“साढ़े छः फुट के तुम्हारे पिताजी पगड़ी पहनकर सिर झुकाकर चलेंगे तो कैसे लगेंगे? तुम्हारा छोटा भाई क्या लोगो के तानो के बाद जी भी पाएगा? तुम्हारी माँ किसी से नजर मिला पाएगी? कल को हमारी बेटी कोई गलत कदम उठाएगी तो उसे कैसे रोकेंगे वो सवाल करेगी तो क्या जवाब देंगे?”
मुझे नही पता मैने सही किया या गलत मगर मुझे खुद से ज्यादा उसके घर की इज्जत प्यारी थी हालांकि मेरे लिए बो आसान नही था फिर भी न चाहते हुए भी मुझे वो फैंसला लेना पड़ा।
उस बक्त मेरी उम्र करीब बाइस साल थी डिप्लोमा करने के बाद मेरी नौकरी पँजाब के जालंधर शहर में एक प्राइवेट टेलीकॉम कंपनी में बतौर जूनियर टेक्नीशियन लग गई। नया शहर था एक दो दिन सस्ते से होटल में रहकर गुरुद्वारे में लंगर के सहारे काटे। काम पर अपने एक सहकर्मी परमिंदर सिंह से मेरी दोस्ती हो गई उसने मुझे किराए का कमरा दिलाने में मदद की। शहर से थोड़ा दूर एक गांव था
बहां पांच सौ रूपये का कमरा मिला। कमरा बहुत अच्छा था जिसका एक दरवाजा घर के आंगन की तरफ खुलता था तो दूसरा पीछे वाली गली की तरफ। हालांकि मुझे कहा गया था कि पीछे का दरवाजा न खोलें आगे से ही आने जाने की कोशिश करूँ। पहला रविवार था छुट्टी का दिन था तो सोचा थोड़ा कमरे की साफ सफाई कर लूं। मैंने पानी की बाल्टी से पूरा कमरा धो दिया और पानी निकालने के लिए गली वाला दरवाजा खोल दिया।
मैं कमरा धो ही रहा था कि एक ऊंचे लम्बे कद की लड़की हाथ मे कुछ किताबें लिए हुए गुजर रही थी। झाड़ू की आवाज सुनकर उसने पीछे मुड़कर देखा अनायास ही मेरी नजर भी ऊपर उठी और में उसकी तरफ देखते रह गया। बो थोड़ा आगे बढ़ी और दाईं तरफ का गेट खोलकर उसने घर के अंदर जाते हुए फिर मुड़के देखा। बो एक अलग सा एहसास था पहली बार उसे देखा था मगर ऐसा लग रहा था मानो जन्मों की जान पहचान हो। उसके बाद में उसके बारे में ही सोचता रहा रह रहकर उसका चेहरा उसकी आंखें नजरों के सामने घूम रहीं थीं।
उसके घर का गेट खुलते और बन्द होते समय आवाज करता था जो कि मेरे लिए किसी अलार्म की तरह था जैसे ही आवाज आती मैं जाली वाली खिड़की के पास खड़ा होकर देखता की शायद बो ही होगी। मगर कभी उसकी मां कभी पापा कभी भाई होता तो कभी कबार बो भी दिखाई दे जाती।
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बाहर से खिड़की के अंदर कुछ नही दिखता था मगर मुझे बाहर सब नजर आता था वो जब भी उधर से गुजरती उसकी नजर खिड़की की तरफ रहती। यूं ही काफी दिन उसे देख देखकर गुजर गए एक दिन गर्मियों की दोपहर का समय था उसके गेट की आवाज आई और मैं खिड़की के पास खड़ा हो गया और मानो मुहं मांगी मुराद पूरी हो गई उसने काला सूट काली सलवार और काला कड़ाई वाला दुपट्टा सिर पे रखा हुआ था यकीन मानो बो किसी अफसरा सी लग रही थी मैं उसे देखता ही रह गया और बो मेरे सामने से गुजर गई।
आज मैंने पक्का इरादा कर लिया था कि उसको पूछकर ही रहूंगा जो होगा देखा जाएगा। मैने जल्दी से एक कागज लिया और उसपर लिखा कि “माफी चाहता हूं इसे मेरी पहली और आखरी गलती मानकर माफ कर देना कसम से अगर आपकी ना होगी तो दोवारा कभी आपको परेशान नही करूँगा बस आप अपने घर मे बताकर मुझे पिटवाना मत। मुझे नही पता कि मुझे ये सब करना चाहिए या नही मगर मुझे गलत मत समझना मैं वायदा करता हूँ कि ये आखरी गलती होगी।
मैने पेन के साथ जाली में एक छेद किया और कागज को मरोड़कर छोटा सा करके छेद के पास रखकर इंतज़ार करने लगा वो थोड़ी देर में बापिस आई मैने जाली में हाथ मारकर उसका ध्यान अपनी तरफ करके बो कागज छेद में फंसा दिया उसने आगे पीछे मुड़कर देखा और झट से बो कागज पकड़कर अपने गले के पास दुपट्टे में छुपाकर थोड़ा मुस्कुराकर चली गली। मैं खुशी से पागलों की तरह खड़े खड़े अपनी चारपाई पर गिर पड़ा मुझे ऐसा लग रहा था कि आज मुझे दुनिया की सारी खुशी मिल गई हो। मैं बो एहसास शव्दों में बयान नही कर सकता।
अगले दिन सुबह बो घर के आगे वाली गली में झाड़ू लगाने के बहाने मेरे कमरे के बाहर तक आई मैं खिड़की से देखता रहा उसने दो चार बार मेरी तरफ देखा मगर उस दिन उसका देखना कुछ अलग था मानो की बो नाराज थी। मुझे लगा कि शायद बो मुझे पसंद नही करती है इसलिए मैं चुपचाप बैठ गया और काफी निराश था।
अगले दिन फिर जब बो झाड़ू लगाती हुई आई तो मैंने हिम्मत करके पूछा कि आपने कोई जवाब नही दिया क्या मैने कुछ गलत कह दिया। तो झाड़ू लगाते हुए बोली कि क्या लिखा था उसमे की अगर मैं पसंद करती हूं तो ठीक नही तो कोई बात नही? मतलब की तुम्हे कोई फर्क नही पड़ता ? मैंने कान पकड़कर कहा कि पहली बार किसी लड़की को ये सब लिखा है मुझे नही पता क्या लिखते हैं जो मन मे आया लिख दिया
क्योंकि मुझे डर लगता है यहां मार पड़ेगी तो बचाएगा कौन? बो थोड़ा मुस्कुराई और ओके बोलकर चली गई उसकी हंसी उसकी हां थी ये मैं समझ गया था अब तो उसके आते जाते कुछ न कुछ हेलो हाए हाल चाल पूछता रहता। हाल ये था कि दोनों एक दूसरे को देखने के बहाने ढूंढते रहते बो किसी न किसी बहाने से गली की दुकान में जाती और कुछ न कुछ बात करके जाती।
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अब मैं भी हर रविवार को कमरा पानी से धोने के बहाने पीछे वाला दरवाजा खोल देता बो दुपट्टे में छुपाकर कभी परांठा कभी साग कभी गुरुद्वारे से प्रशाद लाकर फटाफट पकड़ा जाती। समय गुजरता गया और हमारा प्यार बढ़ता चला गया एक दूसरे के बिना कुछ भी अच्छा न लगता। धीरे धीरे ये बात मेरी मकान मालकिन को पता चल गई शायद उसने खुद ही मेरी मकान मालकिन को ये सब बताया था
मैं अपनी मकान मालकिन को दीदी बुलाता था उसकी उम्र करीब पैंतीस की होगी और और घर के सभी लोग मुझे अपने घर के सदस्य की तरह ही समझते थे। एक दिन दीदी आई उसने कहा कि मुझे तुमसे कुछ पूछना था मैंने कहा जी बोलिये। तो बो बोली सच सच बताना क्या तुम्हारा उस लड़की के साथ कोई चक्कर है?
मैं हवाक से रह गया और न नही करता रहा बो बोली कि देखो कल को बात गांव में फैलेगी तो हमारे घर की इज्जत भी खराब होगी रही बात शादी की तो उसके पापा नही मानेंगे क्योंकि वो एक सिख धार्मिक स्थल में सेवारत हैं चाहकर भी वो इस रिश्ते को स्वीकार नही करेंगे बेहतर होगा कि तुम अभी से ये सब खत्म कर दो इससे पहले की ज्यादा देर हो जाए।
बात मेरी समझ मे आ गई थी मैने अब बातचीत कम कर दी और कोशिश करता कि उससे दूर रहूं पर उसके सामने रहते ये सम्भव नही था इसलिए मैने बो कमरा बदलने का मन बना लिया। मैने ये बात दीदी को बता दी कि अगले महीने से मैं कमरा बदल लूंगा।
अगली सुबह मैं ड्यूटी को तैयार होकर निकलने ही बाला था कि अचानक दीदी ने दरवाजा खटखटाया मैने खोला तो देखा दीदी और वो सामने मे खडी थीं दीदी ने उसका हाथ पकड़कर मेरे कमरे में भेज दिया और बोली जो बात करनी है करो मुझे परेशान मत करो मुझे बीच मे मत फंसाओ। बो अंदर आकर बोली कि सुना है कमरा बदल रहे हो मैने कहा हां। बो बोली क्यों? मैंने कहा कि मेरा आफिस अब कहीं और शिफ्ट हो गया है
जो काफी दूर है रोज आना जाना मुश्किल हो रहा है। बो बोली कि स्कूटर ले लो। मैंने कहा मुझे चलाना नही आता। बोली सिख लो। मैंने कहा कि यहां किससे सीखूंगा कौन सिखाएगा मुझे। बो बोली तो अब पक्का है कि आप यहां से जा रहे हो। मैंने धीरे से कहा कि हां। बो बोली ठीक है तो आज के बाद मुझसे बात करने की कोशिश मत करना। मैं एक बोझ अपने आंखों में दवाकर देर हो रही है कहकर निकल गया।
अब सुबह शाम में खिड़की में देखता मगर बो नजर नही आती थी मैं उसे समझाना चाहता था मगर मौका नही मिला। अगले महीने मैंने कमरा बदल लिया यहां गया बहां कमरा मानो मुझे खाने को दौड़ रहा था क्योंकि उसमें खिड़की नही थी यहां से मैं उसे देख पाता। जैसे कैसे मैंने रात काटी सुबह आफिस गया कुछ देर में मैडम ने कहा सर आपका फ़ोन है
कोई बात करना चाहता है मैने हेलो कहा तो सामने से आवाज आई” बदतमीज बताकर नही जाना था क्या बिगाड़ा था मैंने क्या गुनाह किया था क्या आपका जो ऐसी सज़ा देकर गए पूरी रात सो नही पाई मैं नही जी पाऊंगी ” अब कल का गुंवार मैं संभाल नही पाया और मेरी आँखों से आंसू बहने लगे
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जुवान खामोश हो गई कुछ भी कहने की सिथति में नही था जैसे कैसे खुद को संभाला और कहा कि सज़ा तुम्हे अकेली को नही मुझे भी मिल रही है मेरा क्या हाल है मैं बता नही सकता। कुछ देर बात की तो उसने कहा कि मैं जी नही पाऊंगी मेरे घरवाले नही मानेंगे आप बताओ कहाँ हो मैं आ जाती हूँ हम भागकर शादी कर लेंगे।
मैंने कहा किस किस से भागेंगे मां बाप से इस गांव से इस शहर से सारी दुनिया से मगर खुद से कैसे भागेंगे? कल को हमारे बच्चे होंगे उन्हें लोग ताने मारेंगे की तुम्हारी माँ भागकर आई थी वो पूछेंगे तो क्या जवाब देंगे? कल को हमारी बेटी होगी बो कोई गलत कदम उठाएगी तो उसे कैसे रोकेंगे बो पूछेगी की तुम खुद भागकर आए थे तो क्या जवाब देंगे?
तुम्हारे भागने के बाद तुम्हारे घरवालो का क्या होगा? साढ़े छः फुट के तुम्हारे पिताजी पगड़ी पहनकर सिर झुकाकर चलेंगे तो कैसे लगेंगे? तुम्हारा छोटा भाई क्या लोगो के तानो के बाद जी भी पाएगा? तुम्हारी माँ किसी से नजर मिला पाएगी? काफी देर समझाने के बाद जीभर रोने के बाद उसने फोन काट दिया अब उस टाइम मोबाइल तो थे
नही उसने पीसीओ से मेरे दफ्तर के नंबर से कॉल किया था मैंने बैक कॉल किया मगर बो जा चुकी थी। दिल मे एक मलाल तो है कि मैं उससे अपनी गलती की माफी नही मांग पाया मैंने सही किया या गलत मुझे नही पता मगर मैं हमेशा यही प्रार्थना करता हूँ कि बचपन की गलती को भुलाकर बो यहां भी हो खुश हो। दोस्तो आप ही बताओ क्या मैंने सही किया था या गलत??
अमित रत्ता
अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश