बड़ा दिल – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

सुवर्णा ऑफिस से आते समय अस्पताल में भर्ती हुई अपनी सहेली मीनल को देखने गई थी ।

सुबह घर से निकलते समय ही उसने प्रदीप को बता दिया था कि वह थोड़ी देर से घर पहुँचेगी क्योंकि उसे मीनल को देखने अस्पताल जाना है ।

प्रदीप और सुवर्णा में अच्छी तालमेल है दोनों मिलकर बच्चे की देखभाल और घर के सारे काम बिना किसी शिकायत के कर लेते थे ।

सुवर्णा मीनल से मिलकर घर के लिए निकल गई । वह एक कमरे के सामने से गुजर रही थी तो अचानक उसे लगा कि वहाँ बैठी हुई औरत को वह जानती है । इसलिए वह अपने कदम धीरे करके चलने लगी कि नर्स उनके कमरे में पहुँची और वह औरत नर्स से दरवाज़े की तरफ मुँह करके बात करने लगी थी कि सुवर्णा ने उन्हें पहचाना और एक फ़ोटो खींच लिया था ।

उसने घर पहुँच कर हाथ पैर धोए और कपड़े बदलते हुए देखा कि प्रदीप रीत को सुला रहे हैं । उसने सब्ज़ी दाल सुबह ही बना दी थी । प्रदीप ने ऑफिस से आकर चावल बना दिया था ।

सुवर्णा ने सबको गरम करके टेबल पर रख दिया था । प्रदीप ने देखा कि हमेशा पटर पटर बिना रुके बात करने वाली सुवर्णा चुपचाप अपना काम करती जा रही थी ।

जब दोनों टेबल पर बैठे तो प्रदीप ने कहा कि हाँ तो बता दे तुम्हारे दिल में कौन सी हलचल मची हुई है ।

सुवर्णा ने झट से अपना सर उठाकर प्रदीप को देखा जैसे कह रही हो कि मेरे दिल में हलचल मची है यह आप कैसे पहचान जाते हैं ।

उसने वह फोटो दिखाकर कहा कि आज मैंने इन्हें अस्पताल में देखा है। उनके कमरे से बाहर आते हुए नर्स अपने साथी को बता रही थी कि आज वे डिस्चार्ज हो रहे हैं लेकिन बेटा अभी तक नहीं आया है । वे लोग उसका ही इंतज़ार सुबह से कर रहे हैं ।

प्रदीप ने कहा कि बेचारे कितने बेबस हो गए होंगे कि घर जाना है परंतु ले जाने वाला अभी तक नहीं आया है ।

सुवर्णा की चुप्पी देख कर प्रदीप ने कहा मैं कल सुबह एक बार अस्पताल में पता लगाऊँगा कि वे हैं या चले गए हैं । वे लोग हैं और बेटा नहीं आया है तो मैं उन्हें अपने घर ले आऊँगा ।

सुवर्णा ने ग़ुस्से से उसकी तरफ़ देखा तो उसने कहा देखो मैं तुम्हारे ग़ुस्से को समझ सकता हूँ परंतु जो बीत गई सो बीत गई अब अपना दिल बड़ा करो और उन्हें माफ़ कर दो । मरे हुए को तुम और क्या मारोगी सुवर्णा जाओ सो जाओ ।

प्रदीप तो जाकर सो गया था । सुवर्णा ने रसोई की साफ सफ़ाई की और अपने रूम में बिस्तर पर लेटी थी कि सो जाऊँ सुबह फिर जल्दी उठना है लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी और पुरानी यादों ने उसकी जगह ले ली थी।

सुवर्णा को याद आया जब वह एक साल की थी तब माता-पिता के साथ घूम फिरकर आ रही थी गोधूली का समय था । पिता अँधेरा होने से पहले घर पहुँच जाना चाहते थे ।

अचानक उनकी कार के सामने एक कुत्ता आ गया और उसे बचाने के चक्कर में इनकी कार पलट गई थी ।

माता-पिता की वहीं घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी । सुवर्णा वहीं झाड़ियों में बेहोश पड़ी हुई थी ।

सुवर्णा के बड़े पिताजी को जब खबर मिली तो वे तुरंत घटनास्थल पर पहुँच गए और पूरे परिवार को एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया ।

वहाँ सब लोग बड़े पिताजी से कह रहे थे कि बच्ची को तो अब आपको ही सँभालना पड़ेगा बेचारी दुनिया में अकेली रह गई है ।

अस्पताल पहुँच कर डॉक्टरों ने बताया कि उनकी मौत हो गई है । सुवर्णा को बड़ी माँ और बड़े पिताजी दस दिन के कार्यक्रम के बाद अपने घर ले आए।

उनके खुद के दो बेटे और दो लड़कियाँ थीं । वे सब सुवर्णा से बड़े थे । जब से सुवर्णा बड़े पिताजी के घर आई बड़ी माँ के तेवर ही बदल गए थे उन्हें लगता था कि सुवर्णा उनके यहाँ मुफ्त की रोटी खा रही है ।

उनका बस चलता तो इतनी छोटी सी उम्र में भी वे उससे काम करा लेतीं मगर उन्हें पास पड़ोस के लोगों का डर था । इसलिए सुवर्णा को भी स्कूल में भर्ती करा दिया गया था फिर भी घर के लोगों के लिए वह एक छोटी सी नौकरानी ही थी । वे सब उससे अपने छोटे मोटे काम करवा ही लेते थे । इसी तरह से एक साल बात गया ।

सुवर्णा के माता-पिता की बरसी हो गई थी और बड़े पिताजी ने वहाँ का मकान बेचकर पैसे बैंक में जमा करा दिया था यह कहकर कि सुवर्णा के काम आएँगे । एक दिन बड़ी माँ ने मुझसे कहा कि मैं अपने मायके जा रही हूँ तेरे भाई बहन तो नहीं आएँगे तुम मेरे साथ चलना । मैं खुश हो गई थी कि उसे ट्रेन में चढ़ने को मिलेगा ।

इसलिए वह उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गई थी । हम बड़ी माँ के मायके पहुँचे । जैसे ही हम स्टेशन पर उतरे हमें वहीं बेंच पर बिठाकर पहले बडे पिताजी वाशरूम के लिए गए । उनके आने के पहले ही बड़ी माँ अर्जेंट है कहते हुए वाशरूम के लिए निकली और मुझसे कहा यहीं बैठी रह मैं वाशरूम जाकर आती हूँ । कहीं जाना नहीं हम अभी आते हैं कहकर चल पड़ी।

मैं वहीं बैठे बैठे कब सो गई मुझे पता ही नहीं चला । मैं जब उठी तो एक अनाथालय में थी । किसी महापुरुष ने मुझे वहाँ पहुँचा दिया था । वहाँ के लोग बहुत ही अच्छे थे मुझसे बहुत प्यार करते थे ।

मुझे स्कूल में भर्ती करा दिया गया था ।

मैं स्कूल में पढ़ने लगी हर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती थी तो टीचर्स भी मुझे पसंद करने लगे थे । पढ़ाई के प्रति मेरी रुचि देखकर प्रिंसिपल जी ने मुझे आगे पढ़ने दिया । इसी तरह से मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और केंपस सेलेक्शन में मुझे अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई थी ।

प्रदीप मेरी ही कंपनी में नौकरी करते थे मेरे बॉस थे । कुछ दिनों बाद हम दोनों में प्यार हो गया मेरी आपबीती जानकर भी उन्होंने मुझसे शादी करनी चाही । इस तरह से तीन साल हुए हैं हमारी शादी को हुए । अब हमारी एक प्यारी सी बेटी है डेढ़ साल उसका नाम मीत है।

मैं हमेशा सोचती रहती हूँ कि बड़े पिताजी के चार बच्चे थे उनके बीच मैं अकेली नहीं पल सकती थी क्या ?

इस तरह से रेलवे स्टेशन पर छोड़ने के बदले में वे खुद मुझे अनाथालय पहुँचा देते तो कितना अच्छा होता था ।

यह तो मेरे माता-पिता का आशीर्वाद ही था कि किसी सज्जन पुरुष ने मुझे अनाथालय पहुंचाया है वरना मेरी क्या हालत हो सकती थी ।

आज उन्हें वहाँ देख मुझे लगा कि जैसी करनी वैसी भरनी इसी को कहते हैं शायद ।

जब उन्होंने मुझे छोड़ दिया था तब मैं दो साल की थी अब बड़ी हो गई हूँ । मुझे वे पहचान भी नहीं पाएँगे । मैंने तो उन्हें पहचान लिया है ।

मीत नींद में बड़बड़ा रही थी माँ मुझे नई पेंसिल चाहिए है । उसकी बातों से मेरी तंद्रा टूटी देखा सुबह होने वाली है अब सो गई तो फिर नींद नहीं खुलेगी इसलिए धीरे से उठी । सारी रात नींद ना होने के कारण सर भारी हो गया था ।

मैंने सोचा एक कप चाय बना ली जाए चाय पी लूँगी तो अच्छा लगेगा । मैंने अपने लिए एक कड़क चाय बनाई और बालकनी में बैठकर पीने लगी । उसी समय प्रदीप भी उठकर आ गए थे पूरे घर में मुझे ना पाकर बालकनी में आए मैंने देखा उनके हाथों में भी चाय की कप थी ।

मेरे सामने बैठ कर चाय की चुस्की लेते हुए कहने लगे कि अकेले अकेले ही चाय पी रही हो मुझे भी उठा देती ।

सुवर्णा ने प्रदीप को देख मुस्कुरा दिया था । प्रदीप रात भर मैं सो नहीं पाई थी।

मुझे मालूम है तुम्हारी आँखें देखकर मैं समझ गया हूँ।

एक बात और तुम आज ऑफिस से छुट्टी ले लेना मैंने भी छुट्टी ली है। मैं अभी अस्पताल में फोन करके बात लेता हूँ और पता लगा लेता हूँ कि वे अभी वहीं हैं या उनका बेटा उन्हें लेकर चला गया है ।

उन्हें हम कुछ दिन अपने घर में रख लेते हैं जरूरतमंद हैं उनकी सहायता करना हमारा फर्ज है बाद में देखते हैं कि क्या करना है कहते हुए प्रदीप फोन करने के लिए चला गया।

सुवर्णा धीरे-धीरे अपने काम कर रही थी क्योंकि आज उसे ऑफिस जाना नहीं है। उसी समय प्रदीप ने आकर कहा कि सुवर्णा अफ़सोस है कि वे लोग अभी भी वहीं हैं।

मैंने अस्पताल वालों को फोन पर यह बताया है कि मैं उनके बेटे का दोस्त हूँ किसी कारणवश उनका बेटा उन्हें लेने नहीं आ सकता है इसलिए मैं उन्हें लेने आ रहा हूँ। तुम उनके लिए गेस्ट रूम तैयार कर लो मैं उन्हें लेकर आता हूँ। तुम यह उदासी छोडो और सोचो कि सचमुच ही वे मेरे दोस्त के मातापिता हैं कहते हुए प्रदीप तैयार होकर चले गए। मैं भी उनके जाते ही गेस्ट रूम को साफ करने के लिए चली गई ।

मैंने सोचा कि उन लोगों को आते ही चाय पिलाऊँगी इसलिए गैस पर चाय के लिए पानी चढ़ा दिया।

उसी समय गेट के सामने कार आकर रुकी । मैं झट से बाहर आई और कार के पास पहुँचकर प्रदीप की मदद से उन्हें घर के अंदर ले आई उन्हें बैठक में बिठाया और चाय लाने के लिए रसोई में आई ।

इस बीच प्रदीप ने उनका सामान गेस्ट रूम में रख दिया था।

उस दिन हम लोग घर पर ही थे इसलिए समय पर उनका ख़याल रखते हुए उन्हें फ्री फील कराने की कोशिश किया ।

मैं इस बात से खुश थी कि उन्होंने मुझे पहचाना ही नहीं है और दुख भी हुआ था कि देखो मुझे कैसे भूल गए हैं ।

मैं और प्रदीप दूसरे दिन ऑफिस जाते समय उन्हें सब कुछ बता दिया था कि कौनसी वस्तु कहाँ है खाना टेबल पर है और अपना फोन नंबर भी दिया था कि जरूरत पड़ने पर फोन कर सकते हैं ।

मीत को हम डे केयर में रखते हैं और ऑफिस से आते समय उसे हम ले आते थे ।

उस दिन हम दोनों जल्दी घर पहुँच गए थे क्योंकि घर पर नए लोग थे । हम घर पहुँचे तो देखा कि घर का दरवाज़ा हल्के से खुला हुआ था । जिसे देख हम पहले तो घबराए फिर लगा कि वे दोनों घर पर हैं तो फिर क्या डरना है । सबसे पहले हम गेस्ट रूम में पहुँचे कि उनका हालचाल पूछ लें । हम शॉक में आ गए थे क्योंकि गेस्ट रूम एकदम साफ सुथरा था और वहाँ उनका सामान नहीं था हम कुछ नतीजे पर पहुँच पाते

प्रदीप के फोन पर एक वायस मेसेज आया । हम दोनों उसे सुनने के लिए बैठ गए अचानक बड़े पिताजी की आवाज़ सुनाई दी ।

सुवर्णा बेटा हम तुम्हारे गुनहगार हैं। हमने तुम्हें रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया है इस बात पर हम भी खुश नहीं थे ।  तुम्हें वहाँ छोड़ तो आए थे परंतु घर आकर एक दिन भी खुश नहीं रह सके थे ।

तुम्हारे मातापिता का चेहरा बार- बार हमारी आँखों के सामने का जाता था जैसे वे हमसे पूछ रहे हैं कि हमारी बेटी के साथ ऐसा क्यों किया है।

वैसे हम चाहें तो तुम्हें भी पाल सकते थे । हमारे खुद के भी चार बच्चे थे उनके बीच तुम भी आराम से पल जाती थी पर यह दिल है ना मालूम नहीं क्यों? हठ कर बैठता है कि दूसरों के बच्चे को हम क्यों पालें।

सुवर्णा तुम सोच रही होगी कि हम ने तुम्हें कैसे पहचान लिया है। जिस दिन तुम कार के पास आई थी हमें लेने के लिए उसी समय हम दोनों का दिल धड़क उठा था ।

तुम हूबहू अपने पिता के समान हो तुम्हारी आँख़ें नाक नक्श तुम्हारा गोरा रंग सब कुछ तुम्हारे पिता की याद दिलाता है । तुम्हारे लंबे बाल और तुम्हारी आवाज तुम्हारी माँ की याद दिलाते हैं। लेकिन तुमसे आँखें मिलाकर बातें करने की हमारी हिम्मत नहीं हुई।

बेटा तुम्हारा बड़ा दिल है इसीलिए हमारी गलतियों को माफ करके अपने घर में पनाह दिया है परंतु हम इसके काबिल नहीं हैं।

 हमें हमारी गुनाह का फल मिल गया है बेटा तभी तो प्यार से पाले हुए बच्चों ने हमारी जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया है ।

एक तुम हो जिसे हमने रास्ते में छोड़ दिया था । उसने हमें रास्ते से उठाकर घर ले आई है । हम तुम्हारे आभारी हैं पर हम दोनों यहाँ से जा रहे हैं। दुनिया बहुत बड़ी है बेटा हमें कहीं न कहीं रहने के लिए जगह मिल ही जाएगी।

तुम्हारे बडे पिताजी को पेंशन भी मिलती है तो हमारा गुजारा हो ही जाएगा हमारी फिक्र मत करना परंतु दिल से हमें माफ जरूर कर देना।

सुवर्णा ने प्रदीप से कहा कि चलिए हम उन्हें ढूँढकर लाते हैं उन्हें ऐसे ही भटकने के लिए छोड़ तो नहीं सकते हैं ना! उसकी बात पर प्रदीप खुश हो जाता है और दोनों उन्हें ढूँढने के लिए निकल पड़ते हैं।

के कामेश्वरी

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