अहमियत रिश्तों की (भाग-14) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

अब आगे…

निहारिका,,प्रथम के बाऊजी दीनानाथ जी को और उसके भाई पिंटू को एक सुनसान जगह पर लेकर आई है…

उसने  उन्हें मिट्टी पर बैठा दिया है…

चारों तरफ से कई लोगों के  हंसने की जोर-जोर से आवाज आ रही है …ऐसे लग रहा था मानो   एक साथ कई लोग हंस रहे हो….

इधर थाने में एक लड़की जमानत कराने आई है प्रथम की…

अबकी बार तो तुझे छोड़ रहा हूं लड़के  प्रथम…

क्योंकि यह तेरी  जमानत कराने आयीं  हैं मैडम जी….

भगवान का शुक्र मना कि  तू बच गया…

जी…

मेरी जमानत…

किसने करायी  है…??

पक्का बाऊजी  और पिंटू  भईया आए होंगे…

मन ही मन यह  सोचकर प्रथम  आता है…

सामने कुर्सी पर निहारिका को  बैठा देखकर अवाक   रह जाता है…

निहारिका जी…

आप यहां…?

मेरी जमानत कराने आई है ..??

आपको तो देवेश सर के  अंतिम संस्कार में होना चाहिए था…

प्रथम… मेरे लिए यह काम ज्यादा जरूरी था …

मुझे पता है …

तुम निर्दोष हो प्रथम…

मैं तुम्हारी  जमानत कराके चली जाऊँगी ..

फिर सीधा वहीं  जाऊंगी…

बहुत-बहुत धन्यवाद  निहारिका जी आपका …

आपने मुझे  इतनी बड़ी प्रॉब्लम  से बचा लिया…

थैंक यू सो मच वंस अगेन …

कोई बात नहीं….

निहारिका ने सभी  जगह अपने साइन किये ,,जहां-जहां इंस्पेक्टर बोल रहा था…

मुस्कुराकर प्रथम की ओर देखती हुई वो  चली गयी…

और दूसरी तरफ दीनानाथ जी और पिंटू चारों तरफ नजर घुमाते  हैं…

जंगल बहुत घना था …

तभी  उन्हें कई सारे लोगों की परछाई दिखाई पड़ती है…

जिसमें सिर्फ सफेद रंग के दांत चमक रहे होते हैं…

और सब ताली बजाकर जोर-जोर से हंस रहे होते हैं…

पिंटू तो बहुत ही डर जाता है ….

लेकिन दीनानाथ जी हिम्मत कर उठते हैं …

और  उन लोगों के पास  जाने का प्रयास करते हैं…

तुम  सबरे लोग कौन हो …??

पिंटू भी दीनानाथ जी के पीछे दुबका  हुआ है….

यह क्या उनके पास आते ही अब कोई भी परछाई दिखाई नहीं पड़ती…

सब शांत हो जाता है…

फिर दीनानाथ जी और पिंटू पलट कर देखते हैं…

निहारिका से कहते हैं…

हां तो बताओ लाली…

तुम हमसे क्या बता रही …

बाऊजी यह छोरी तो मुझे ठीक ना लग रही …

अब तो निहारिका भी नहीं दिख रही थी..

इतनी देर में कहां  गायब हो गई पिंटू वो छोरी…

मोये  तो कुछ समझ ना आए रहो…

मैं यहां हूं …चलते चले आओ. . .

थोड़ी दूर पर आवाज आती है…

मुझे सच में ऐसा लग रहा कोई भूत प्रेत का चक्कर है…

आप लोग मेरे पीछे-पीछे चलते रहो…

आगे की तरफ जाता हुआ कोई साया उन दोनों से बोला….

तुम कौन…?

और  कौन…??

मैं निहारिका हूं …

आप लोग मेरे पीछे-पीछे आईये…

मैं बताती हूं आप लोग प्रथम को कैसे बचा सकते हो…

दीनानाथ जी पिंटू हांफ रहे होते हैं…

वह आगे बढ़ते चले जाते हैं…

लेकिन तभी पिंटू दीनानाथ जी का हाथ पकड़ लेता है …

बाऊजी …

मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा…

ज्यादा आगे मत जाओ…

जंगल घना है …अंधेरा भी हो चला है….

कुछ हो ना हो…वो सब बाद में देखेंगे बाऊ जी…

अभी फिलहाल थाने चलते हैं…

हाथ पैर जोड़ेंगे थानेदार के…

तो शायद प्रथम को छोड़ दे…

कत्ल के  इल्जाम में पकड़ा है पुलिस ने …

कोई छोटा-मोटा जुर्म ना  है …

समझा….

मैं तो जा रहा हूं…

आप रुकिए यहीं  …

पिंटू गुस्से में बोला …

बाऊ जी…

वो साया तुम्हे कहां से एक छोरी का लग रहा…

पीछे पीछे क्या कर रहे हैं …

बाऊजी चलिए…

दीनानाथ जी फिर भी  आगे आगे  बढ़ते जाते हैं…

आप लोग आ रहे हैं ना …??

हां  आयें  रहे  हैं लाली….

दीनानाथ जी घबराते हुए बोले ..

पिंटू का मन नहीं माना ….

उसने दीनानाथ जी का हाथ खींच लिया…

और वह दोनों पीछे की ओर पलट गए…

निहारिका चिल्लाती रही ,,दौड़ती रही…

तभी हवा में एक साया उड़ता हुआ उन्हें नजर आया…

अब तो उनका   शक पक्का  हो गया…

कि यह कोई भूत ही है…

दोनों लोग दौड़ते हुए थाने पर आ गए…

जी…

थानेदार…

मेरे छोरा को छोड़ दो …

उसने कत्ल ना करो है…

उसे तो कब का बरी  कर दिया गया है…

अब तो घर भी पहुंच गया होगा…

क्या प्रथम को आपने छोड़ दिया है..??

हां कोई निहारिका नाम की लड़की आई थी…

उसकी जमानत कर गई है…

और अपना बयान भी दर्ज करा  गई है …

चैन की नींद सो…

मामला रफा दफा हो गया है…

बाऊजी वह छोरी निहारिका यहां थी ,,तो जंगल में कौन था…??

मोये ना पतो ….

अपने घर चल बस …

दीनानाथ जी को ऐसा लगा  बस वहीं पर बेहोश हो जाएंगे …..

प्रथम …

अरे मेरे लाल तू बच गया…

भगवान का लाख-लाख शुक्र है…

बाऊजी आप लोग कहां थे..??

यहां पर कुछ भी सही नहीं हैं  लला …

चल जल्दी से चलते हैं यहां से गांव की ओर …

शाम की ट्रेन है…

जल्दी-जल्दी सामान बांधो….

कुछ उल्टा सीधा खाना पीना खाकर सारा सामान पैक कर वो लोग  चलने की तैयारी करने लगते हैं…

बाऊजी ,पिंटू और प्रथम एक ऑटो में बैठते हैं …

और सरपट जल्दी ही स्टेशन पहुंचने की कोशिश करते हैं …

तभी ऑटो वाला बोलता है…

आपको कहां जाना है …??

अभी  आपको  बताया तो था …

स्टेशन जाना हैं…

आवाज तो छोरी की लग रही थी…

ऑटो वाले की आवाज पहचानते हुए बोलते हैं   दीनानाथ जी…

प्रथम जल्दी से ऑटो वाले को  देखता  है…

यह क्या यहां भी  निहारिका है…

अब हमें छोड़   दीजिए निहारिका जी….

क्यों  प्रथम…??

मुझे छोड़कर क्यों जा रहे हो…??

कुछ गलती हुई क्या मुझसे…

मैने तुम्हारी हर जगह रक्षा की …

और तुम शहर को छोड़कर इस तरह जा रहे हो…

तुम ऐसे नहीं जा सकते..

मैं तुम्हे  नहीं जाने दूंगी…

दीनानाथ  जी हनुमान चालीसा का पाठ करने लगते हैं…

निहारिका ऑटो को एक खाई की ओर बढ़ाती चली जा रही है…

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तब तक के लिए जय श्री राधे

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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