ढ़लती शाम – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi

पूरा घर अस्त व्यस्त कपड़ों से फैला हुआ था। असली घी के मेवा डालकर बनाए हुए लड्डू यूं ही परात में रखे हुए थे। माधवी अंधेरे कमरे के अंधेरे कोने में बैठकर पुरानी यादों में खोई आंसू बहा रही थी।

    कितने समय से वह राजेश के दुबई से आने का इंतजार कर रही थी। अपने दोनों जुड़वा पोतों को 5 साल के बाद देखने का उसमें कितना उत्साह था। जब से राजेश की चिट्ठी आई थी कि हम 15 दिन को दिल्ली आएंगे तब से ही माधवी ने बच्चों के खाने के लिए बहुत से पापड़ और चिप्स बनाए थे। आम का अचार तो उसने राजेश और बहुरानी के ले जाने के लिए अलग ही रख दिया था।

बेटी दिव्या को भी उसने राजेश के आने की सूचना दे दी थी। दिव्या मुंबई में रहती थी और वह वहां ही सेंट्रल स्कूल में अध्यापिका थी। उसके भी दोनों बच्चों की पढ़ाई एवं अपनी व्यस्तताएं थी। बच्चों की व्यस्तता में तो अब उसका भी आना कम हो गया था बस वीडियो कॉल ही होती थी। भाई भाभी के आने की सूचना जब माधवी जी ने दिव्या को दी तो उसने भी भाई से मिलने दिल्ली आने का कार्यक्रम बनाया।

   माधवी ने राजेश का कमरा बहुत अच्छे से सजा रखा था और जिस दिन राजेश आया  दोनों बहुत खुश हुए। वर्मा जी का अपना चार्टर्ड अकाउंटेंसी का  दफ्तर घर के पास ही था। वर्मा जी भी बच्चों के साथ समय बिताना चाहते थे। राजेश के आने के बाद माधवी जी तो अपने दोनों पोतों को देखकर हैरान रह गई 5 साल में ही वह कितने बड़े और लंबे हो गए थे। माधवी ने उनके खाने के लिए डाइनिंग टेबल पर बहुत सा सामान लगाया हुआ

था लेकिन उन दोनों बच्चों ने कहा कि हम तो एयरपोर्ट पर ही पिज्जा वगैरा खा कर आ गए हैं। आने के बाद राजेश ने सूचना दी कि हम परसों जालंधर जाएंगे क्योंकि प्रिया के चाचा की लड़की की शादी है। माधवी जी ने राजेश से कहा तुमने पहले तो बतलाया ही नहीं मैं तो सबके लिए बहुत सारा खाना बनाया हुआ है।

   अरे नहीं मां, आप क्यों इतना परेशान होती हो हमारे पास में वक्त कहां है शाम को तो मुझे प्रिया के साथ अपने मित्र रजत के पास जाना है और कल हम शादी के लिए कुछ थोड़ी तैयारी करेंगे इसलिए बाजार तक जाएंगे। अरे फिर तुम मेरे पास कब रुकोगे? माधवी के पूछने पर उन्होंने कहा मम्मी हम अगले इतवार तक आ जाएंगे फिर तो एक सप्ताह साथ रहेंगे ही। माधवी जी कभी अपने सामान को देखती और कभी बच्चों को।

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उनके दोनों पोते तो अपने मोबाइल में ही व्यस्त थे। प्रिया भी सफर की थकान उतारने अपने कमरे में चली गई थी औपचारिकता के कारण थोड़ी देर तो राजेश बैठा और फिर वह सब राजेश के दोस्त रजत के घर चले गए। वर्मा जी भी देख रहे थे की माधवी को यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था परंतु—-।

तीसरे दिन राजेश प्रिया और दोनों बच्चे जालंधर चले गए थे। घर फिर सूना सूना ही हो गया था कि तभी डोर बेल बजने पर माधवी जी ने देखा की दिव्या अपने भैया भाभी से मिलने के लिए आई थी। जब दिव्या को भैया भाभी के जालंधर जाने की सूचना दी तो उसे बहुत बुरा लगा। उसने पूछा आपने मुझे उनके जाने की सूचना क्यों नहीं दी हालांकि  माधवी जी खुद हैरान थी

कि तूने ही मुझे अपने आने की सूचना कहां दी थी? दिव्या सिर्फ 2 दिन के लिए ही आई थी उसकी मुंबई वापसी की हवाई जहाज की बुकिंग थी और वह भी दोनों दिन बाहर ही व्यस्त रही  फिर भी  अपनी मां के साथ काफी बातें की परंतु माधवी जी को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। एक सप्ताह बाद जब राजेश और बच्चे जालंधर से लौट कर आए

तो माधवी जी अपने बच्चों के साथ बहुत सा समय बिता कर बहुत सी बातें करना चाहती थी लेकिन वह 5 दिन भी कहां बीत गए पता ही नहीं चला। उनके वह शैतान से पोते अब बहुत समझदार हो सिर्फ अपने मोबाइल में ही व्यस्त थे। राजेश और प्रिया तो रोजाना कहीं ना कहीं घूमने में व्यस्त थे। माधवी जी ने राजेश के पसंदीदा  बहुत सारे लड्डू बना कर रखे थे।

लेकिन राजेश ने वह सब  ले जाने से मना कर दिया उसका पहले ही समान का भर बहुत ज्यादा था और अब वह लड्डू खाता भी नहीं है। अपने ही बच्चे अजनबी से लगे थे। वह आ भी गए और चले भी गए, माधवी का मन तो नहीं भरा था लेकिन फैला हुआ घर बच्चों के आने और जाने की सूचना जरूर दे रहे थे। बंद अंधेरे कमरे मैं बैठी माधवी पुरानी यादों में खोई हुई आंसू बहा रही थी।

   वर्मा जी ने कमरे की लाइट खोली और बड़े प्यार से माधवी को कहा अब समय पहले जैसा नहीं है। बच्चे अब यह सब नहीं खाते, तुम भी इतने दिनों तक काम करके बहुत थक गई होगी थोड़ा आराम करो। हमको यही खुशी होनी चाहिए कि हमने अपनी जिम्मेदारियां अच्छे से निभा ली और हमारे दोनों बच्चे बहुत सुख से और अच्छे से रह रहे हैं। तुम बहुत समय से कह रही थी ना अभी कीर्तन करवा लेना और प्रसाद के रूप में हम सबको लड्डू दे देंगे।

      मुझे याद है कि तुम कितनी अच्छी पेंटिंग्स बनाया करती थी। बिना वजह अवसाद  में मत जाओ अब जीवन की ढ़लती शाम  को वैसा ही सुंदर बनाओ जैसी कि तुमने एक पेंटिंग ढ़लती हुई शाम की बनाई थी। आसमान में चमकती आभा बहुत सुंदर नीला और लाल  रंग से रंगी पेंटिंग हमारे कमरे में भी लगी थी

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अब फिर से वैसी ही पेंटिंग बनाओ और अगले सप्ताह से मेरे साथ ऑफिस में ही चल कर बैठा करो मैं तुम्हारा सारा पेंटिंग का सामान मंगवाऊंगा पहले तो हम अपने ऑफिस को सुंदर बनाएंगे उसके बाद तुम्हारी पेंटिंग्स की एग्जीबिशन लगवाएंगे। हम किस्मत वाले हैं कि अपनी जिम्मेवारियों को पूरी करने के बाद अपने लिए भी समय निकल पाओगी।

   तभी फोन की बेल बजी फोन में राजेश और बच्चों ने वीडियो कॉल की थी वह माधवी जी को सूचना दे रहे थे कि दादी हम एयरपोर्ट पर पहुंच गए हैं।

सब कुछ अच्छा ही तो था बस माधवी ने ही निराशाजनक माहौल बना रखा था।उसके दोनों बच्चे उसे बहुत प्यार करते हैं।
    ऐसा ही सोचते हुए माधवी और वर्मा जी घर के प्रांगण में कुर्सी पर बैठकर ढलती हुई खूबसूरत शाम को देख रहे थे। जिसके बाद चैन की नींद में सोने वाली, मीठी यादों में खोने वाली खूबसूरत रात आएगी।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा

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