मौन सामंजस्य – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

 आज भी शाम की सैर के समय मेरा ध्यान अपनी सैर में कम और उस वरिष्ठ दंपति की धीमी गति से चल रही सैर की ओर ही अधिक था। उन पति महोदय के एक पैर में संभवतः कुछ तकलीफ थी क्योंकि वे अपने दूसरे पैर पर तनिक अधिक दबाव बनाते हुए अत्यंत धीमी गति से चल रहे थे। इकहरी काया वाली उनकी पत्नी हालांकि चुस्त-दुरुस्त थी, लेकिन वह भी पति की गति के साथ सामंजस्य बैठाते हुए धीमी गति से चल कर ही सैर कर रही थी। रोज की  तरह दोनों की गुफ्तगू का सिलसिला आज भी लगातार जारी था।

     मैं पिछले कई दिनों से उन्हें इसी प्रकार टहलकर परस्पर बतियाते हुए सैर करते देख रही थी। जब हम पति-पत्नी पार्क में प्रवेश करते तो वे दोनों पार्क का लगभग आधा चक्कर लगा चुके होते ,जो इस बात का प्रमाण होता कि वे हमसे काफी समय पूर्व ही वहां पहुँच चुके होंगे। हमें उस पार्क का पूरा चक्कर लगाने में लगभग बीस मिनट का समय‌ लगता था और  तेज गति से चलने के कारण मैं हमेशा ही पसीने से तरबतर हो जाती थी। 

     इस दौरान रोज, एक स्थान पर हमारा, विपरीत दिशा से आ रहे उस जोड़े से सामना होता और किसी अज्ञात आकर्षण से हम उन्हें एक औपचारिक नमस्ते के रूप में सिर को तनिक झुकाते हुए अपनी तेज गति से आगे निकल जाते। इस प्रकार ‘कलम-मित्र’ एवं ‘फेसबुक मित्र’ की भांति एक तरह से अब वे हमारे ‘सैर-मित्र’ बन चुके थे।

    न जाने क्यों इन पति-पत्नी की चाल में हमें सैर कम, अपितु गपशप करने का अवसर प्राप्त करना ही अधिक प्रतीत होता था, जो हमारे लिए एक जिज्ञासा का विषय था। अपनी सैर के दौरान हमने कई बार उन दोनों को सैर करने वाले कुछ अन्य परिचितों के पास रुककर खड़े रहते हुए गप्पें मारते भी देखा था। इससे हमारी जिज्ञासा और भी बढ़ गई थी। सो, आज  उस वरिष्ठ दंपति की सैर की अत्यन्त धीमी गति के प्रति उपजी जिज्ञासा का शमन करने के लिए, उनसे आमना-सामना होने वाली नमस्ते के वक्त हमने भी उन्हें रोक ही लिया।

      पति महोदय उन श्रीमान से बातचीत में व्यस्त हो गए और मैं श्रीमती जी की ओर घूम गई। थोड़े से सामान्य परिचय के पश्चात् ही मैं अपने असली मुद्दे पर आ गई , ‘आप लोग तो बड़े इत्मीनान से सैर करते हैं।आपको देखकर लगता है कि आपके बच्चे सैटल्ड हो चुके हैं ! हमें तो सैर भी एक ‘ जरूरी काम’ की तरह महसूस होती है। हम लोग तो इस समय भी भागम-भाग में ही रहते हैं और सैर‌ खत्म करके फटाफट घर पहुंचना चाहते हैं।’

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   ‘हां जी’ हमारे बच्चे भी सैटल्ड हैं और हम दोनों भी’ उन्होंने अपने पति की ओर देखकर हंसते हुए बड़े रसिक अंदाज में बात आगे बढ़ाई, ‘ दरअसल हम दोनों ही रिटायर्ड हैं । हमारी एक विवाहित बेटी अपने घर-परिवार में खुश है और बेटा-बहू हमारे साथ ही रहते हैं। वे दोनों नौकरी कर रहे हैं और हमारे पोता-पोती स्कूल में पढ़ रहे हैं, वे भी खुश हैं।’ 

      ‘ तभी आप दोनों काफी खुला समय लेकर सैर पर निकलते हैं ।’ मैं पूछना तो चाह रही थी कि आप दोनों को सैर करने के पश्चात घर वापिस जाने की जल्दी नहीं होती ? हमें तो घर के उत्तर दायित्व अपनी ओर खींचा करते हैं, किंतु शिष्टाचार वश मैं इस सपाट शैली का प्रयोग नहीं कर पाई।

   ‘हां जी ! बिल्कुल सही अनुमान लगाया आपने। वस्तुतः हमारे बहू-बेटा इस समय बहुत व्यस्त होते हैं। उनका यही समय अपने दोनों बच्चों को पढ़ाने का होता है । पढ़ते समय बच्चों की एकाग्रता अपेक्षित रहती है। इस समय घर में रहने से यदि हम आपस में बातचीत करते हैं या अपने कमरे में भी टीवी चलाते हैं तो उनकी एकाग्रता भंग होती है। अतः घर का  वातावरण शांतमय बनाने के लिए इस समय हम दोनों सैर पर निकल आते हैं

। इससे पूर्व दिनभर तो हम दोनों भी अपने-अपने कामों में व्यस्त रहते हैं। अतः इस सैर के बहाने हम दोनों को भी कुछ ‘अपना व्यक्तिगत समय’ मिल जाता है।  यहाँ से आराम से सैर करने के पश्चात् जब हम घर लौटते हैं, तब तक वे चारों बच्चे पढ़ने-पढ़ाने के काम से सर्वथा मुक्त हो चुके होतेे हैं। अतःरात का खाना हम सब लोग एक साथ मिलकर खा पाते हैं। तब डायनिंग टेबल पर हम‌ सबकी आपस में भी गपशप हो जाती है।’

       उनकी आपसी सामंजस्य के इस नए रूप को जान कर ‘वाह ! यह तो आप लोगों की खूब बढ़िया योजना है।’ कहकर उन्हें नमन करते हुए मैंने पति महोदय को चलने का संकेत दिया और हम दोनों सैर के लिए आगे बढ़ गए, किंतु एक भाव लगातार मेरा पीछा करता रहा कि बच्चों की उपलब्धियों में माता-पिता, गुरुजनों के नाम का उल्लेख तो बहुत होता है परंतु हमारी ‘वरिष्ठ पीढ़ी’ की ढलती सांझ के’ इस मौन योगदान’ का जिक्र इससे पहले मैंने न तो कभी किसी से सुना था और न कहीं पढ़ा ही है।

  हां, एक बात और कि अपने इस योगदान से इस दंपति ने अपने जीवन की ढलती सांझ को भी प्रकाशवान बना लिया है।

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब।

#ढलती सांझ

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