अनिशा मुंबई में रहती थी। अमित भी मुंबई में ही रहता था, लेकिन आजकल वह कंपनी के काम के लिए हैदराबाद गया हुआ था। आज होली मनाने अपने घर मुंबई आया था। अमित को परिवार के साथ रहना अच्छा लगता था। सबके साथ त्यौहार मनाने का आनंद विरला होता है।
दोनों ने अपने परिजनों को एक दुसरे के बारे में बता दिया था। राधे श्याम मंदिर में मिलना तय हुआ था। एक पंथ दो काज हो जायेंगे। मंदिर में दर्शन किए जाए, और मिलना भी हो जाए।
आज वे दोनों पहली बार मिले थे। प्रेमविवाह हो या परिवार जन ने तय की
हुई शादी, जब तक आचार-विचार, सोच -व्यवहार में ताल-मेल न हो, पति पत्नी का रिश्ता आनंददायी नहीं हो सकता।
दोनों पढे लिखे, कामकाजी थे। संयुक्त परिवार था अमित का। वह चाहता था, अपनी सहचरी मिलनसार, स्नेहिल और सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करनेवाली हो। घर का वातावरण सौहार्दपूर्ण रहे। परिणीता बहना को कभी परायापन महसूस न हो। पीहर का भरपूर प्यार उसे मिलता रहे।
माता पिता के साथ वह भी सहज रहे।
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” ईश्वर की कृपा से हमारे पास सबकुछ है। आप चाहो तो अपनी नौकरी करो, या आराम करो। सर्वथा आपका फैसला होगा। प्रेम से रहो, सबके साथ हिल-मिलकर रहो। जितना आप स्नेह दोगी,
कई गुना पाओगी।”
” हमारे खानदान में लेने-देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो, इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।”
” मुझे आपकी सादगी बहुत पसंद आयी।”
“मेरी हां है। होली का रंगोत्सव है। कहो तो रंग लगा दूं?” अमित ने अपने मन की बात कह दी। आंखों ही आंखों में इशारे हुए।
शरमाती अनिशा के गोरे गालों पर प्यार से गुलाल लगा दिया उसने। उन्मुक्त हंसी और मतवाले नैनों से निहारा उसने। पलभर ठिठकी, और अगले ही पल उसके आगोश में समा गयी। स्वर्ग सुख आनंद अनुभूति में डूबे थे दोनों कि बडी दीदी निहारिका ने शरारती अंदाज में रंग लगाते दोनों को बधाई दी।
” प्रणय मिलन हो गया हो तो चले, भजिया और ठंडाई आपका इंतजार कर रही हैं।”
सलीके से सजा घर, मीठी मनुहार से अनिशा के माता पिता संतुष्ट थे।
आपसी बातचीत में वे व्यस्त थे। अमित अनिशा को अपना कमरा दिखाने ले गया।
” वाह…,इतनी सुंदर चित्रकारी?”
“आपने बताया नहीं आप कलाकार हो।”
“आपने भी तो नहीं बताया, आप कवि हो।”
झेंपते हुए अनिशा ने पुछ लिया,
“आपको किसने बताया?”
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गंभीर होते हुए अमित ने अनिशा का हाथ थामते हुए कहा,
” अनु, अब जब हमने जीवनसाथी बनने का निश्चय किया है, हम एक दुसरे से सब बातें बतायेंगे। विश्वास की नींव पर बना रिश्ता हमेशा सुखदायी होता है।”
” खोखलापन नहीं चाहिए हमें जीवन में।”
” जीवन का सफर सुहाना हो भैया भाभी।”
हंसते हुए दीदी ने कहा,
” कब से दरवाजे पर टकटक कर रही हूं।”
” चले रोमियो ज्यूलियेट? सब आपका इंतजार कर रहे हैं।”
हाथों में हाथ थाम दोनों एक दुजे में खोये हुए थे।
प्रेम रंग में सराबोर हुआ था मन। दीदी की आवाज से झट से छोड दिया हाथ। अनिशा शर्म से लाल हुए जा रही थी।
दीदी के साथ आकर दोनों ने
सबसे पहले प्रभु जी का वंदन किया।
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अपने होनेवाले सास ससुर, माता पिता, दीदी, जिजाजी से अनिशा ने आशिर्वाद लिया।
अमित से बार-बार नजरें भिड रही थी। क्या यही प्यार होता है?
मन ही मन अपने सौभाग्य पर खुश हो रही थी वह।
मनपसंद परिवार से रिश्ता जुडा है जीवनभर का।
रंगारंग होली पर अमित के प्रेम रंग में रंग गया था अनिशा का मन।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र \
#हमारे खानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्रेम और अपनापन हो इस पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है