चमकते आंसू – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

तखत पर बैठी अम्मा के आंसू  रुक नही रहे हर कोई उनकी आंखों के सामने से चला जा रहा और वो लाचार बेबस असहाय सी वहीं की वहीं पड़ी  कुछ नही कर पा रही ।करें भी कैसे एक तो उम्र का तकाज़ा दूसरे निगोड़ी कई बीमारियों ने  घर बना लिया देह में ,

वो भी ऐसी कि जिंदगी के साथ ही जायेंगी चार छह दिन में जाने वाले नही ,तभी तो शरीर भीतर से खोखली हो गई है ऐसी कि  चार कदम भी मुश्किल हैं या ये कह लो कि अपना काम भर कर लेती हैं बस वरना घर काम के लिए घर में बच्चों ने नौकर लगा रखा है।

और आजकल तो मुई नौकरानी भी नही आ रही कई नौकरानियां छुट्टी पर हैं एकाध ही आ रही जिससे सारा काम चल रहा।

अरे भाई आये भी कैसे सब दूर दराज से आती है और इस समय तो क्या कहने चारों तरफ अफरा-तफरी मचरी है कही कोई साधन नही कही किसी का आना जाना नही भला कैसे कोई आये।

बस एक ही पास में है वही आकर सारे काम कर जाती है।

हुआ ये कि अम्मा को अपने बच्चों को पढ़ाने का बड़ा शौक था सो जैसे तैसे करके कम कमाई में भी बच्चों को पढ़ाई खूब ,अब पढ़ा दिया तो  नौकरी भी विदेश में मिली फिर क्या वही लड़की पसंद की और ब्याह कर लिया हलाकि रजामंदी अम्मा की भी थी ।पर हुआ ये कि वहीं के बासिंदा हो गये।

फिर तो कभी कभार चीज़ त्योहार पर आ जाते। पर रहना अकेले ही रहना पड़ता जबकि बच्चों ने कई बार अपने साथ रहने की जिंद  की पर इनका  मन ही नही लगता ,जाती हैं और दो एक महीने में वापस  आ जाती है।कहती है कि जिस घर में डोली उतरी उसी घर से हमारी अर्थी भी निकलेगी हम कहीं और नही जायेगे हमारा कर्म भूमि ही हमारा सब कुछ है ।

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दरसल हुआ ये कि बहुत कम उम्र में विधवा हो गई थी तो तीन बच्चों की परवरिश उन्होंने अपने दम पर किया ।

इसलिए इन्हें यही अच्छा लगता है।जबकि बच्चे बहुत ख्याल रखते है दिन में चार बार हाल लेते है ।सभी कामों के लिए नौकर भी लगवा रखा है और तो और एक नौकर जो अनाथ है और बचपन से ही यही पला वो घर में ही रहता है।

पर आज उन्हें अपने अपनों की कमी बहुत अखर रही जब सब को अपने अपने परिवार के साथ जप,तप,स्नान,ध्यान और पूजा के लिए उस ओर करोड़ो लोगों को जाते देख रही जहां पौरुख रहते कभी वो भी अकेले निकल जाया करती थी।और आज जाने से लाचार है।

सोचते सोचते जाने कब वो वहीं तखत पर लुढ़क गई और सो गई पता न चला पर  करीब दो तीन घंटे ही बीते होंगे कि उनके कानों में अम्मा……. अम्मा…….ये अम्मा ऐसे काहे परी हो चलो भीतर कि आवाज ने उन्हें चौका दिया।आंख खुली तो देखा उनका बड़ा बेटा सामने खड़ा था।जो सहारा देकर उन्हें उठाया फिर चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया।

इतने में अम्मा ने आश्चर्य से पूछा लल्ला तू कैसे सब खैरियत तो है ना।

और बिना बताये कैसे आया।

कुछ खास।

तो वो बोला हां अम्मा खास ही है अरे तुम्हें महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर स्नान करा ने से बड़ा और कौन सा काम हो सकता है।

हम सब तुम्हें कल नहलाने ले चलेगे इस पर वो बोली मतलब हम सब , क्या सब आये है इस पर बेटे ने कहा हां अम्मा हम सब आये है।

ये सुन अम्मा कि आंखों के आसूं जहां दुख से बह रहे थे वो चमकदार हो गए।

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सच देखते देखते उसके आंसू कब खुशी में बदल गए उन्हें खुद भी ना पता  चला।

इतने में सारे लोग सामने आ गए और अम्मा की खुशी का ठिकाना न रहा।

फिर क्या सभी बैठ कर संग खाये पिये  मस्ती किये और सुबह सबेरे जहां अम्मा तखत पर बैठी रो रही थी वही विहृ चेयर पर  बैठ महाकुंभ की मौनी अमावस्या नहाने निकल ली।

लेखिका : कंचन श्रीवास्तव

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