माँ का त्याग – चाँदनी झा
“तकदीर बदल दिया तुमने बेटा, मुझे तुम पर गर्व है।” मीनाजी के इतना कहते ही छोटी,…अतीत में खो गयी, पूरे घरवाले का विरोध कर मुझे स्नातक करवाया माँ ने। घरवालों की मानसिकता, बेटी की शादी कर छुटकारा पाओ, से लड़ी। मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया, मेरी पढ़ाई के खर्च के लिए सिलाई करती, मुझे ट्यूशन पढ़ाने केलिए प्रेरित किया। आज मैं अपने मेहनत से ज्यादा माँ के त्याग और प्रेरणा के कारण, आईपीएस जैसे परीक्षा पास कर पाई हूँ। सारे घरवाले इसकी सफलता से खुश हैं, पर माँ के त्याग का मोल सिर्फ छोटी समझ पा रही थी।
चाँदनी झा
तकदीर – डाॅ संजु झा
कुंभ के मेले में ठंड में खुले बदन,नंगे पैर, गले में मोतियों की रंग-बिरंगी मालाएं,नशे का सेवन करते हुए देखकर आई आईटीयन अभय सिंह की मां की विकल-विह्वल अंतरात्मा सोचती होगी -” शायद ईश्वर कभी-कभी हमारे जीवन में बदलाव लाने के लिए चमत्कारिक घटनाओं को अंज़ाम देता है।बालपन से ही बेटे के जिज्ञासु मन में अनन्त सवाल थे, जिसके जवाब उसे न मिले और वह मोक्ष प्राप्ति मार्ग पर चल पड़ा। अभी भी फूलों की सुगंध की भांति घर में चहुंओर उसकी खुशबू व्याप्त है।वह आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़ा,यह शायद गर्व का विषय हो सकता है, परन्तु अपने जन्मदाता के अरमानों पर तुषारापात कर यूं बदनाम करना कदापि सही नहीं है। शायद नियति को यही मंजूर है।ईश्वर की खोज में भटकना उसकी तकदीर का ही लेख हो!”
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा। स्वरचित
तक़दीर – रश्मि प्रकाश
“अब बस करो…देख रही हूँ दस दिन से अपनी तक़दीर को कोस रही हो…हिम्मत है तो खुद अपनी तक़दीर से लड़ो और अपना और अपने बच्चों का सोचो… बंद करो दूसरों के आगे हाथ पसारना।” ग़ुस्से में शकुंतला देवी ने अपनी सहायिका को डाँटा
“ पर मेमसाहेब मैं क्या करूँ….मेरी तक़दीर में निकम्मा मर्द लिखा और तीन बच्चों का भविष्य… आपके यहाँ काम करके कितना कमा लूँगी कितना बचा लूँगी…पहले वो थोड़ा सुनता भी था मज़दूरी कर के कमाता था पर अब पीने खाने की लत ने कहीं का नहीं छोड़ा ।” रोते रोते कांता ने कहा
“ याद रख जब कोई मदद करने वाला नहीं होता खुद की मदद खुद करनी पड़ती है… कल यहाँ से काम करने के बाद थोड़ा वक़्त कहीं और काम करने जाना और मेहनत कर अपनी तक़दीर लिख।” शकुंतला देवी प्यार से बोली
कांता ने और मेहनत कर के अपनी तक़दीर बदल ली बच्चे ज़्यादा पढ़े तो नहीं पर अपने पैरों पर खड़े हो कर अब उसका सहारा बन गए थे
रश्मि प्रकाश
नई साड़ी – लतिका श्रीवास्तव
देखिए जी अपने बेटे की करामात।मेरी तो #तकदीर फूट गई जो तेरे जैसे लड़के को पैदा की। सोचा था बड़ा होकर सब जगह मेरी नाक ऊंची करेगा कही बाहर जाकर नौकरी करेगा पर ये तो यही घर में घुसा रहता है अब यही घर में दुकान खोल के बैठ गया है .. और आज अपनी पहली कमाई से मेरे लिए नई साड़ी लेकर आया है… करम जले अपनी बीबी के लिए लेकर आना था तेरी बीबी की तकदीर भी फूटी ही है मां की बड़बड़ाहट ऊंची होती जा रही थी।
तुम्हारी फूटी होगी तुम्हारी बहू की भी फूटी होगी लेकिन मेरी तकदीर तो तेरे जैसी मां को पाकर एकदम सूरज जैसे चमके है लंबे तगड़े सोमल ने नई साड़ी में लपेट कर अपनी छोटी दुबली मां को दोनों बाहों में उठा लिया तो मां का क्रोध दुगुना हो गया नीचे उतार मुझे … पिता जोरो से हंसने लगे।
क्यों नीचे उतारूं अरे मां तू ही तो कहती है नाक ऊंची करने को। नाक क्या मै तो अपनी पूरी मां को ही ऊंची कर सकता हूं …ये देख कहते हुए उसने मां को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठा दिया और गोल गोल घुमा कर जोर से हंसने लगा।
वहीं बैठे पिता बहू के हाथ से चाय लेते हुए मां बेटे को देख आनंदित हो तकदीर पर गर्व कर रहे थे।
लतिका श्रीवास्तव
तकदीर – अमित रत्ता
दो वक्त की रोटी को मोहताज वो साधारण सी लड़की मेले में माला बेचने आई थी। भगवान से यही मांग रही थी कि आज कुछ मालाएं बिक जाएं तो रोटी का इंतज़ाम हो। मगर उसे क्या पता था भगवान आज उसकी तकदीर बदलने वाले हैं। एक जोहरी की नजर उसकी नीली आंखों पर क्या पड़ी उसने पूरे को उन आंखों में डुबो दिया। कलतक जो लोग उसकी परछाई से भी दूर रहते थे आज उसके साथ फोटो के लिए लाइन लगाए खड़े थे। किसी ने सच कहा है तकदीर कब किसको कहाँ पहुंचा दे कोई नही जानता ईश्वर के सिवा।
अमित रत्ता
अमित रत्ता अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश
तकदीर – उमा महाजन
‘नमस्ते मैम !’ सुनकर वे चौकी।
‘ मैम! पहचाना मुझे ? मैं सनातनधर्म स्कूल की कैंटीन में काम करती थी। रैलियों में एकत्रित सभी स्कूली अध्यापकों के लिए मैं ही चाय-नाश्ते का प्रबंध करती थी।आप रिटायर हो गईं ?’
‘हां,लेकिन तुम यहां ?’ उन्हें तुरंत उस विधवा मां का शिष्ट व्यवहार याद आया।
‘दरअसल मैनेजमेंट ने आपसी झगड़ों में मुझे कैंटीन से निकाल दिया था।तब मैंने अपनी तकदीर को बहुत कोसा,लेकिन बच्चों की खातिर मैंने इस अहाते में ही चाय का खोखा डाल लिया।’ वह मुस्कराई।
‘और बच्चे ?’
‘बेटा दसवीं और बेटी बारहवीं में है। अहाते के आसपास की सारी दुकानों पर सुबह-शाम मैं ही चाय पहुंचाती हूं।’
उसकी कर्मठता में छिपी तकदीर के प्रति वे नतमस्तक थीं।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब।
“तकदीर क्या है” – हेमलता गुप्ता
सुंदरता और शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ अवनी को अस्वीकार कर जब शुभम ने साधारण सी किंतु व्यावहारिक और संस्कारी आस्था को पसंद किया तो अवनी का घमंड पल भर में टूट गया और सभी ने शुभम की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा! तब शुभम ने कहा… मुझे शोपीस नहीं बल्कि जीवन संगिनी चाहिए जो मेरे सुख-दुख में भागीदार हो और वह सिर्फ आस्था हो सकती है! तकदीर भी कभी-कभी ऐसे खेल दिखाती है जिसे कोई नहीं समझ सकता!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
गागर में सागर शब्द प्रतियोगिता “तकदीर”
*भाग्य और पुरूषार्थ* – बालेश्वर गुप्ता
कार के शोरूम में बैठा अनुज तेजी से 14 कारो जो एक मोबाइल कंपनी ने अपने अधिकारियों के लिये खरीदी थी, के पेपर तैयार कर रहा था।तभी मोबाइल कंपनी के बड़े अधिकारी श्रीवास्तव बोले अनुज यहाँ शो रूम में तीन हजार की नौकरी में क्यों जिंदगी खराब कर रहे हो?तुम में स्प्रिट भी है और काबलियत भी,यह मैं अच्छी तरह देख भी रहा हूँ और परख भी रहा हूँ।कल इंटरव्यू के लिये आ जाना।
अनुज ने इंटरव्यू दिया और तीन हजार मासिक वेतन वाले अनुज को 18 हजार रुपये मासिक की प्रतिष्ठित जॉब मिल गयी। 20 वर्ष के अंतराल में आज अनुज 50 लाख रुपये वार्षिक तो आयकर का ही भुगतान करता है।भाग्य के साथ पुरुषार्थ के संगम का प्रतीक बन गया है अनुज।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
सच्ची घटना
तकदीर – सीमा गुप्ता
बचपन से ही अभावग्रस्त जिंदगी जीने वाले सुशील में संघर्ष और संतोष जैसे गुण स्वत: विकसित हो गए। परिश्रम और लगन से सरकारी विद्यालय से पढ़कर भी उसने स्वयं को काबिल बना लिया।
फिर वह निष्ठा और समर्पण से अपने छोटे भाई-बहनों की जिंदगी संवारते हुए अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधारने में जुट गया।
उसकी उन्नति से उसके कुछ निकट संबंधियों को द्वेष होने लगा। वही उसके रास्ते में विघ्न डालने लगे और उसके बने-बनाए काम बिगाड़ने लगे।
लेकिन वह फल की चिंता किए बिना अपने कर्म करता रहा। लोग उसका एक रास्ता बंद करते तो ईश्वर दूसरा रास्ता खोल देते। अपने सद्कर्मों से वह अपने लक्ष्यों को पाने में सफल हुआ।
किसी ने सच ही कहा है कि तकदीर तो कर्मों से बनती है और तकदीर का लिखा कोई मिटा नहीं सकता।
-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)
विषय: #तकदीर
#गागर में सागर
अपनेपन की महक – रंजीता पाण्डेय
अमिता संयुक्त परिवार में रहने वाली बड़ी बहू थी | आज सुबह जल्दी जल्दी घर का सारा काम खतम कर के ,अपने बेटे को ,ले के निकल गई | बेटे का एडमिशन छठवीं में करना था | उसी की प्रवेश परीक्षा थी | जब बेटा गेट के अंदर चला गया तब अमिता ग्राउंड में बैठ गई | बहुत ठंड थी | अमिता ने सुबह जल्दी जल्दी में चाय तक नहीं पिया था | एक पति पत्नी उसके पास आ के बैठे|और बोले ,नमस्ते ,जी मै रिया ,आप? मै अमिता , रिया ने बोला मै भी अपने बच्चे को परीक्षा दिलवाने ही आई हूं | रिया पानी की बोतल ,चाय नाश्ता सब ले के आई थी | रिया ने चाय की बोलत जैसे ही खोला ,अमिता वहां से उठने लगी , रिया ने बोला बैठिए क्यों जा रही है? अमिता ने बोला ,आप लोग चाय नाश्ता कर लीजिए मै थोड़ा टहल के आती हू | रिया ने बोला रुकिए ,पहले ये अदरक इलायची वाली चाय पी लीजिए, फिर टहलने जाइयेगा | रिया ने इतने प्यार से बोला की अमिता मना नहीं कर पाई | और चाय ले के पीने लगी | रिया ने बोला कैसी लगी चाय? बोली ,चाय में अदरक इलायची से ज्यादा “अपने पन की महक , थी | दोनो हसने लगी |बहुत बहुत धन्यवाद | बोल के अमिता वहां से निकल गई |
रंजीता पाण्डेय